भारत में हर 2 घंटे में एक महिला की मौत गर्भपात के दौरान कुछ बड़ी गलती के कारण हो जाती है। ग्रामीण इलाकों में तो हालात और भी खराब हैं, जहां गुणवत्ता वाली हेल्थ सुविधाओं तक लोगों की पहुंच न के बराबर है और गर्भपात से जुड़ी सामाजिक परेशानियां भी हैं। जी हां गर्भ से छुटकारा पाने की तलाश में महिलाएं कभी-कभी असुरक्षित तरीकों का भी सहारा लेती हैं। वे या तो खुद कोशिश करती हैं या किसी दूसरे की मदद लेती हैं जिनका न तो पर्याप्त मेडिकल चेकअप होता है न ही उचित मेडिकल सुविधाओं तक पहुंच पाती है। ऐसे असुरक्षित गर्भपात गंभीर हेल्थ प्रॉब्लम्स, मसलन अपूर्ण गर्भपात, ब्लीडिंग और आंतरिक अंगों को गंभीर क्षति का कारण बन सकते हैं।
हालांकि भारत में कई वर्षों पहले गर्भपात को कानूनी मान्यता दे दी गयी थी। लेकिन आज तक महिलाओं में इसे लेकर जागरूकता नहीं है। महिलाएं अभी भी गर्भपात को गैरकानूनी समझती हैं और छुपकर असुरक्षित और गंदी जगहों पर गर्भपात करवाती हैं। जिससे हर साल न जाने कितनी महिलाएं अपनी जान गवां बैठती हैं। जबकि महिला का अपनी बॉडी पर पूरा अधिकार है। महिला को इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। इस बारे में पद्मश्री डॉक्टर के. के. अग्रवाल का कहना है कि ''देश में आज भी महिलाओं की एक बड़ी आबादी गर्भपात के अपने अधिकारों से अनजान हैं और वे असुरक्षित गर्भपात का सहारा लेती है, जो चिंता का विषय है। उन्होंने बताया कि देश में असुरक्षित गर्भपात महिलाओं की असमय मृत्यु का एक प्रमुख कारण है।'' स्त्री रोग विशेषज्ञों की माने तो देश की राजधानी दिल्ली में गर्भपात के 10 मामलों में से सिर्फ एक के बारे में सूचना दी जाती है।
खतरनाक उपायों का सहारा लेती हैं महिलाएं
डॉक्टर के. के. अग्रवाल के अनुसार, ''गर्भपात पर प्रतिबंध लगाने से महिलाओं को गर्भावस्था समाप्त करने से नहीं रोका जा सकता है, जबकि इससे अनचाहे गर्भ को समाप्त करने के लिए खतरनाक उपायों का सहारा लेने का जोखिम बढ़ जाता है।''
हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया (एचसीएफआई) के अध्यक्ष अग्रवाल ने कहा, "गर्भपात की उच्च दर की एक वजह यह है कि कई इलाकों में अच्छे गर्भनिरोधक नहीं मिलते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अनियोजित गर्भावस्था की दर बढ़ जाती है। साथ ही गर्भपात की गोलियां असरदार और सेफ हो सकती हैं, लेकिन तब जब गोलियों का सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए।''
उन्होंने ये भी कहा, "उपयोग की सही जानकारी नहीं होने पर महिलाओं की हेल्थ पर इसके हानिकारक प्रभाव होते हैं जो घातक हो सकते है। केवल कुछ प्रतिशत महिलाओं के पास ही गर्भपात की दवा हो सकती है। जटिलताओं के मामले में इन गोलियों का उपयोग करने और गुणवत्ता स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच के बारे में सटीक जानकारी प्रदान करना अनिवार्य हो जाता है।"
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गर्भनिरोधक और गर्भपात पर शिक्षा और जागरूकता है जरूरी
डॉक्टर अग्रवाल ने आगे कहा, "गर्भनिरोधक और गर्भपात पर शिक्षा और जागरूकता की जरूरत है। स्थिति का आकलन करना, सुरक्षित गर्भपात को एक वास्तविकता बनाना और देश भर में इसके लिए सुविधा उपलब्ध कराना समय की जरूरत है। यह सुनिश्चित करने की भी जरूरत है कि समाज के सभी वर्गों की महिलाओं को सही जानकारी उपलब्ध हो।"
उन्होंने कहा कि भारत में गर्भपात एक अत्यधिक प्रतिबंधित प्रक्रिया है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (1971), एक पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर द्वारा गर्भावस्था के 12 हफ्ते से पहले या दो पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर्स के अनुमोदन से गर्भावस्था के 20 हफ्ते से पहले गर्भपात की इजाजत दी जाती है, लेकिन यह इजाजत तभी दी जाती है जब मां या बच्चे की मेंटल या फिजिकल हेल्थ को खतरा न हो।
उन्होंने कहा, "गर्भावस्था की समाप्ति सर्जरी या मेडिकल रूप से की जा सकती है। हालांकि चिंता वैसे मेडिकल गर्भपात की है, जो उन गोलियों को लेने से होती है जो या तो ओरल रूप से निगली जाती हैं या वेजाइना में डाली जाती हैं। इसलिए सुरक्षित गर्भपात के लिए पब्लिक हेल्थ केयर में सुधार के साथ-साथ जागरूकता कार्यक्रमों के जरिए महिलाओं को दवाओं के गलत उपयोग से रोके जाने की जरूरत है।"
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Source: IANS
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