बिहार का नाम जब भी लिया जाता है तो लालू यादव, एक्ज़ाम में चोरी और ना जाने कौन-कौन सी चीजों की झलक दिमाग में आती हैं। लेकिन इन अंधेरों के बीच में भी बिहार को चमकना अच्छी तरह से आता है। इसलिए तो हर साल आने वाले यूपीएससी के रिजल्ट में कुछ बच्चे बिहार के भी होते हैं। लेकिन अब आप सोच रहे होंगे कि यूपीएससी का रिजल्ट तो अब तक आया नहीं है। फिर बिहार का नाम क्यों लिया जा रहा है?
दरअसल बिहार की छोटी कुमारी सिंह को गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए इंटरनेशनल अवॉर्ड मिला है। छोटी कुमारी ने बिहार के साथ पूरे देश का नाम रोशन किया है।
तीन साल से पढ़ा रही है बच्चों को
छोटी कमुारी सिंह बिहार के भोजपुर जिले में रहती है और अब ये पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन चुकी हैं। छोटी कुमारी सिंह पिछले तीन साल से गरीब बच्चों को पढ़ा रही थीं। इन बच्चों में अति पिछड़े वर्ग के बच्चे शामिल थे। इनके इस काम के लिए इन्हें इंटरनेशनल अवॉर्ड मिला है।
बिहार की छोटी कुमारी को स्विट्जरलैंड बेस्ड वुमन्स वर्ल्ड समिट फाउंडेशन की तरफ से वुमेन्स क्रिएटिविटी इन रुरल लाइफ अवॉर्ड से इस साल सम्मानित किया गया है। उन्हें यह अवॉर्ड अपने इलाके के अति पिछड़े वर्ग के मुसहर जाति के बच्चों को पढ़ाने के लिए दिया गया है। छोटी ने 2014 में अपने गांव रतनापुर से इस काम की शुरुआत की थी।
आध्यात्म गुरू से मिली प्रेरणा
बच्चों को पढ़ाने की प्रेरणा उन्हें अपने आध्यात्म गुरु के पास जाने से मिली। वह चाहती है कि देश भर में 101 ऐसे गांव के बच्चों को वह शिक्षित कर पाए।
अवॉर्ड पाने वाली युवा कैंडिडेट
इस अवॉर्ड को पाने वाली छोटी सबसे युवा कैंडिडेट हैं। छोटी अपने इलाके में यह काम उन वर्ग के बच्चों के लिए भी करती हैं जिनके अभिभावक के पास जमीन तक नहीं है और सिर्फ मजदूरी करके अपना गुजर-बसर करते हैं। उन्होंने इस प्रोग्राम के शुरुआत में उन बच्चों को फ्री में ट्यूशन देना शुरू किया था जो स्कूल से आने के बाद यूं ही घूमा करते थे।
अपने मां-पिता को भी किया शामिल
बच्चों को पढ़ाते हुए छोटी ने भी अपने मां-पिता को भी शामिल कर लिया। उसने अपने परिवार और गांव के लोगों को प्रेरित किया कि वह हर महीने कम से कम 20 रुपये बचाए। जब सबने 20 रुपये बचाने शुरू किए तो उन पैसों को कॉमन बैंक में जमा कराना शुरू किया गया। इससे जब गांव वालों को फायदा होना शुरू हुआ तो उन्होंने छोटी के पास आसपास के गांवों की महिलाओं को भी भेजना शुरू कर दिया। फिर इसके बाद धीरे-धीरे आसपास के गांव के बच्चे और बच्चियां भी उसके पास पढ़ने आने लगे।
देखते ही देखते 100 बच्चों से शुरू किया गया ट्यूशन 1000 बच्चों से ज्यादा का हो गया और इस साल छोटी को इंटरनेशनल अवॉर्ड मिल गया।
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