क्या आपको पता है कि डायबिटीज के भी प्रकार होते हैं। दरअसल, डायबिटीज कई कंडीशन का एक ग्रुप है, जिसके दौरान हमारा शरीर पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता है। इसके अतिरिक्त अगर इंसुलिन बन भी रहा है, तो उसे शरीर यूज़ नहीं कर पाता है।
इसके कारण हमारा शरीर चीनी को ब्लड से सेल्स तक पहुंचाने में असफल होती है और इसी के कारण हाई ब्लड शुगर लेवल की समस्या हो सकती है। यह तो आपको भी पता होगा कि ग्लूकोज, जो चीनी के रूप में हमारे खून में पाया जाता है, एनर्जी का एक महत्वपूर्ण सोर्स होता है। इंसुलिन की कमी या रेजिस्टेंस के कारण ब्लड में बिल्डअप होने लगता है, जिससे कई बीमारियां जन्म लेती हैं।
डायबिटीज को लेकर लोगों को कई सारी कंफ्यूजन होती हैं। इसकी अलग स्टेज होती हैं और लोग उन्हें समझने में अक्सर गलती करते हैं। फंक्शनल हार्मोनल क्लीनिकल न्यूट्रिशनिस्ट शिखा गुप्ता ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर डायबिटीज की इन स्टेज के बारे में विस्तार से समझाया है। आइए आप भी एक्सपर्ट से डायबिटीज के बारे में जानें।
1. इंसुलिन प्रतिरोध:
शिखा बताती हैं कि इस स्थिति में जब सेल इंसुलिन का प्रतिरोध करने लगते हैं, तो ग्लूकोज खून में प्रेशर बनाने लगता है। इससे पैनक्रियाज में ज्यादा इंसुलिन बनाने का प्रेशर बिल्ड करता है, ताकि ग्लूकोज को प्रभावी तरीके से लिया जा सके। इस पहली स्टेज में फास्टिंग इंसुलिन इंडिकेटर पर हाई नजर आता है। यह अक्सर टाइप 2 मधुमेह से पहले होता है।
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2. प्रीडायबिटीज:
प्रीडायबिटीज से पीड़ित लोगों में बल्ड का स्तर सामान्य से अधिक होता है, लेकिन इतना अधिक नहीं होता कि उन्हें टाइप 2 मधुमेह के रूप में क्लासिफाई किया जा सके। यह एक वॉर्निंग साइन होता है, जो मधुमेह के विकास के हाई रिस्क का संकेत देता है।
दरअसल, जब पैनक्रियाज इंसुलिन रिलीज करके थक जाते हैं और ग्लूकोज को सेल्स ढंग से ले भी नहीं पाते,तब यह ब्लड ग्लूकोज लेवल को बढ़ाता है।
यह दूसरी स्टेज होती है, जिसमें आपका फास्टिंग ग्लूकोज बॉर्डरलाइन पर आ सकता है।
3. टाइप 2 मधुमेह:
यह एक क्रॉनिक कंडीशन है जहां शरीर इंसुलिन का ठीक से उपयोग नहीं करता है, जिससे ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाता है। यह आमतौर पर समय के साथ विकसित होता है, अक्सर इंसुलिन प्रतिरोध स्टेज के बाद।
इस तीसरी स्टेज में आपका फास्टिंग ग्लूकोज और पीपी ग्लूकोज बढ़ा हुआ आता है। इस स्टेज में इंसुलिन फंक्शनल होता है, लेकिन सेल रेजिस्टेंस ब्लड ग्लूकोज को बहुत ज्यादा बढ़ाते हैं।
4. टाइप 1 मधुमेह:
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यह एक ऑटोइम्यून स्थिति है जहां शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली पैनक्रियाज में इंसुलिन-प्रोड्यूसिंग सेल्स पर हमला करती हैं और उन्हें नष्ट कर देती हैं। यह आमतौर पर पहले ही विकसित हो जाता है और इसके लिए आजीवन इंसुलिन उपचार की आवश्यकता होती है।
यह सबसे गंभीर और चौथी स्टेज है, जिसमें पैनक्रियाज के बीटा सेल्स काम करना बंद कर देते हैं और इंसुलिन का उत्पादन भी नहीं होता। इसके लिए ब्लड ग्लूकोज लेवल्स को बैलेंस करने के लिए इंसुलिन शॉट्स की आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए इंसुलिन रेजिस्टेंस पर भी काम करने की आवश्यकता होती है। यह छोटे बच्चों में देखा जाता है। इसके लिए अपनी डायबिटीज का कॉन्सटेंट ट्रैक रखना बहुत आवश्यकत होता है।
शिखा गुप्ता कहती हैं कि यह प्रोगेशन आम तौर पर इंसुलिन प्रतिरोध से प्रीडायबिटीज तक होता है और यदि इसे मैनेज नहीं किया जाता है, तो यह टाइप 2 मधुमेह में तब्दील हो जाता है। हालांकि, टाइप 1 मधुमेह एक अलग स्थिति है और आमतौर पर टाइप 2 मधुमेह से विकसित नहीं होती है।
इंसुलिन रेजिस्टेंस के लिए बेस्ट हैं ये सुपर फूड्स
इंसुलिन रेजिस्टेंस को रिवर्स करने के लिए आपको अपने आहार में ऐसे खाद्य पदार्थ शामिल करने चाहिए, जो आपकी मदद कर सकें। ऐसे कुछ सुपरफूड्स इस प्रकार हैं-
लहसुन
लहसुन और इसके अर्क में हेपेटिक ग्लूकोज मेटाबॉलिज्म में सुधार या इंसुलिन रेजिस्टेंस में मदद करने में मदद कर सकते हैं। लहसुन के एंटीऑक्सीडेंट कंपाउंड्स, जैसे फिनोल और फ्लेवोनोइड, इंसुलिन रेजिस्टेंस को भी कम करते हैं।
दालचीनी
दालचीनी इंसुलिन के प्रभाव की नकल करके और ब्लडस्ट्रीम से सेल्स में शुगर की गति को बढ़ाकर ब्लड शुगर को कम करने और मधुमेह से लड़ने में मदद कर सकती है। यह इंसुलिन संवेदनशीलता को बढ़ाता है, जिससे कोशिकाओं में शुगर को स्थानांतरित करने में इंसुलिन अधिक कुशल हो जाता है।
एप्पल साइडर विनेगर
सेब के सिरके को अक्सर ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित करने के प्राकृतिक तरीके के रूप में देखा जाता है, खासकर इंसुलिन प्रतिरोध वाले लोगों के लिए। जब आप इसे हाई कार्ब मील से पहले खाली पेट लेते हैं, तो यह ब्लड शुगर स्पाइक को एकदम कम कर देता है।
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हल्दी
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हल्दी और इसमें मौजूद तत्व करक्यूमिन मधुमेह को नियंत्रित करने में प्रभावी होता है। हल्दी की जड़ के अर्क का सेवन इंसुलिन प्रतिरोध को कम करने में मदद कर सकता है। यह बीटा सेल्स के कामकाज में भी सुधार करता है, जो मधुमेह के लिए फायदेमंद हैं।
करेला
करेले में इंसुलिन की तरह काम करने वाले गुण होते हैं, जो ऊर्जा के लिए कोशिकाओं में ग्लूकोज लाने में मदद करता है। करेले का सेवन आपकी कोशिकाओं को ग्लूकोज का उपयोग करने और इसे आपके लिवर, मांसपेशियों और फैट तक ले जाने में मदद कर सकता है।
हमें उम्मीद है डायबिटीज के इन स्टेज के बारे में जानकार आपको आज काफी कुछ पता चला होगा। स्वस्थ रहने के लिए अपने ब्लड टेस्ट करवाते रहने चाहिए। अगर आपको यह लेख पसंद आया तो इसे लाइक और शेयर करें। ऐसे ही लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी के साथ।
Image Credit: Freepik
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