“घोलकर जहर खुद ही हवाओं में, हर शख्स मुंह छुपाए घूम रहा है” या फिर “सीने में जलन आंखों में तूफान सा क्यों है?” कुछ इस तरह के दिलचस्प पोस्ट आपको सोशल मीडिया साइट्स पर इन दिनों नजर आएंगे। सोशल मीडिया साइट्स पर घुएं की कुछ फोटो डालकर या फिर कुछ दिलचस्प लाइनें लिखकर हम अपना frustration जरूर निकाल सकते हैं लेकिन सॉरी ये समस्या का हल नहीं है। हल तो वो भी नहीं है कि हर बात पर बच्चों के स्कूल बंद कर दिए जाएं और हल वो भी नहीं है कि प्रदूषण से बचने के टिप्स अजमाकर ये सोच लिया जाएं कि ये तो सिर्फ नवम्बर तक की बात है।
दिल्ली की हवा एक बार फिर आपकी सेहत और जेब पर असर डालने आ गई है। कारण सबको पता है लेकिन समाधान में किसी की भी दिलचस्पी नहीं है। हर कोई बस यही सोच रहा है कि नवम्बर तक की बात है फिर सब ठीक हो जाएगा। हर उम्र के लोगों के फेफड़े खराब हो रहे हैं। प्रदूषण की समस्या को लेकर हर जगह प्रेस कॉन्फ्रेंस तो जरूर हो रही हैं, लेकिन उनमें भी इस समस्या का हल नहीं दिया जा रहा है।
56 लाख रजिस्टर्ड कारों का क्या ?
बस होगा क्या एक दिन कुछ लोग उठेंगे और बोलेंगे कि नीम का पेड़ लगाओ, तुलसी को घर के आंगन में लगाओ या फिर पीपल का पेड़ लगाकर प्रदूषण को कम करो। हां, ये सही बात है कि पेड़ लागाने से प्रदूषण को कम किया जा सकता है, लेकिन उन आकंड़ों का क्या जो ये बोलते हैं कि दिल्ली में अभी तक लगभग 56 लाख के आसपास कारें रजिस्टर्ड हो चुकी हैं और यदि ऐसे में एनसीआर के आंकड़े भी शामिल कर लिए जाए, तो वो आंकड़े कितने हैरानी वाले होंगे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है।
दिल्ली और आसपास के इलाकों में प्रदूषण के बढ़ते स्तर से खतरनाक स्थिति बन गई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार एक्यूआई (एयर क्वालिटी इंडेक्स) का स्तर 100 तक सामान्य है, हालांकि दिल्ली का एक्यूआई आमतौर पर 300 से 400 के बीच रहता है लेकिन पिछले कुछ दिन से ये स्तर 440 तक भी पहुंच गया था। प्रदूषण का स्तर वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशन (WHO) द्वारा घोषित सुरक्षित स्तर से 30 गुणा ज्यादा है।
मास्क से नहीं चलेगा काम ऑक्सीजन सिलेंडर की होगी जरूरत
दिल्ली-एनसीआर की सड़कों पर स्मॉग से बचने के लिए कई लोग मुंह पर मास्क लगाए हुए नजर आ रहे हैं और साथ ही एयर प्यूरिफायर का यूज़ भी बढ़ता ही जा रहा है। आज मार्केट में लगभग 300 से अधिक किस्म के प्यूरिफायर उपलब्ध हैं।
Medanta हॉस्पिटल के Respiratory & Sleep Medicine के Director डॉक्टर आंनद जयसवाल का कहना है, “इन दिनों अस्थमा मरीजों की सख्यां बढ़ती जा रही है। एक समय ऐसा आएगा कि लोगों को सांस से जुड़ी गंभीर बीमारियां होने लगेंगी। जिसके लिए उन्हें हर थोड़े समय में हॉस्पिटल में एडमिट होना पड़ा करेगा। प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर बच्चों के फेफड़ों पर पड़ रहा है जिनके फेफड़े अभी सही तरीके develop भी नहीं हुए हैं। सड़कों पर लोग मास्क लगाए हुए हैं और साथ ही हमारे पास ज्यादातर ऐसे मरीज आ रहे हैं जिन्होंने अपने घरों में air purifier लगा लिया है। हम उस stage पर आ गए हैं जब हम सीधे सांस भी नहीं ले पा रहे हैं। ऐसे में वो दिन भी दूर नहीं जब लोग oxygen cylinder के सहारे सांस ले पाएंगे।“
फेमस आयुर्वेद चिकित्सा एक्सपर्ट डॉक्टर राखी मेहरा का कहना है, “एक व्यक्ति एक सांस लेते टाइम नाइट्रोजन 79% लेता है और छोड़ता 79% ही है। ऑक्सीजन 20% लेता है और छोड़ने में 16%, कार्बन डाइऑक्साइड सांस लेने में 0.04% और छोड़ने में भी 0.04% ही रहता है। अन्य गैस 0.96% और छोड़ते समय 0.96% ही है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि फेंफड़ों के स्वास्थ्य के लिए ऑक्सीजन कितनी जरूरी है। अगर ऐसे में प्रदूषण का स्तर देखा जाए तो ऐसा लगता है मानो हम मृत्युलोक की तरफ बढ़ रहे हो। आजकल तो लोग मास्क लगाकर प्रदूषण से बचने की कोशिश कर रहे हैं जबकि ऐसा नहीं है। वैसे वो दिन भी दूर नहीं जब लोगों को oxygen cylinder के सहारे सांस लेनी पड़ेगी।“
अगर आप अभी भी नहीं सोच पा रहे हैं कि प्रदूषण की समस्या से बचने के बदले हमें इसका हल निकालना होगा तो आप एक बार इन फोटो पर अपनी नजर डालिए। हो सकता है आपको ये फोटो funny लगे लेकिन एक बार ध्यान से देखना फिर सोचना कि प्रदूषण कैसे हमारे भविष्य को पूरी तरह बदल कर रख सकता है।
जब बच्चे को पैदा होते ही सांस लेने के लिए मास्क या फिर oxygen cylinder की जरूरत पड़े।
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लड़कियां फैशन के लिए हद से ज्यादा क्रेज़ी होती है। ऐसे में आपकी खूबसूरत ड्रेस के ऊपर मास्क कैसा लगेगा या फिर आप अपने पर्स के बदले oxygen cylinder साथ में लेकर चले आपको कैसा लगेगा।
छोटे-छोटे मासूम बच्चों के स्कूल बैग का बर्डन कम नहीं होता है। ऐसे में उन्हें oxygen cylinder का भार भी उठाना पड़े तो। स्कूल जाते हुए बच्चों को मास्क पहने देख यहीं लगता है जैसे धीरे-धीरे मास्क अब उनकी स्कूल यूनिफॉर्म का हिस्सा ही बन जाएगा।
शादी के टाइम भी कुछ नजारा ऐसा ही होगा।
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