कैंसर एक खतरनाक बीमारी है जो धीरे-धीरे लोगों को अपनी चपेट में ले रही हैं। कैंसर का नाम सुनते ही अच्छे-अच्छों के पसीने छूटने लगते हैं क्योंकि समय पर कैंसर की जानकारी और इलाज ना होने पर लोग अपनी जान भी गवां सकते हैं। आज पूरी में दुनिया इस घातक बीमारी के कारण लोग अपनी जिंदगी से लड़ाई लड़ रहे हैं। जहां एक ओर पुरूष मुंह और फेफड़े का कैंसर दूसरी ओर महिलाओं में ब्रेस्ट और सर्वाइकल कैंसर से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही हैं। इसके अलावा पेट का कैंसर भी लोगों में बहुत ज्यादा पाया जा रहा है। कैंसर को जड़ से खत्म करने के लिए वैज्ञानिक इसका इलाज खोज रहे हैं और लोग इस समस्या से निपटने के लिए आयुर्वेद की तलाश कर रहे हैं। क्योंकि आयुर्वेद में गंभीर बीमारियों से लड़ने की क्षमता है और भारत में सदियों से आयुर्वेदिक पद्धति द्वारा बीमारियों का इलाज किया जा रहा है। इसके अलावा कई रिसर्च ने भी इस बात को साबित किया है कि आयुर्वेद से आप कैंसर को रोक सकते हैं।
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हाल में हुई एक रिसर्च ने पेट के कैंसर के लिए हल्दी को फायदेमंद बताया है। जी हां नई रिसर्च के अनुसार कक्यूर्मा लॉन्गा (हल्दी के पौधे) की जड़ों से निकले करक्यूमिन को पेट का कैंसर रोकने या उससे निपटने में मददगार पाया गया है। लेकिन सबसे पहले हम पेट के कैंसर के कारणों और कारकों के बारे में जान लेते हैं।
इस बारे में हेल्थ केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष पद्मश्री डॉक्टर के के अग्रवाल का कहना हैं कि पेट का कैंसर कई वर्षों में धीरे-धीरे विकसित होता है, इसलिए शुरूआत में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। लेकिन सामान्य लक्षणों में भूख कम होना, वजन में कमी, पेट में दर्द, अपच, मतली, उल्टी (ब्लड के साथ या बिना उसके), पेट में सूजन या तरल पदार्थ का निर्माण, और स्टूल में ब्लड आना शामिल हैं। इन लक्षणों में से कुछ का इलाज किया जाता है, क्योंकि वे दिखाई देते हैं और गायब हो जाते हैं, जबकि अन्य लक्षण उपचार के बावजूद जारी रहते हैं।
पेट का कैंसर के मुख्य कारकों में बहुत ज्यादा तनाव, स्मोकिंग और अल्कोहल जिम्मेदार हो सकते हैं। स्मोकिंग विशेष रूप से इस स्थिति की संभावना को बढ़ाता है। भारत में कई जगहों पर, आहार में फाइबर सामग्री कम रहती है। अधिक मसालेदार और मांसाहारी भोजन के कारण पेट की परत में सूजन हो सकती है, जिसे अगर छोड़ दिया जाए तो कैंसर हो सकता है।
फेडरल यूनिवर्सिटी ऑफ साओ पाउलो (यूनिफैस्प) और फेडरल यूनिवर्सिटी ऑफ पारा (उफ्पा) के शोधकतार्ओं ने ब्राजील में यह जानकारी दी। करक्यूमिन के अलावा, हिस्टोन गतिविधि को संशोधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अन्य यौगिकों में कोलकेल्सीफेरोल, रेस्वेराट्रोल, क्वेरसेटिन, गार्सिनॉल और सोडियम ब्यूटाइरेट (आहार फाइबर के फरमेंटेशन के बाद आंत के बैक्टीरिया द्वारा उत्पादित) प्रमुख थे।
वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड इंटरनेशनल के पेट के कैंसर संबंधी आंकड़ों के अनुसार, दुनियाभर में हर साल गैस्ट्रिक कैंसर के अनुमानित 9,52,000 नए मामले सामने आते हैं, जिसमें लगभग 7,23,000 लोगों (यानी 72 प्रतिशत मृत्यु दर) की जान चली जाती है। भारत में, पेट के कैंसर के लगभग 62,000 मामलों का हर साल (अनुमानित 80 प्रतिशत मृत्यु दर के साथ) निदान किया जाता है।
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पेट के कैंसर के लिए पर्याप्त फॉलो-अप और पोस्ट-ट्रीटमेंट केयर की आवश्यकता होती है, इसलिए नियमित जांच के लिए हेल्थ टीम के संपर्क में रहना महत्वपूर्ण है। पहले कुछ सालों के लिए हेल्थ टीम से हर 3 से 6 महीने में मिलने की सिफारिश की जाती है। उसके बाद सालाना मिला जा सकता है। हालांकि पेट के कैंसर के निदान के बाद जीवन तनावपूर्ण हो जाता है लेकिन परेशान होने की जरूरत नहीं है क्योंकि सही उपचार, जीवनशैली में बदलाव और डॉक्टरों के समर्थन से मरीज ठीक हो सकता है।
Source: IANS
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