आप किसी से फोन पर बात कर रहे हैं और उन्होंने आपकी आवाज की तारीफ कर दी। आप गाना गाएं तो लोगों ने फिर आपकी आवाज की तारीफ कर दी, लेकिन आपको खुद कभी अपनी आवाज पसंद क्यों नहीं आती? जब आप किसी को रिकॉर्डिंग भेजते हैं तो जाहिर है अपनी आवाज सुनते होंगे और ऐसे में अक्सर आप अपनी ही आवाज को सुनकर नाक-मुंह सिकोड़ लिया करते हैं।
कुछ लोगों को तो अपनी आवाज सुनने का फोबिया तक होता है। जी हां, अपनी आवाज न सुन पाने के इस फोबिया का नाम 'वॉइस कंफ्रंटेशन' है जिसमें आपको खुद की ही आवाज बिल्कुल पसंद नहीं आती।
यह हमें कैसे पता चला यह सोच रहे हैं? अरे यह सिर्फ आपकी समस्या नहीं है। यह समस्या आपकी, मेरी और हमारे जैसे कई भाई-बहनों की है। मगर क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है कि रिकॉर्डिंग्स में भेजी गई हमारी ही आवाज, हमें खुद को पसंद क्यों नहीं आती है? इसका बड़ा सरल और सीधा कारण है, लेकिन उसके लिए थोड़ी साइंस समझनी जरूरी है। तो फिर चलिए बिना देर किए इस आर्टिकल में जानें क्या है इसके पीछे का बड़ा कारण!
दरअसल जब आप लोगों को बात करते हुए सुनते हैं ध्वनि तरंगें यानि साउंड वेव्स हवा के माध्यम से आपके कानों में जाती हैं। इससे आपके कान के जो ड्रम हैं वह हिलते हैं और आपका मस्तिष्क तब उन कंपनों को साउंड में बदल देता है।
हालांकि, जब आप बात कर रहे होते हैं तो आपके वोकल कॉर्ड और वायुमार्ग में भी कंपन होती है। इसका सीधा और सरल मतलब यह है कि आपको साउंड के दो स्रोत प्राप्त होते हैं: ध्वनि तरंगें जो आपकी अपनी आवाज़ से आपके कानों में जाती हैं और दूसरा वोकल कोर्ड्स की वाइब्रेशन।
कई रिसर्च से वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि जब हम बात करते हैं तो ऐसा लगता है जैसे हर कोई स्पीकर के माध्यम से आवाज सुनता है, लेकिन हम इसे अपने सिर के अंदर एक केव कॉम्प्लेक्स के माध्यम से सुनते हैं। साउंड हमारे साइनस के चारों ओर जाती है, हमारे सिर के सभी खाली स्थान और हमारे कानों के मध्य भाग, जो अन्य लोगों की तुलना में हमारे सुनने के तरीके को बदल देता है।
लोग अपनी आवाज को उन दो सोर्स के कॉम्बिनेशन मानने लगते हैं, लेकिन बाकी सभी लोग सिर्फ एक्सटर्नल स्टीमिलस ही सुनते हैं। यही कारण है कि जब आप अपनी आवाज को रिकॉर्डिंग में सुनते हैं तो वह एकदम अलग सुनाई पड़ती है। आप दो साउंड्स के कॉम्बिनेशन की बजाय केवल एक्सटर्नल स्टीमुलस सुनते हैं।I
अगर मैं इसे आपको बिल्कुल सीधी और सरल हिंदी में कहूं तो यह कुछ ऐसा है कि हम जब बोल रहे हैं तो हमारी आवाज सिर की हड्डी से होते हुए हमारे कानों तक पहुंचती है जिसकी वजह से आवाज का बेस तो बढ़ जाता है लेकिन पिच घट जाती है।
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चलिए अपनी आवाज पसंद न आना अलग बात है, लेकिन कहीं आप उन लोगों में से तो नहीं हैं जिन्हें अपनी आवाज की पहचान ही नहीं होती। ज्यादातर लोग अपनी आवाज रिक़र्डिंग्स में सुनने के इतने आदि नहीं होते हैं और इसलिए वह अपनी असल आवाज पहचान नहीं पाते।
एक अध्ययन, जिसके दौरान लोगों को उनकी खुद की आवाज की रिकॉर्डिंग सुनाई गई थी, में पाया गया कि सिर्फ 38% लोग ही अपनी आवाज को तुरंत पहचान पाए। जब हम रिकॉर्डिंग में अपनी आवाज सुनते हैं, तो यह अक्सर आश्चर्यजनक और निराशाजनक महसूस कर सकता है। हममें से वो लोग जो बार-बार अपनी आवाज सुनते हैं, अपने सिर में सुनाई देने वाली ध्वनि के अभ्यस्त हो जाते हैं, भले ही वह खराब लगे।
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अगर कोई वाकई अपनी आवाज से परेशान है तो इसके लिए वह किसी ट्रेन्ड वॉइस थेरापिस्ट की मदद ले सकता है। ऐसे थेरापिस्ट मरीज की मदद उनके कैडेन्स को बेहतर बनाने में करते हैं। इतना ही नहीं, उनकी पिच की रिद्म को ठीक करने के लिए भी कई तरह की एक्सरसाइज करवाई जाती है। सरल शब्दों में कहें तो इसे ठीक वैसा ही समझें जैसा कि फिजियोथेरपी होती है, फर्क बस इतना है कि यह फिजियोथेरेपी आवाज के लिए होती है (आवाज को सलामत रखने के टिप्स)।
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