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वर्किंग महिलाओं में बढ़ रहा है ऑस्टियोअर्थराइटिस का खतरा, राहत पाने के लिए बदलें अपना लाइफस्टाइल

अगर आपको जोड़ों का दर्द सता रहा है तो समय रहते इसका इलाज करा लें, क्योंकि जल्दी पहचान हो जाने पर ही ऑस्टियोअर्थराइटिस का कारगर इलाज संभव है।&nbsp; <div>&nbsp;</div>
ANI
Updated:- 2018-05-29, 14:03 IST

अगर आपको अक्सर जोड़ों का दर्द रहता है और इससे आपके कामकाज पर भी असर पड़ रहा है तो थकान समझकर इसे इग्नोर ना करें। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में ऑस्टियोअर्थराइटिस की समस्या सबसे आम है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में 22 से 39 फीसदी लोगों को जॉइंट पेन की समस्या है। क्लीनिकल डाटा से पता चलता है कि 20 फीसदी ऑस्टियोअर्थराइटिस के मरीज 45-50 के बीच हैं।

महत्वपूर्ण बात ये है कि 50 से कम उम्र के मरीज वर्किंग हैं। इस कारण समाज और अर्थव्यवस्था पर इसका बुरा असर पड़ रहा है। ऐसे में अगर अपने जोड़ों के दर्द के सही इलाज की तरफ ध्यान देती हैं तो आपके जल्दी बेहतर होने के आसार बढ़ जाते हैं।

मैक्स स्मार्ट सुपर स्पेशेलिटी अस्पताल के डॉ जे महेश्वरी का कहना है, 'ऑस्टियोअर्थराइटिस उस समय विकसित होता है जब जॉइंट के बीच का नरम हिस्सा धीरे-धीरे टूट-फूट का शिकार होने लगता है। इससे हड्डियां एक-दूसरे से टकराने लगती हैं। फिजिकल एक्टिविटी में कमी आने और मोटापा बढ़ने से वर्किंग लोगों में यह बीमारी और भी ज्यादा तेजी से फैल रही है।'

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इलाज के विकल्पों पर ध्यान दें

शुरुआती स्तर पर इलाज

शुरुआती स्टेज में दवाओं, खानपान के जरिए घुटने के अर्थराइटिस की समस्या को दूर करने का प्रयास किया जाता है। इसके अलावा हेल्दी बॉडी वेट बनाए रखने और रोजमर्रा के रूटीन में फिजिकल एक्टिविटी पर जोर दिया जाता है। लाइफस्टाइल में इन बदलाव से दर्द में आराम महसूस होता है, जॉइंट में मोबिलिटी महसूस होती है और डिजीज के एडवांस स्टेज में जाने की प्रोसेस धीमी होती है।

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एडवांस स्टेज में इलाज

एक बार डिजीज एडवांस स्टेज में पहुंच जाती है और जॉइंट डैमेज हो जाते हैं तो उन्हें ठीक करने की स्थिति नहीं रह जाती। ऐसे में मरीजों के पास सिर्फ टोटल नी रिप्लेसमेंट सर्जरी (टीकेआर) जैसा विकल्प ही रह जाता है। टीकेआर सर्जरी से दर्द में आराम मिलता है और घुटने की एक्टिविटी बढ़ती है।

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फरीदाबाद के क्यूआरजी हेल्थ सिटी के डॉक्टर युवराज कुमार कहते हैं, 'मरीज को सर्जरी कराने से पहले इस बारे में डीटेल में बात करनी चाहिए। वैश्विक स्तर पर इंप्लांट के बढ़ते प्रचलन के बीच मरीजों को इंप्लांट की क्वालिटी के बारे में सजग रहना चाहिए। अच्छी क्वालिटी का इंप्लांट होने पर वह लंबा चलता है। इससे रिवीजन सर्जरी की नौबत नहीं आती। 

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के अनुसार ऑस्टियोअर्थराइटिस के मरीजों को चलने-फिरने में परेशानी होती है और 25 फीसदी को रोजमर्रा के काम करने में भी परेशानी महसूस होती है। युवा मरीजों में अगर समय पर इसकी पहचान हो जाती है तो इसके प्रभावी इलाज के आसार बढ़ जाते हैं। 

 

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