माना कि आजकल स्मार्टफोन आपकी जरूरत बन गया है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप इसमें इतना खो जाए कि आपको किसी और से कोई मतलब ही ना रहें। आजकल जिसे देखो वह अपने स्मार्टफोन में ही बिजी रहता है, चाहे वह घर हो या बस या फिर मेट्रो। किसी के पास भी दूसरे से बात करने की समय ही नहीं हैं। लेकिन क्या आप जानती हैं कि स्मार्टफोन का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल बुरी आदत के समान है। जो महिलाएं अपने स्मार्टफोन का अधिक उपयोग करते हैं, वे बहुत अलग-थलग महसूस करती हैं और अकेलापन, उदासी और चिंता महसूस करती हैं। जी हां एक नए अध्ययन से इस बात का खुलासा हुआ है।
एक अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है। अध्ययन के मुताबिक, जो लोग स्मार्टफोन का अधिक उपयोग करते हैं, वे लगातार गतिविधियों के बीच फोन में खो जाते हैं और अपना फोकस नहीं रख पाते है। फोन के सही उपयोग के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है कि इस तरह की लत हमें मानसिक रूप से थका देती है और आराम नहीं करने देती।
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हार्ट केयर फाउंडेशन (एचसीएफआई) के अध्यक्ष डॉक्टर के. के. अग्रवाल ने कहा, हमारे फोन और कंप्यूटर पर आने वाले नोटिफिकेशन, कंपन और अन्य अलर्ट हमें लगातार स्क्रीन की ओर देखने के लिए मजबूर करते हैं। शोध के मुताबिक, यह अलर्टनेस कुछ वैसी ही प्रतिक्रिया का परिणाम है जैसा कि किसी खतरे के समय या हमले के समय प्रतीत होता है। उन्होंने कहा, इसका मतलब यह है कि हमारा ब्रेन लगातार एक्टिव और सतर्क रहता है, जोकि इसकी स्वस्थ कार्य प्रणाली के अनुरूप नहीं है। हम लगातार उस गतिविधि की तलाश करते हैं और उसकी अनुपस्थिति में बेचैन, उत्तेजित और अकेलापन महसूस होता है।
डॉक्टर अग्रवाल ने कहा, अगर हमें 30 मिनट तक कोई कॉल प्राप्त न हो तो चिंता होने लगती है। करीब 30 प्रतिशत मोबाइल उपयोगकर्ताओं में यह समस्या होती है। फैंटम रिंगिंग 20 से 30 प्रतिशत मोबाइल उपयोगकर्ताओं में मौजूद होती है। आपको ऐसा महसूस होता है कि आपका फोन बज रहा है और आप बार बार उसे चैक करते हैं, जबकि ऐसा सच में होता नहीं है।
अध्ययन के मुताबिक, सोशल मीडिया टेक्नोलॉजी की लत सोशल लाइफ पर नेगेटिव असर डाल सकती है। इसके जरिए होने वाला कम्युनिकेशन आधा-अधूरा होता है और इसे आमने सामने के कम्युनिकेशन का विकल्प नहीं माना जा सकता। इसमें बॉडी की भाषा और अन्य रिश्तों की गरमाहट का अभाव होता है।
डॉक्टर अग्रवाल ने बताया, गैजेट्स के माध्यम से जानकारी प्राप्त करने के कारण ब्रेन के ग्रे मैटर में कमी आती है, जोकि संज्ञान और भावनात्मक नियंत्रण के लिए जिम्मेदार होता है। इस डिजिटल युग में, अच्छी हेल्थ की कुंजी है संयम। हममें से अधिकांश लोग ऐसे उपकरणों के दास बन गए हैं, जो वास्तव में हमें फ्रीडम प्रदान करने के लिए थे और हमें जीवन का अनुभव प्रदान करने और लोगों के साथ रहने हेतु अधिक समय देने के लिए बनाए गए थे। हम अपने बच्चों को भी उसी गलत रास्ते पर ले जा रहे हैं।
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डॉक्टर अग्रवाल ने इससे बचाव का सुझाव देते हुए कहा, इलेक्ट्रॉनिक कर्फ्यू का मतलब है सोने से 30 मिनट पहले किसी भी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट का उपयोग न करना। हर तीन महीने में सात दिनों के लिए फेसबुक से अवकाश लें। हफ्ते में एक बार पूरे दिन सोशल मीडिया के इस्तेमाल से बचें। मोबाइल का उपयोग केवल जरूरी बात करने के लिए करें। दिन में तीन घंटे से अधिक समय तक कंप्यूटर का उपयोग न करें।
उन्होंने कहा, अपने मोबाइल टॉकटाइम को दिन में दो घंटे से अधिक समय तक सीमित करें। दिन में एक से अधिक बार अपनी मोबाइल बैटरी रिचार्ज न करें। अस्पताल के सेटअप में मोबाइल भी संक्रमण का स्रोत हो सकता है, इसलिए, इसे हर रोज कीटाणुरहित करना आवश्यक है।
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