आज देश में बहुत बड़ी संख्या में लोग न्यू वर्ल्ड सिंड्रोम से प्रभावित है। न्यू वर्ल्ड सिंड्रोम बैक्टीरिया या इंफेक्शन द्वारा होने वाली बीमारी नहीं बल्कि लाइफस्टाइल व आहार संबंधी आदतों के कारण होने वाली बीमारियों का एक कॉम्बिनेशन है। न्यू वर्ल्ड सिंड्रोम से प्रभावित लोग मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हार्ट संबंधी डिजीज आदि जैसी बीमारियों से पीड़ित होते हैं। हैदराबाद के सनशाइन हॉस्पिटल के बरिएट्रिक और लैप्रोस्कोपिक सर्जन डॉक्टर वेणुगोपाल पारीक ने कहा कि न्यू वर्ल्ड सिंड्रोम ट्रेडिशनल डाइट और लाइफस्टाइल में आए बदलाव के कारण होने वाली बीमारी है। न्यू वर्ल्ड सिंड्रोम के लिए पश्चिमी भोजन खासतौर पर जिम्मेदार है। ये सभी फूड्स फैट, नमक, शुगर, कार्बोहाइड्रेट और परिष्कृत स्टार्च आपकी बॉडी में जमा हो जाते हैं और मोटापे का कारण बनते हैं।
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मोटापे के कारण ही डायबिटीज मेलिटस, हाई ब्लड प्रेशर, कार्डियोवैस्कुलर किडनी डिजीज, ब्रेस्ट कैंसर और डिस्प्लिडेमिया आदि बीमारियां होती हैं। भारत में करीब 70 फीसदी शहरी आबादी मोटापे या अधिक वजन की श्रेणी में आती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार भारत में करीब 20 फीसदी स्कूल जाने वाले बच्चे मोटापे से ग्रस्त हैं।
प्रतिस्पर्धा व काम का प्रेशर वाली नौकरियों और आराम ने परंपरागत व्यवसायों व चलने (फिजिकल एक्टिविटी) की आदत को बदल दिया है। इसकी वजह से फिजिकल एक्टिविटी कम और ब्रेन संबंधी परिश्रम अधिक होता है, यह भी न्यू वर्ल्ड सिंड्रोम का एक प्रमुख कारण बन गया है।
नई दिल्ली स्थित प्राइमस अस्पताल के मिनीमल एक्सेस लैप्रोस्कोपिक एवं बरिएट्रिक सर्जन डॉक्टर रजत गोयल बताते हैं कि मोटापा ऐसी स्थिति है जहां पेट में अधिक फैट जमा हो जाती है। बॉडी के बॉडी मास इंडेक्स के अनुसार, पुरुषों में 25 फीसदी वसा और महिलाओं में 30 फीसदी फैट का होना मोटापे की श्रेणी में आता है।
शरीर का वजन सामान्य से अधिक होने पर डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है। अनियंत्रित डायबिटीज के कारण हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक, अंधापन, किडनी फेल्योर व नर्वस सिस्टम को क्षति पहुंचने आदि जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। अधिक वजन वाले लोगों में स्लीप एपनिया की गंभीर बीमारी हो सकती है, यह एक सांस संबंधी बीमारी है जिसमें नींद के दौरान सांस लेने की प्रक्रिया रुक जाती है। नींद की समस्या के अलावा हाई ब्लड प्रेशर व हार्ट फेल्योर की समस्या हो सकती है।
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मोटापाग्रस्त व्यक्ति में अर्थराइटिस की शिकायत भी हो सकती है। अर्थराइटिस जोड़ों को प्रभावित करता है। इसकी वजह से मरीज में यूरिक एसिड का स्तर बढ़ जाता है जिसके कारण जोड़ों में दर्द व सूजन की शिकायत रहती है। बढ़े हुए बॉडी मास इंडेक्स के कारण शरीर में ट्राइग्लिसराइड्स और खराब कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) का लेवल बढ़ जाता है। एलडीएल का हाई लेवल और एचडीएल का लो लेवल एथेरोस्क्लेरोसिस नामक बीमारी का प्रमुख कारण होता हैं इसकी वजह से ब्लड सेल्स सिकुड़ जाती और हार्ट अटैक पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। मोटापाग्रस्त व्यक्ति में जीवन भर कैंसर होने का खतरा बना रहता है। इनमें आंत, ब्रेस्ट व ओसोफेंजियल कैंसर होने की संभावना ज्यादा रहती है।
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