विटामिन डी की कमी आज लोगों के बीच में बहुत ही आम हो गई है। ऐसा लगातार एसी में बैठने और इस धारणा में विश्वास करने से कि धूप में निकलेंगे तो काले हो जाने के डर से इस विटामिन की कमी पाई जाती है। लेकिन एक नई रिसर्च के अनुसार मोटी महिलाओं में विटामिन डी की कमी का खतरा कम होता है। जी हां मोटे लोगों को ऑस्टियोपोरिसिस होने का खतरा काफी ज्यादा रहता है। एक हालिया अध्ययन से यह भी सामने आया है कि विटामिन डी के कम लेवल का सम्बंध पेट की चर्बी से है। परम्परागत रूप से विटामिन डी के कम लेवल का सम्बंध ऑस्टियोपोरोसिस है, जिसका प्रसार अधिकतर महिलाओँ में है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-4 (2015-2016) के अनुसार, गुडगांव की 15 से 49 साल आयुवर्ग की शहरी महिलाओँ में से 20% से भी अधिक मोटापे की शिकार हैं, जो कि ऑस्टियोपोरोसिस का एक प्रमाणित कारण है। 50 साल से ऊपर की आयु में अधिकतर महिलाओँ का मेनोपॉज हो जाता है, जो कि हड्डियोँ की समस्याएं बढने का एक अन्य कारण है।
मोटापे से विटामिन डी का खतरा
कोलम्बिया एशिया हॉस्पिटल, गुडगांव के डॉ विभोर सिंघल, कंसलटेंट ऑर्थोपेडिक्स एंड जॉइंट रिप्लेसमेंट का कहना है, “अध्ययन के अनुसार, जिसकी जितनी चौंडी कमर है, उसे विटामिन डी की कमी होने का खतरा उतना ही अधिक होता है। पूरे शरीर के मोटापे और पेट के मोटापे दोनों का सम्बंध विटामिन डी के स्तर से है। यह ऑस्टियोपोरोसिस का प्रत्यक्ष कारण बन सकता है, जो कि भारतीय महिलाओँ के बीच एक बडी हेल्थ प्रॉब्लम है। बीमारी अचानक फ्रैक्चर अथवा हड्डियोँ में दर्द के रूप में सामने आती है।“
ऑस्टियोपोरोसिस का रहता है खतरा
भारत में करीब 80 प्रतिशत महिलाएं, जिसका मतलब है हर 4 में 3 से भी अधिक महिलाएं ऑस्टियोपोरोसिस से जूझ रही हैं और 50 साल से अधिक उम्र की मीनोपॉजल महिलाओँ को खतरा और अधिक होता है। धूप के सम्पर्क में न आने वाली अथवा कम आने वाली महिलाओँ को उनकी तुलना में अधिक खतरा रहता है जो बाहर रहती हैं, क्योंकि विटामिन डी की कमी से ऑस्टियोपोरोसिस हो सकता है। यह एक ऐसी बीमारी है जो हड्डी की संरचना को प्रभावित करती है और बोन मास को भी कम कर देती है।
ऑस्टिपोरोसिस के प्रमुख लक्षण
ऑस्टिपोरोसिस का प्रमुख लक्षण है कमर, कलाई, घुटने में दर्द, सीधे चलने में कठिनाई महसूस होना अथवा आगे झुकने में दिक्कत और बेहद आसानी से फ्रैक्चर हो जाना। धूप के सम्पर्क में कम आने से बॉडी में विटामिन डी की कमी हो जाती है और इसके चलते महिलाओँ के बॉडी में कैल्शियम का एब्जॉर्प्शन ठीक ढंग से नहीं होता है, भारत में ऑस्टियोपोरोसिस का प्रसार अधिक होने का यह सबसे बडा कारण है। विटामिन डी बॉडी को भोजन व सप्लिमेंट के जरिए मिलने वाले कैल्शियम को समाहित करने में मदद करता है, और भरपूर कैल्शियम व विटामिन जीवन भर हड्डियोँ का स्वस्थ घनव बरकरार रखने में सहायक होते हैं। ऑस्टियोपोरोसिस के अन्य कारण हैं जल्द मेनोपॉज, अधिक उम्र, अपर्याप्त आहार, अनुवांशिक रूप से इंफेक्शन के खतरे के दायरे में आना, बीमारी का देर से पता लगना और हड्डियोँ के स्वास्थ्य को लेकर ज्ञान की कमी।
एस्ट्रोजन हार्मोन का लेवल हो जाता है कम
डॉक्टर विभोर कहते हैं, ‘हड्डियां जीवित टिश्युओं से बनी होती हैं और बॉडी में हड्डियोँ के ‘टर्न ओवर’की प्रक्रिया 30 साल की उम्र तक लगातार चलती रहती है, यह पुरानी हड्डियोँ को नई से से रिप्लेस करने की प्रक्रिया है। 30 की उम्र के बाद नई हड्डियोँ का उत्पादन कम होता जाता है और 50 की उम्र के बाद हमारी हड्डियोँ का घिसाव शुरू हो जाता है। महिलाओँ में, मेनोपॉज का दौर ऐसा होता है जिसमेँ एस्ट्रोजन हार्मोन की स्तर कम हो जाता है, जिसके चलते हड्डियोँ का घनत्व पहले की तुलना में कम हो जाता है। छोटी और पतली महिलाओँ में फ्रैक्चर और हड्डियोँ के टूटने का खतरा बढ जाता है।“
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उन लोगोँ में ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा और अधिक होता है जो लोग धूम्रपान करते हैं अथवा अल्कोहल लेते हैं। एक हेल्दी और कैल्शियम से भरपूर भोजन जिसमेँ दही, दूध, पनीर, अंडा आदि शामिल हो, लेँ और सक्रिय जीवन शैली अपनाएं, धूम्रपान से दूर रहेँ, अल्कोहल नियंत्रित मात्रा तक सीमित रखकर पुरुषोँ व महिलाओँ दोनोँ में ही ऑस्टियोपोरोसिस के खतरे को दूर रखा जा सकता है। अपने नियमित के भोजन में सेब, नारियल का तेल और अनन्नास शामिल करेँ, ये चीजेँ हड्डियोँ की सेहत के लिए फायदेमंद होती हैं। अनुमानोँ के मुताबिक, भारत में करीब 2.5 करोड लोग ऑस्टियोपोरोसिस अथवा आर्थराइटिस से पीडित हैं; आने वाले वर्षोँ में यह संख्या बढकर 3.6 करोड तक हो सकती है। ऑस्टियोपोरोसिस की वजह से 15 लाख फ्रैक्चर होते हैं।
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