महज 24 साल की उम्र में इंटरनेशनल चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय जिम्नास्ट बनी दीपा कर्माकर का आज जन्मदिन है। उन्होंने अपनी जिद से ये साबित किया कि वो किसी भी मुश्किल का सामना कर सकती हैं। दीपा लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा बन सकती हैं। आज उनके जन्मदिन पर उसी कारनामे को दोबारा याद करना तो बनता है।ये कारनामा उन्होंने तब कर दिखाया जब पूरी दुनिया को उनके वापस लौटने की उम्मीद नहीं थी। Herzindagi की #BandhanNahiAzaadi मुहिम में हम ऐसी ही महिलाओं से बात कर रहे हैं जिन्होंने दुनिया भर की मुश्किलों का सामना कर अपनी एक अलग पहचान बनाई है।
दीपा कर्माकर ने 2016 के रियो ओलंपिक खेलों में प्रोडुनोवा वोल्ट में गुरूत्वाकर्षण को मात देने वाला प्रदर्शन कर भारतीय जिम्नास्टिक्स को दुनिया के नक्शे पर डाल दिया था लेकिन दाएं घुटने में चोट के कारण वह रियो के बाद किसी टूर्नामेंट में खेल नहीं पाईं। दीपा को अपना ऑपरेशन कराना पड़ा जिसके बाद वो एशियाई चैंपियनशिप, वर्ल्ड चैंपियनशिप और कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा नहीं ले सकीं। ज्यादातर लोगों को उनकी वापसी की कोई उम्मीद नहीं थी।
तुर्की में आठ जुलाई 2018 को विश्व चैलेंज कप में वापसी करते हुए दीपा ने हैंडस्प्रिंग और सुकुहारा 720 के साथ गोल्ड मेडल जीता। वह किसी इंटरनेशनल चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय जिम्नास्ट हैं। लेकिन दीपा ने कहा कि वह प्रोडुनोवा नहीं छोड़ेंगी।
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HerZindagi के साथ खास बातचीत में दीपा कर्माकर ने बताया कि वो बचपन में मजे के लिए खेल खेला करती थीं और उन्हें तब इस बारे में अंदाजा तक नहीं था कि ये खेल इंडिया के लिए भी खेला जा सकता है। इसी तरह कुछ और किस्से भी दीपा कर्माकर ने हमारे साथ शेयर किए।
मेरे जैसे संघर्ष की कहानी और भी हैं
दीपा कर्माकर का कहना है, “मुझे नहीं लगता है कि मेरे संघर्ष की कहानी अलग है। मेरी तरह अन्य एथलीटों ने भी काफी संघर्ष किया है। हालांकि आज स्थिति में सुधार हो रहा है, उस दौरान एक स्थिरता की कमी थी और जिमनास्टिक के खेल के आसपास जागरूकता की कमी के कारण इस खेल के लिए संघर्ष थोड़ा ज्यादा करना पड़ता था। इस खेल में सबसे ज्यादा जरूरत अनुशासन और धैर्य की होती है।
“जब आप किसी चीज के लिए पागल होते हैं चाहे वो कुछ भी हो, ऐसे में आपको खुद से बहुत सारी उम्मीदें होती हैं और उन उम्मीदों पर खड़े उतरना ही आपको आपकी मंजिल के बहुत नजदीक ले जाता है।”
बचपन में मजे में खेला करते थे खेल
“बचपन में खेल सिर्फ मजे के लिए खेला जाता था और उस दौरान इस बात की खबर तक नहीं होती थी कि खेल के जरिए इंडिया को सम्मान दिलाया जा सकता है और अपनी पहचान बनाई जा सकती है। जब मैंने इस खेल को खेलना शुरू किया तो काफी चुनौतियां मेरे सामने आईं लेकिन मुझे इसे खेलने में आंनद आता था इसलिए मैं इसे खेल पाईं।” ये कहना है दीपा कर्माकर का।
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कोच और जिद्दी नेचर ने बनाया दीपा कर्माकर
दीपा कर्माकर को मुश्किल तब आईं जब उन्हें पता चला कि वो ‘फ्लैट फुट’ हैं। दीपा तब करीब 8-9 साल की हो चुकी थीं। ‘फ्लैट फुट’ के बारे में अमूमन कहा जाता है कि फ्लैट फुट वाले जिमनास्टिक नहीं कर सकते हैं लेकिन दीपा के कोच नंदी सर ने उनको कुछ फिटनेस एक्सरसाइज कराई और ऐसा करने के बाद उनकी परेशानी दूर हो गईं। दीपा कर्माकर अपने कोच को अपने पिता समान मानती हैं।
साथ ही आपको बता दें कि दीपा बहुत ज्यादा जिद्दी हैं। एक बार एक विदेशी कोच ने वॉल्ट की एक नई तकनीक को लेकर कह दिया कि लड़कियां नहीं कर पाएंगी। दीपा को ये बात इतनी चुभ गई कि उन्होंने आखिर में उस तकनीक पर जीत हासिल करके ही दम लिया और इसका श्रेय वो अपने कोच को देती हैं।
दीपा कर्माकर की संघर्ष की कहानी से ऐसा बहुत कुछ सीखा जा सकता है जो किसी भी महिला की जिंदगी को बदल सकता है।
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