भारत में ज्यादातर महिलाएं एनीमिक है। यह बात हम नहीं कर रहें बल्कि मिनिस्ट्री ऑफ़ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर द्वारा आयोजित नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों से पता चला है। देश की हेल्थ केयर में बढ़ोतरी के बावजूद, एनीमिया न केवल मेडिकल से जुड़े लोगों बल्कि भारत में तेजी से बढ़ रहे आबादी के लिए भी एक चिंता का विषय है। सामी लैब्स की डायरेक्टर और सीनियर साइंटिस्ट मंजू मजीद के अनुसार, "एनीमिया दुनिया में सबसे आम पोषक तत्वों की कमी संबंधी विकार है। हालांकि यह सभी आयु वर्ग के लोगों को प्रभावित करता है, लेकिन महिलाएं और खासतौर पर गर्भवती प्रभावित होती हैं।" लेकिन एक नई रिपोर्ट के अनुसार एनीमिया महिलाओं के साथ-साथ बच्चों में भी पाया जाता है। इसलिए अपने बच्चे की डाइट पर ध्यान देना चाहिए। आइए जानें कि एनीमिया बच्चों को कैसे प्रभावित करता है।
एनीमिया हालांकि एक ऐसा विषय है जिस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता, लेकिन हाल ही में एसआरएल डायग्नॉस्टिक्स द्वारा किए गए इन-हाउस सर्वेक्षण के आधार पर जारी एक रिपोर्ट के अनुसार पाया गया है कि एनीमिया न केवल महिलाओं में बल्कि बच्चों में भी आमतौर पर पाया जाता है।
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एनीमिया क्या है?
हेल्दी रहने के लिए हमारे शरीर को पोषक तत्वों की जरूरत होती है। पोषक तत्वों में विटामिन और कैल्शियम के साथ-साथ हमारे शरीर को आयरन की भी जरूरत होती है। शरीर में आयरन की कमी से एनीमिया की समस्या होने लगती है और ब्लड का लेवल गिरने लगता है। एसआरएल डायग्नॉस्टिक्स के आर एंड डी एंड मॉलीक्युलर पैथोलोजी के अडवाइजर एवं मेंटर डॉक्टर बी.आर. दास ने कहा, "शरीर में रेड ब्लड सेल्स या हीमोग्लोबिन की कम मात्रा होने पर शरीर के ओर्गेन सिस्टम को स्थायी नुकसान पहुंचता है। रेड ब्लड सेल्स की कमी से शरीर में खून के जरिए ऑक्सीजन का सर्कुलेशन कम मात्रा में हो पाता है जिससे मरीज में कई लक्षण नजर आते हैं, जैसे थकान, त्वचा का पीला पड़ना, सिर में दर्द, दिल की धड़कनों का अनियमित होना और सांस फूलना। अन्य लक्षणों में शामिल हैं मूड में बदलाव और चिड़चिड़ापन, कमजोरी। एनीमिया का सबसे आम कारण है आयरन की कमी, जिसका इलाज करना आसान है। ज्यादातर बीमारियों के मामले में जागरूकता बहुत महत्वपूर्ण होती है।"
क्या कहती है रिपोर्ट
अध्ययन में यह भी पाया गया कि उम्र के साथ एनीमिया की संभावना बढ़ती है। सर्वेक्षण के परिणाम जनवरी 2016 से मार्च 2019 के बीच देश भर की एसआरएल लैबोरेटरीज में हीमोग्लोबिन जांचों की रिपोर्ट्स पर आधारित है। एसआरएल की रिपोर्ट के अनुसार 80 साल से अधिक उम्र के 91 फीसदी लोग, 61 से 85 साल से 81 फीसदी लोग, 46 से 60 साल से 69 फीसदी लोग, 31 से 45 साल के 59 फीसदी लोग, 16 से 30 साल के 57 फीसदी लोग तथा 0-15 साल के 53 फीसदी बच्चे और किशोर एनीमिया से ग्रस्त हैं। 45 साल से अधिक उम्र के मरीजों में एनीमिया के सबसे गंभीर मामले पाए गए हैं।
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एनीमिया के 3 लेवल
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया भर में दो अरब लोग एनीमिया से ग्रस्त हैं और इनमें से आधे मामलों का कारण आयरन की कमी ही होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एनीमिया को तीन लेवल में श्रेणीबद्ध किया है: माइल्ड (हल्का), मॉडरेट (मध्यम) और सीवियर (गंभीर)।
अध्ययन में लिए सैम्पल्स के अनुसार भारत के अन्य जोनों (64 फीसदी) की तुलना में उत्तरी जोन में एनीमिया के सबसे ज्यादा (69 फीसदी) मरीज पाए गए हैं। गंभीर एनीमिया के मामले उत्तरी जोन (6 फीसदी) में महिलाओं (2 फीसदी) की तुलना में पुरुषों (9 फीसदी) में अधिक पाए गए। शेष क्षेत्रों में से 34 फीसदी लोगों में मध्यम एनीमिया पाया गया, जिसमें पुरुषों में 35 फीसदी और महिलाओं में 26 फीसदी मामले पाए गए। पूर्वी जोन में माइल्ड एनिमिया के अधिक मामले पाए गए जबकि पुरुषों और महिलाओं में परिणामों में कुछ खास अंतर नहीं पाया गया।
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Source: IANS
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