किसी भी बीमारी को जड़ से खत्म करना बेहद जरूरी है, ताकि वो बार-बार हमें परेशान न करें। ऐसे कई तरीके हैं, जिनसे हमें बीमारियों से छुटकारा मिल सकता है। आयुर्वेद के मुताबिक केवल रोगों से मुक्ति काफी नहीं है, बल्कि यह शारीरिक, आध्यात्मकि और मानसिक संतुलन को भी बनाए रखती है। यह चिकित्सा सबसे प्राचीन है और उपचार के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। हालांकि इस चिकित्सा के कुछ नियम होते हैं, जिन्हें अपनाकर ही हम स्वस्थ शरीर पा सकते हैं। वहीं पंचकर्म आर्युवेद की पुरानी पद्ति है। इसके पांच प्रकार हमारे शरीर से किस तरह टॉक्सिन निकालते हैं बता रहे हैं एक्सपर्ट डॉ. अरविंद गुप्ता।
पंचकर्म क्या है
यह थेरेपी आय़ुर्वेद चिकित्सा की सबसे पुरानी थेरेपीज में से एक है, जिसे सबसे ज्यादा दक्षिण भारत में उपयोग किया जाता है। पंचकर्म यानी पांच तरह की ऐसी चिकित्सा जिससे द्वारा शरीर से टॉक्सिन्स बाहर निकाले जाते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो यह डिटॉक्स की एक प्रक्रिया है। इसमें औषधीय तेलों का इस्तेमाल किया जाता है। पंचकर्म और शिरोधारा भारतीय आयुर्वेद के प्रमुख उपचार हैं। इसमें पांच प्राकृतिक तरीके शामिल होते हैं, जो शरीर में तीन दोष-वात, पित्त और कफ को संतुलित करते हुए शरीर को डिटॉक्सिफाई करते हैं।
विरेचन
इस चिकित्सा से पूर्व कर्मों किया जाता, जिन्हें पूर्व कर्म ही कहते हैं और ये पांच तरह के होते हैं- वमन, विरेचन, नस्य, अनुवासन वस्ति और निरूह वस्ति। हालांकि कुछ विद्वान नस्य की जगह रक्तमोक्षण को पंचकर्म में शामिल करते हैं। यह सभी कर्म अलग-अलग बीमारियों के होने पर किए जाते हैं। सबकी अपनी अलग अहमियत है। विरेचन कर्म में, पित्त दोष पर काम किया जाता है। पेट और आंतों से चिकित्सीय लैक्सेटिव के जरिए टॉक्सिन्स बाहर निकाले जाते हैं। इससे न सिर्फ पेट की तमाम समस्याएं ठीक होती हैं, बल्कि चर्म रोग और त्वचा संबंधी परेशानियों से भी छुटकारा मिलता है।
घृत पान
यह रोगी को सुबह-सुबह दिया जाता है। पहले दिन इसकी मात्रा 30-40 मिली होती है और फिर इसे हर दिन थोड़ा-थोड़ा बढ़ाया जाता है। जैसे दूसरे दिन इसे 60 से 80 मिली किया जाता है और आखिरी दिन इसकी मात्रा और बढ़ा दी जाती है। इसे तब तक दिया जाता है, जब आपके शरीर से सारे टॉक्सिन निकल जाए। इसे पीने के बाद लूजमोशन लगते हैं, जिसके द्वारा टॉक्सिन शरीर से बाहर निकलते हैं। इस प्रक्रिया में तीन से सात दिन लगते हैं। इसकी खुराक रोगी के पाचन शक्ति के अनुसार तय की जाती है।
अभ्यांग स्वेदन
इंटरनल स्नेहन के बाद रोगी के शरीर में Psoramet ऑयल से पूरे शरीर में मालिश की जाती है और उसे दो से तीन दिनों तक औषधीय भाप दी जाती है। यह सात दिन की प्रक्रिया के दौरान रोगी को एकदम सादा भोजन करना होता है। प्रक्रिया पूरी होने के बाद रोगी को खुद में कई बदलाव देखने को मिलते हैं।
यह प्रक्रिया पेट की समस्याओं को तो ठीक करती ही है साथ ही शरीर से टॉक्सिन निकालकर ग्लोइंग स्किन देती है। इससे कई स्किन प्रोबल्मस ठीक होती हैं।
एक्ने और पिपंल्स के लिए
एक्ने वल्गरिस एक स्किन प्रोबल्म है, जो युवाओं में बहुत आम है। प्यूबर्टी के दौरान, खराब जीवनशैली के दौरान, पेट की समस्याओं के दौरान sebaceous glands सक्रिय हो जाती हैं, और अतिरिक्त सीबम या तेल का स्राव करती हैं जो त्वचा के छिद्रों को बंद कर देता है। यही एक्ने और पिंपल का कारण बनता है। विरेचन से मुहांसे और पिंपल की ये समस्याएं दूर होती हैं।
फंगल इंफेक्शन
फंगल त्वचा संक्रमण आपके शरीर पर कहीं भी हो सकता है। कुछ सबसे आम एथलीट फुट, जॉक इचिंग, दाद और यीस्ट संक्रमण हैं। आपकी त्वचा आपके शरीर का सबसे बड़ा अंग है। इसका कार्य आपके शरीर को संक्रमण से बचाना है। कभी-कभी त्वचा खुद ही संक्रमित हो जाती है। त्वचा में संक्रमण विभिन्न प्रकार के कीटाणुओं के कारण होता है, और लक्षण हल्के से लेकर गंभीर तक भिन्न हो सकते हैं। इन संक्रमणों को विरेचन जड़ से खत्म करता है।
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Image Credit : freepik images
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