कारगिल युद्ध देश के कई परिवारों के लिए ऐसा दंश लेकर आया था कि उसे जिंदगी भर भुलाया नहीं जा सकता। देश ने जंग तो जीत ली, लेकिन कई सिपाही अपनी जिंदगी देश पर न्योछावर कर गए। हर साल उन्हीं की याद में 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। आधिकारिक आंकड़े कहते हैं कि कारगिल में 527 सैनिकों की मौत हुई थी और 1369 जवान घायल हुए थे। शहीदों के परिवार आज भी अपने प्रियजनों के जाने का दंश झेल रहे हैं। ऐसा ही एक परिवार है मेजर सी.बी.द्विवेदी का परिवार।
भारतीय आर्मी, भारतीय एयरफोर्स और नेवी सभी ने इस युद्ध में अपना-अपना रोल निभाया था। कारगिल युद्ध 1999 में हुआ था और उस समय शहीद मेजर सी.बी.द्विवेदी की बेटी दीक्षा सिर्फ 8 साल की थीं। दीक्षा द्विवेदी ने अपने पिता के बलिदान को और अन्य शहीदों के दर्द को बखूबी एक किताब की शक्ल दी है। उस किताब का नाम है Letters from Kargil, इस किताब के हर पन्ने में एक कहानी है। दीक्षा ने कारगिल दिवस (Kargil Diwas) के मौके पर Herzindagi.com से Exclusive बात की।
नोट: ये इंटरव्यू दीक्षा ने हरजिंदगी के साथ 2019 में किया था। इस कारगिल दिवस पर इस इंटरव्यू को दोबारा अपने पाठकों तक पहुंचाया जा रहा है।
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सवाल: आपको ये किताब लिखने की प्रेरणा कहां से मिली?
ये मेरे पिता की कहानी है। 2015 में मैंने उनकी दुनिया के सामने रखी ताकि उन्हें याद किया जा सके। इस कहानी में मैंने उनके द्वारा लिखे गए खतों के कुछ हिस्से भी जोड़े थे। ये कहानी वायरल हो गई और कई लोगों ने पढ़ी। इस कहानी इतनी प्रभावपूर्ण रही क्योंकि उसमें मेरे पिता के खत थे। उसके बाद 2016 में एक जानी-मानी पत्रकार प्रिया रमानी से बात हुई उन्होंने उसी समय Juggernaut Books ज्वाइन किया था। मैंने उनसे अपने पिता की कहानी के बारे में बात की। उस समय मुझे लगा कि ये बिलकुल सही तरीका है कारगिल युद्ध की कहानी लोगों तक पहुंचाने का। मुझे ये खत और डायरी के पन्ने चाहिए थे ताकि कई कारगिल योद्धाओं की कहानी बता सकूं जिन्हें इतने सालों में भुला दिया गया है।
सवाल: क्या इसे लिखते समय भावनात्मक रूप से आपको कोई परेशानी हुई?
ये बेहद भावुक समय रहा। इसका कारण ये है कि इस किताब ने न सिर्फ मेरे पुराने जख्म खोल दिए बल्कि मुझे कई शहीदों के परिवारों से बात करनी पड़ी और उन्हें उनके सबसे बुरे दौर की याद दिलानी पड़ी। ये आसान नहीं था।
सवाल: क्या सरकार को शहीदों के परिवारों के लिए अपनी कोई पॉलिसी या कुछ और बदलने की जरूरत है?
पहली बात जो मेरे जहन में आती है वो ये कि कैसे शहीदों के परिवारों की मदद की जाए। चाहें ये पॉलिसी के लेवल पर हो, कोई ऐसा (कंसल्टेंट जैसा) उनकी मदद कर सके। उन्हें गाइड कर सके। खास तौर पर उन परिवारों की जो गावों में रहते हैं। उन्हें उनके अधिकारों और कई तरह के सरकारी भत्तों के बारे में जानकारी दे सके। ये उनका हक है। उनके किसी अपने ने देश के लिए सबसे बड़ा बलिदान दिया है। मौजूदा समय में कई फंड और स्कॉलरशिप हैं। ये सैनिकों के लिए और शहीदों के परिवारके लिए हैं। ऐसे कई परिवार हैं जिन्हें इनके बारे में पता ही नहीं होता जब तक जरूरत न हो। उन्हें इसके बारे में जानकारी होनी चाहिए।
सवाल: 'युद्ध भड़काने' या सिर्फ युद्ध की बातें करने वालों को लेकर आपकी क्या राय है?
मुझे लगता है कि ये कहना आसान है करना नहीं। किसी भी देश के लिए युद्ध किसी समस्या का कोई उत्तर नहीं हो सकता। अगर विनाशकारी और ताकतवर युद्ध के बारे में इतने बड़े बोल बोलते समय हम लोगों में से कोई इसकी गणना करे तो पाएंगे कि युद्ध की जरूरत नहीं है। हम युद्ध के लिए जो बलिदान देते हैं वो बहुत बड़ा है। शायद ही युद्ध या युद्ध के हालात बनाने से कभी किसी का भला हुआ है।
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सवाल: अन्य सैनिकों को आप क्या संदेश देना चाहेंगी?
मैं हर सुबह ये सोचते हुए उठती हूं कि शायद कभी मेरे पास इतनी हिम्मत और जज्बा होगा जितना एक सैनिक के पास होता है। मैं हमेशा कहती हूं कि सैनिक आम इंसान होते हैं जिनके पास अविश्वसनीय हिम्मत होती है। हम उनके काफी कुछ सीख सकते हैं। जिस तरह से वे जीते हैं और अपने जीवन से प्यार करते हैं उससे हम भारत के असहिष्णु नागरिक काफी कुछ सीख सकते हैं।
सवाल: क्या ऐसा कुछ है जो शायद हमने नहीं पूछा, लेकिन आप हमारे महिला पाठकों के साथ शेयर करना चाहें?
एक सैनिक हर सुबह जागता है, अपनी यूनिफॉर्म पहनता है और देश के लिए न्योछावर होने को तैयार हो जाता है। मुझे लगता है कि अगर हम सब, खास तौर पर महिलाएं हर सुबह उठकर अपने सपनों को साकार करने की कोशिश करें और बाहें फैला कर आज का स्वागत करे तो हमारा देश और बेहतर बनेगा।
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