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अगर आपका ब्लड ग्रुप भी ओ टाइप है तो सतर्कता बनाए रखें

एक नई रिसर्च कहती है कि O ब्लड ग्रुप वालों में बड़े ट्रॉमा से गुजरने पर मौत की आशंका अन्य ब्लड ग्रुप्स की तुलना में बढ़ जाती है। इस ब्लड ग्रुप से होने पर बनाए रखें सतर्कता।
Her Zindagi Editorial
Updated:- 2018-05-03, 16:38 IST

बायोमेड सेंट्रल की एक रीसर्च में पाया गया कि ब्लड ओ टाइप होने पर ट्रॉमा पेशेंट्स के मौत के शिकार होने का जोखिम बढ़ जाता है। इस रिसर्च में 901 जापानी इमरजेंसी पेशेंट्स को शामिल किया गया था। शोधकर्ताओं ने पाया कि बहुत बड़े ट्रॉमा से गुजर रहे पेशेंट्स ( ऐसे मरीज, जिन्हें चोट से लॉन्ग टर्म डिसेबिलिटी या मौत का खतरा होता है), जिनका ब्लड ग्रुप भी O है, में मौत की आशंका 28 फीसदी होती है, जबकि अन्य ब्लड ग्रुप वालों में मौत की आशंका 11 फीसदी होती है। 

इस रिसर्च से जुड़े वाटारू ताकायामा ने कहा, 'हालिया आंकड़े बताते हैं कि O ब्लड ग्रुप वालों को हेम्रेज (ज्यादा खून बह जाने की स्थिति) की आशंका ज्यादा होती है। बड़े आघात से गुजरने वालों में खून बहने से मौत होने के सबसे ज्यादा मामले नजर आते हैं लेकिन ब्लड टाइप और ट्रॉमा की वजह से मौत, इन दोनों पर अध्ययन बहुत ज्यादा नहीं हुए हैं। इसीलिए रिसर्च करने वाले इस बात का परीक्षण करना चाहते थे कि अलग-अलग ब्लड टाइप वालों में सदमे से उबरने में कितना फर्क होता है। 

रिसर्च में पाया गया कि O टाइप ब्लड ग्रुप वालों में वॉन विलेब्रेंड फैक्टर कम होता है। यह एक ब्लड क्लॉटिंग एजेंट होता है, जो अन्य ब्लड ग्रुप वालों की अपेक्षा O ब्लड ग्रुप वालों में कम पाया जाता है। वॉन विलेब्रेंड फैक्टर को हेम्रेज के बढ़े हुए स्तर से जोड़कर देखा जा सकता है। 

इस रिसर्च में मिले नतीजों से इस बात पर भी सवाल उठे कि बड़े आघात से गुजरने वाले O टाइप ब्लड ग्रुप वालों को ब्लड ट्रांसफ्यूजन के जरिए हीमियोस्टेटिस से कैसे बचाया जा सकता है। लेकिन इस रिसर्च पर काम करने वाले ऑथर्स ने यह भी स्पष्ट किया कि यह रिसर्च सिर्फ जापानी लोगों पर ही की गई है और दूसरे एथनिक ग्रुप्स में ये चीजें देखने में आती हैं या नहीं, यह जानने के लिए अभी और रिसर्च किए जाने की जरूरत है। साथ ही ए, एबी और बी ब्लड टाइप्स में बड़े आघात से होने वाली मौतों में इस तरह की रिसर्च नहीं की गई है, बल्कि ओ और अन्य ब्लड ग्रुप वालों पर होने वाले प्रभावों की तुलना की गई है। यह अध्ययन क्रिटिकल केयर जर्नल में प्रकाशित हुआ है।  

 

 

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