जब आपके जोड़ों में दर्द, सूजन व कड़कपन हो रहा हो उस स्थिति को अर्थराइटिस कहते हैं। उम्र के बढ़ने के साथ हमारा शरीर प्राकृतिक रूप से बनता व टूटता रहता है। लचीलापन न होने की स्थिति में जोड़ों को सही मोड़ न देने का समझौता करने की आदत से यह ज्यादा होता है। तब आर्थराइटिस उस शरीर को अपना घर बना लेता है। आजकल कई प्रकार की अर्थराइटिस स्थितियां नजर आती हैं, लेकिन सबसे आम ओस्टियोआर्थराइटिस, रुमेटाइड अर्थराइटिस। इन सभी के लक्षण मिलते-जुलते हैं जैसे- जोड़ों में सूजन एवं दर्द, चलने में परेशानी होना। दरअसल इस समस्या के होने पर मूवमेंट में ही परेशनी होने लगती है।
योग संस्थान के डायरेक्टर डॉक्टर हंसाजी जयदेव योगेंद्र का कहना है कि ''इन सभी परिस्थितियों में शरीर के लचीलेपन के साथ-साथ दिमाग भी महत्वपूर्ण योगदान निभाता है। जैसे जब दिमागी असंतुलन पैदा होता है तब हालत और बिगड़ जाती है–गुस्सा, चिड़चिड़ापन, दुःखी होना, उत्तेजित होना आदि। जब आप दिमागी उथल-पुथल से गुजर रहे होते हैं तो उस स्थिति में जोड़ों को और भी ज्यादा नुकसान होता है क्योंकि उस स्थिति में मसल्स ज्यादा टाइट होती है जो जोड़ों को जरूरत से ज्यादा पास ले आती है। इससे आर्टरी भी पतली हो जाती है और ब्लड सर्कुलेशन में कमी आती है इसीलिये योग आपको यह राय देता है कि आप अपने दिमागी और भावनात्मक स्थिति पर भी गौर करें और अपना आत्मविश्लेषण करें, साथ ही पारस्परिक व्यावहारिक बर्ताव में भी बदलाव करें।
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दी योगा इंस्टीट्यूट ने इसी संदर्भ में मज़ेदार शोध किया जिसमें 100 मजदूर चुने जिनका भारी सामान को अपने कंधे और सिर पर ले जाने दिनचर्या में शामिल था। उन लोगों के रीढ़ व घुटनों के एक्स-रे निकाले गये। उनकी हड्डियों में खराबी थी, जोड़ अव्यवस्थित स्थिति में थे, स्लिप डिस्क थी एवं काफी मात्रा में हड्डियों की खराबी पाई गई। इतनी खराब जोड़ों की स्थिति होने पर भी जब उनसे उनके दर्द का पूछा गया तो उन्होंने जबाव में 'दर्द से इंकार' किया। और दूसरे छोर पर 100 कॉर्पोरेट के लोगों को लिया गया। उनके भी एक्स-रे निकाले उनके घुटनों व रीढ़ में ज्यादा गड़बड़ी नहीं पाई। कुछ मामूली हड्डी का घिस जाना और थोड़ी मात्रा में ऑस्टियोआर्थराइटिस के शुरूआती लक्षण नजर आये और मामूली स्लिप डिस्क पाई गई। इतनी मामूली क्षति होने पर भी जब उनसे उनके दर्द के बारे में पूछा तो उन्होंने जबाव में 'काफी कष्टदायी' उत्तर दिया।
शोध में यह खुलासा पाया कि दर्द उनके दिमाग की स्थिति से जुड़ा हुआ था। एक्सक्यूटिव्स काफी अनावश्यक तनाव में रहते हैं, जबकि मजदूर काफी सरल जिंदगी जीते हैं जैसे- पर्याप्त शारीरिक श्रम करना, साधारण भोजन को उचित समय पर खाना, रात में पर्याप्त नींद लेना। तो निष्कर्ष यह निकला कि हर इंसान को तनाव रहित जिंदगी जीने की शुरूआत करनी चाहिए। वैसे भी जिंदगी तो दर्द के साथ या दर्द के बिना चलती ही रहेगी, तो क्यों न आप उस स्थिती को सहर्ष स्वीकार करें एवं परेशान व्यक्ति से खुशमिजाज व्यक्ति बन जायें।
दिमाग की इस स्थिति को पाने के लिये योग में अनेक प्रकार की तकनीकें बताई हैं। दी योगा इंस्टीट्यूट 100 साल से अष्टांग योग की शिक्षा प्रदान कर रहा है। सबसे पहले अष्टांग योग के पहले दो महत्वपूर्ण हिस्से- यम और नियम से हम नकारात्मक लोगों से घिरे होने के बावजूद अपने व्यवहार और रिश्तों को अच्छे से निभाते हुए खुशी से जीवन जीना सीख सकते हैं।
फाउंडर श्री योगेन्द्रजी ने कई आसनों को आम गृहस्थियों के लिये सरल बनाकर सिखाया और उनके फायदे भी कम नहीं होने दिये। उनमें से एक है – सहजभाव आसन जिन्हें वैज्ञानिक तरीके से श्वास-प्रश्वास की पूरी एकाग्रता के साथ किया जाता है जिससे तनाव ग्रस्त मसल्स में आराम मिलता है और शरीर हल्का व लचीला बन जाता है।
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योग आपकी दिमागी, शारीरिक और भावनात्मक स्थिती में जागरूकता लाता है। योग को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाइये और सुकून महसूस कीजिए।
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