डायबिटीज एक ऐसी ना खत्म होने वाली बीमारी है जो एक बार हो जाने पर पूरी लाइफ इसे झेलना पड़ता है। डायबिटीज मेटाबोलिक बीमारियों का एक समूह है, जिसमें ब्लड में ग्लूकोज (ब्लड शुगर) का लेवल नॉर्मल से अधिक हो जाता है। ऐसा तब होता है, जब बॉडी में इंसुलिन ठीक से न बने या बॉडी के सेल्स इंसुलिन के लिए ठीक से प्रतिक्रिया न दें। डायबिटीज से कब कौन सा अंग खराब हो जाए रोगी को पता ही नहीं चलता। यह महिलाओं को धीरे-धीरे ‘इनफर्टिलिटी’जैसी बीमारियों की ओर भी ले जाता है। जी हां डायबिटीज बदलती लाइफस्टाइल की कई सारी परेशानियों का कारण बन रही है, जिनमें ‘इनफर्टिलिटी’भी एक गंभीर समस्या है। डायबिटीज से पीड़ित महिलाओं के मां बनने में बाधक साबित हो रही है।
चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना हैं कि अगर महिला डायबिटीज से पीड़ित है और अगर उसकी डायबिटीज कंट्रोल में नहीं है तो मां और गर्भस्थ शिशु दोनों के लिए कई प्रॉब्लम्स उत्पन्न हो सकती हैं। इसके कारण गर्भपात हो सकता है।
Read more: बढी रही हैं हार्ट और डायबिटीज की समस्या, कितनी तैयार हैं आप?
विशेषज्ञों का कहना हैं कि ऐसी स्थिति में अगर जन्म लेने वाले बच्चे का आकार नॉर्मल से बड़ा है तो सी-सेक्शन आवश्यक हो जाता है। इसके अलावा बच्चे के लिए जन्मजात विकृतियों की आशंका बढ़ जाती है। मां और बच्चे दोनों के लिए इंफेक्शन का खतरा भी बढ़ जाता है।
वर्ल्ड डायबिटीज डे (14 नवम्बर) के अवसर पर इंदिरा आईवीएफ हॉस्पिटल की गॉयनोकोलॉजिस्ट एवं आईवीएफ स्पेशलिस्ट डॉक्टर सागरिका अग्रवाल ने कहा, "अपने देश में यह बीमारी खानपान, जेनेटिक और हमारे इंटरनल आर्गन्स में फैट की वजह से होती है। गर्भवती महिलाओं को ग्लूकोज पिलाने के दो घंटे बाद ओजीटीटी (ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट) किया जाता है, ताकि जेस्टेशनल डायबिटीज का पता चल सके।"
उन्होंने कहा, "यह टेस्ट प्राय: प्रेग्नेंसी के 24 से 28 हफ्तों के बीच होती है, दो हफ्ते बाद पुन: शुगर टेस्ट किया जाता है। पाया गया कि इस दौरान 10 फीसदी अन्य महिलाओं में जेस्टेशनल डायबिटीज ठीक नहीं हुई थी। इन महिलाओं को इंसुलिन देकर बीमारी कंट्रोल कर ली जाती है। ऐसा कर मां के साथ ही उनके शिशु को भी इस बीमारी के खतरे से बचाया जा सकता है।"
डॉक्टर सागरिका ने कहा, "डायबिटीज के टाइप वन में इंसुलिन का लेवल कम हो जाता है और टाइप टू में इंसुलिन रेजिस्टेंस हो जाता है और दोनों में ही इंसुलिन का इंजेक्शन लेना जरूरी होता है। इससे बॉडी में ग्लूकोज का लेवल नॉर्मल बना रहता है। गर्भधारण के लिए इंसुलिन के एक न्यूनतम लेवल की आवश्यकता होती है और टाइप वन डायबिटीज की स्थिति में इंसुलिन का उत्पादन करने वाली कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। इस स्थिति में गर्भधारण से मां और बच्चे दोनों के लिए खतरा हो सकता है। दोनों की हेल्थ पर इसका विपरीत असर पड़ता है।"
Read more: प्रेग्नेंसी में ब्लीडिंग से जुड़ी इन बातों से किसी भी महिला को नहीं होना चाहिए अनजान
उन्होंने कहा कि दूसरी ओर टाइप 2 डायबिटीज में बॉडी ब्लड स्ट्रीम में ग्लूकोज लेवल को नॉर्मल बनाए नहीं रख पाती है, क्योंकि बॉडी में पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का निर्माण नहीं हो पाता। इस स्थिति से निपटने के लिए डाइट में परिवर्तन किया जा सकता है और रेगुलर एक्सरसाइज से भी इंसुलिन लेवल को नॉर्मल बनाया जा सकता है।
यह विडियो भी देखें
Herzindagi video
हमारा उद्देश्य अपने आर्टिकल्स और सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से सही, सुरक्षित और विशेषज्ञ द्वारा वेरिफाइड जानकारी प्रदान करना है। यहां बताए गए उपाय, सलाह और बातें केवल सामान्य जानकारी के लिए हैं। किसी भी तरह के हेल्थ, ब्यूटी, लाइफ हैक्स या ज्योतिष से जुड़े सुझावों को आजमाने से पहले कृपया अपने विशेषज्ञ से परामर्श लें। किसी प्रतिक्रिया या शिकायत के लिए, [email protected] पर हमसे संपर्क करें।