चंद्रमा ग्रह पृथ्वी से खगोलीय दृष्टि से सबसे निकट का पिंड है। जब हम अति सुंदर पूनम के प्रकाशित चांद देखते हैं, तो उसकी ऊर्जा हमारे स्वाद और रचनात्मकता गुणों को प्रभावित करती हैं। चंद्र ऊर्जा सोम, सरल, सूक्ष्म, शांत, कोमल और सुंदर है। योग अभ्यासों को चंद्रमा के चरणों में संरेखित करके, हम अपने चंद्र भाग (शरीर के बाईं ओर) को सूर्य भाग (शरीर के दाहिने हिस्से) में भी संरेखित करते हैं।
चंद्र चक्र के आठ चरणों में से, हम आज ध्यान केंद्रित करेंगे, पूर्णिमा पर - रात्रि आकाश का वह समय जब पूर्ण चंद्रमा सूर्य से प्रकाशित होता है और पृथ्वी ग्रह पर दिखाई देता है। जब हम दिव्य चंद्रमा को नमन करते हैं, तो यह चंद्र नमस्कार के अभ्यास में सबसे अच्छा होता है। इस 28 चरणीय पेशकश को तह दिल से करें। इन योगासन के बारे में हमें योगा मास्टर, फिलांथ्रोपिस्ट, धार्मिक गुरू और लाइफस्टाइल कोच ग्रैंड मास्टर अक्षर जी बता रहे हैं।
1. प्रणाम आसन
- समस्त स्थिति में खड़ी हो जाएं।
- दोनों हाथों को प्रणाम मुद्रा में मोड़ें।
- इसे अपने हृदय चक्र के करीब लाएं।
- फिर सांस लें।
2. हस्त उत्थानासन
- श्वास लेते हुए, नमस्ते को आकाश की ओर उठाएं।
- पीठ को लगभग 30 डिग्री या उससे अधिक मोड़ने के लिए स्ट्रेच करें।
3. पादहस्तासन
- बड़ी सांस छोड़ें और हिप्स का उपयोग आगे की ओर झुकने के लिए करें।
- फिर चटाई पर पैरों की बगल में पूरी हथेलियां रखें।
- अब घुटनों के बीच में नाक को रखें।
4. अश्व संचालनासन - (बायां पैर)
- शरीर के वजन को हथेलियों पर शिफ्ट करें।
- बाएं पैर को पीछे की ओर फैलाएं।
- पैर की उंगलियां बाहर की ओर और एड़ी ऊपर हो।
- दाहिना पैर को नॉर्मल पोजीशन में ही रखें।
5. अर्ध चंद्रासन
- बांहों को आसमान की तरफ उठाएं।
- उन्हें एक श्वास के साथ सिर के ऊपर खींचे और ऊपर की ओर देखे।
6. संतुलनासन
- सांस छोड़ें और हथेलियों को वापस चटाई पर ले आएं।
- दाहिने पैर को पीछे ले जाएं और पैर की उंगलियों पर आएं।
- एड़ी, पेल्विक, रीढ़ और गर्दन को संरेखित करें।
- फिर आगे की ओर देखें।
7. अष्टांग प्रणामासन
- कोहनी मोड़ें, छाती और घुटनों को नीचे करें ताकि वे फर्श को छू सकें।
- पैर की उंगलियां, घुटने, दोनों हथेलियां, छाती और कंधे फर्श को छूते हुए होने चाहिए।
- पेल्विक ऊपर की तरफ उठा हुआ होना चाहिए।
- यहां पिछली मुद्रा में सांस छोड़ते हुए रोकें।
8. भुजंगासन
- श्वास लेते हुए, पेल्विक को चटाई पर रखें।
- चेस्ट को नाभि तक ऊपर उठाएं।
- फिर ऊपर की ओर देखें।
9. अधोमुख श्वानासन
- शरीर को हथेलियों और पैर की उंगलियों पर वापस ऊपर उठाएं।
- कोहनी और घुटने इस पोजीशन में सीधे होने चाहिए।
- फिर सांस छोड़े।
10. अश्व संचालनासन (बायां पैर)
- बाएं पैर को हथेलियों के बीच में लाएं।
- दायां पैर चटाई के पीछे जहां था वहीं रहना चाहिए।
- श्वास लें और ऊपर की ओर देखें।
11. अर्ध चंद्रासन
- बांहों को आसमान की तरफ उठाएं।
- सिर को ऊपर स्ट्रेच करें।
- श्वास के साथ ऊपर की ओर देखें।
12. पादहस्तासन
- सांस छोड़ना।
- आसन 3 को फिर से शुरू करें।
13. हस्त उत्थानासन
- श्वास लें।
- आसन 2 को फिर से शुरू करें।
14. प्रणाम आसन
- आसन 1 को फिर से शुरू करें।
- श्वास लें और छोड़ें।

धीरे-धीरे हथेलियों को बाहर की ओर ले आएं और समस्त स्थिति में खड़ी हो जाएं। चरण संख्या 4 और 10 में आसन संरचनाओं के लिए शरीर के दाहिने हिस्से का उपयोग करते हुए उसी प्रवाह को दोहराएं। शेष गणना तब संख्या 15 से संख्या 28 तक होगी।
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पूर्णिमा की रात (और अमावस्या की रात भी) में, आप अपने अभ्यास के अनुभव को गहरा करने के लिए चंद्रमा ध्यान अभ्यास जोड़ सकती हैं। बैठ जाओ और खुली आंखों से चांद को देखो। जब ऊर्जाएं संरेखित हो जाएं, तब धीरे-धीरे आंखें बंद करें और पूर्णिमा का ध्यान करें। यदि जहां हैं वहां से आकाश में चंद्रमा दिखाई नहीं दे रहा है, तो दृश्यता की शक्तियों का उपयोग कर सकते हैं।
चंद्र ग्रहण की रात को, अपने अभ्यास में एक प्रसाद या एक साधना जोड़ें। चंद्रमा को फूल, फल और शुद्ध जल का प्रसाद चढ़ाएं। साथ ही शुभ चंद्र मंत्र का जाप करें - ''ऊँ सोम सोमाय नमः।'' यह केवल आपके बंधन को गहरा करेगा और इस दिव्य ऊर्जा के साथ एक मजबूत नींव बनाने की ओर ले जाएगा।
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Image Credit: Freepik.com
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