लता भगवान करे: 68 साल की उम्र में बीमार पति को बचाने के लिए जीती मैराथन, जानें इनसे जुड़ी बातें

आइये जानें पति की जान बचाने के लिए 68 साल की उम्र में मैराथन में प्रथम पुरस्कार जीतने वाली लता भगवान् करे कौन हैं और उन्होंने क्यों लिया मैराथन का फैसला। 

 

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हमारे देश में न जाने कितनी महिलाएं हैं जो अपने पति की सलामती के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहती हैं। करवा चौथ के व्रत से लेकर वट सावित्री में बरगद की पूजा करने तक, भारतीय महिलाएं पति की हर मुसीबत से बचाने की प्रार्थना करती हैं। यही नहीं बड़ी से बड़ी बाधाओं को नगण्य मानकर औरतें पति की ख़ुशी के लिए ही प्रयासरत रहती हैं।

कुछ ऐसा ही उदाहरण प्रस्तुत किया एक 68 साल की बुजुर्ग महिला लता भगवान करे ने। उन्होंने 68 साल की उम्र में जिसमें आमतौर पर आराम करने की सलाह दी जाती है, उस उम्र में अपने पति को बीमारी से बाहर निकालने के लिए मैराथन की दौड़ में हिस्सा लिया और प्रथम पुरस्कार जीतकर पूरी दुनिया के सामने मिसाल प्रस्तुत की। आइए जानें कौन हैं लता करे और उनसे जुड़ी बातें।

कौन हैं लता करे

lata bhagwan kare

लता भगवान करे महाराष्ट्र के बारामती ज़िले के एक गांव की निवासी हैं। उनकी उम्र 68 साल है और वो मैराथन रनर के नाम से जानी जाती हैं। साल 2014 तक कोई उनका नाम भी नहीं जानता था, लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि उन्होंने मैराथन रेस में हिस्सा लिया, जीत हासिल की और हर कोई उन्हें जानने लगा। यही नहीं उनके नाम पर मराठी फिल्म भी बनी जो सभी को प्रेरणा देती है।

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मैराथन में क्यों लिया हिस्सा

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जिस उम्र में आमतौर पर महिलाएं पोते पोतियों को खिलाती और आराम करती हैं उस उम्र में लता ने मैराथन की लम्बी दौड़ में हिस्सा लिया और प्रथम पुरस्कार भी जीता। जी हां ये सच है, लेकिन मैराथन में हिस्सा लेना लता का शौक नहीं बल्कि जरूरत थी। दरअसल उस साल लता के पति काफी बीमार हो गए थे। उनके इलाज के लिए लता के पास पैसे नहीं थे। पैसे कमाकर पति की जान बचाने की चाह ने लता को ये कदम उठाने पर मजबूर कर दिया।

क्या है पूरी कहानी

लता और उनके पति भगवान तो बुलधाना जिले के हैं, लेकिन काम के सिलसिले में महाराष्ट्र के बारामती में रहने लगे। वहां भगवान सिक्योरिटी गार्ड के तौर पर काम करने लगे और लता लोगों के खेतों में काम करके अपना गुजारा चलाने लगीं। दोनों की तीन बेटियां और एक बेटा था। किसी तरह पैसे जोड़कर बच्चों की शादी करवाई। बेटे के पास कोई परमानेंट नौकरी नहीं थी, इसलिए सभी की थोड़ी-बहुत कमाई से घर चलता था।

पति की तबियत ख़राब होने पर उठाया कदम

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2014 में लता के पति भगवान की तबीयत काफी बिगड़ गई और उन्हें चक्कर आने और छाती में दर्द की शिकायत होने लगी। डॉक्टर्स ने MRI कराने को कहा। इस टेस्ट के लिए पांच हज़ार रूपए का खर्चा आना था और लता के पास इतने पैसे नहीं थे। उन्हें कहीं से पता चला कि बारामती में मैराथन होने वाली है और जीतने वाले को 5,000 रुपए का इनाम दिया जाएगा। उस समय लता के गांव के बच्चों ने उनसे कहा कि दादी तुम बहुत अच्छा दौड़ती हो, इसलिए रेस में हिस्सा ले लो। लता ने लोगों के सुझाव पर रेस में भाग लिया और रेस में भागने के लिए पहुंच गईं। दौड़ शुरू हुई, तो कुछ देर बाद लता की चप्पलें टूट गईं. उन्होंने उस पर ध्यान नहीं दिया और नंगे पैर ही बस भागती गईं और आखिर में रेस जीत ली। इनाम के पैसे मिले, तो पति का इलाज कराया।

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जीते हैं कई इनाम

पहली बार पति के इलाज के लिए मैराथन में दौड़ने और जीतने के बाद लता को हौसला मिला और उन्होंने कई अन्य रेसों में भी हिस्सा लेना शुरू कर दिया लता ने 2014 में तीन किलोमीटर की मैराथन में हिस्सा लिया था। अब तक वो कई बार मैराथन दौड़ चुकी हैं और कई शील्ड, प्राइज़ अपने नाम कर चुकी हैं।

लता पर बनी मराठी फिल्म

लता के जीवन पर फिल्म भी बन चुकी है जिसका नाम ‘लता भगवान करे’ है। फिल्म पिछले साल ही रिलीज़ हुई थी और जिसे अभी 17 जनवरी को ही फिल्म नवीन देशाबोइना ने मराठी भाषा में बनाया था। इस फिल्म में लता का किरदार खुद लता भगवान करे ने ही निभाया है। एक मीडिया इंटरव्यू में लता ने बताया कि " मैं बस पैसे कमाना चाहती थी. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे फिल्म में काम करने का मौका मिलेगा "

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वास्तव में लता का अपने पति की रक्षा के लिए इतना बड़ा कदम सराहनीय है और हम सभी को इससे प्रेरणा लेनी चाहिए। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।

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