'साड़ी के फॉल सा तुझे मैच किया रे....' क्या ये गाना आपने सुना है? ये गाना है शाहिद कपूर और सोनाक्षी सिन्हा की एक फिल्म का। यकीनन साड़ी के लिए फॉल लेकर आना बहुत ही मेहनत का काम है क्योंकि अगर उसमें बिल्कुल मैचिंग फॉल नहीं लगी तो उसका मज़ा खराब हो जाता है। साड़ी महंगी हो या सस्ती उसे लंबा चलाने के लिए फॉल का इस्तेमाल तो किया ही जाता है। ये अगर मैचिंग ना हो तो साड़ी के ऊपर से फॉल झलकने लगती है और ये दिखने में भी अच्छी नहीं लगती।
साड़ी के साथ फॉल का चलन इतना ज्यादा है कि इसके लिए बाकायदा फॉल मैचिंग सेंटर होते हैं और कई ब्रांड्स तो अपनी साड़ियों के साथ फॉल कस्टमाइज ही बनवाते हैं। अब रेडिमेड साड़ियों में भी फॉल का चलन हो रहा है।
पर क्या आप जानती हैं कि वो फॉल जिसका इस्तेमाल इतना ज्यादा किया जाता है वो आखिर चलन में कैसे आई और क्या ये बहुत ही पुरानी है? आज हम बात करते हैं साड़ी के फॉल की।
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आखिर कब चलन में आई साड़ी की फॉल?
साड़ी के फॉल का चलन बहुत ज्यादा पुराना नहीं है। आप साड़ियों की बात करें तो इनका चलन 2500 ई.पू में भी था ऐसे साक्ष्य मिलते हैं। महिलाएं सदियों से इसे अपनी साड़ियों का हिस्सा बनाती आई हैं, लेकिन साड़ी में फॉल का चलन हाल ही का है और इसे आए हुए लगभग 50 साल ही हुए हैं।
साड़ियों में पहले फॉल लगाने का चलन नहीं था। एक रिपोर्ट मानती है कि इसकी शुरुआत मुंबई में 1970 के आस-पास हुई है। साड़ी में फॉल पहले नहीं लगाई जाती थी, लेकिन आजादी के बाद जैसे-जैसे साड़ियों में एम्ब्रॉयडरी और स्टोन वर्क वाली साड़ियां चलना शुरू हुईं वैसे-वैसे इनका वजन भी बढ़ने लगा।
वजन बढ़ने के साथ ही साड़ियों की कीमतें भी बढ़ने लगीं। अब महंगी साड़ियों की दिक्कत ये होती थी कि दो-तीन बार इस्तेमाल के बाद वो नीचे से घिसने लगती थीं और उसके कारण ही नीचे का कपड़ा पाइप की तरह मुड़ने लगता था। अगर नॉर्मल सूती साड़ियां भी हों तो भी उनका कपड़ा ज्यादा चलने के कारण घिसने लगता था।
ऐसे में साड़ियों को ज्यादा लंबे समय तक बचाने के लिए कुछ तो करना ही था। ये दौर था बेल बॉटम पैंट्स का और उस दौरान पैंट्स के नीचे का कपड़ा भी छिल जाता था। ऐसे में पैंट्स में नीचे की ओर चेन लगाने का चलन शुरू हुआ जिससे वो घिसें ना। अब ये पैंट्स के लिए तो ठीक था क्योंकि वो तो बहुत ही छोटी होती थीं, लेकिन ऐसा साड़ियों के साथ नहीं किया जा सकता था।
साड़ियां अगर बहुत ज्यादा समय तक चलानी थीं तो कुछ तो करना ही था। चेन लगाने से उनकी कीमत भी काफी बढ़ जाती। अमीर तो फिर भी साड़ियों में चेन लगवा सकते थे, लेकिन गरीबों के लिए ये बिल्कुल मुमकिन नहीं था।
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धीरे-धीरे शुरू हुआ फॉल का चलन
अब जैसे साड़ियों में चेन नहीं लगाई जा सकती थी वैसे ही उन्हें फटने से बचाने के लिए साड़ी में कपड़ा लगाने का ट्रेंड शुरू हुआ। कपड़ा साड़ी से मैच करता हुआ लगाया जाता है और इसे अंदर की ओर से सिला जाता है। इससे दो फायदे होते हैं पहला ये कि साड़ी की प्लीट्स अपनी जगह पर रहती हैं और ऊपर नहीं उठती हैं।
दूसरा ये कि साड़ी का कपड़ा नीचे से काफी ज्यादा मजबूत हो जाता है और इसके कारण साड़ी के नीचे से फटने की गुंजाइश कम हो जाती है।
जब ये ट्रेंड शुरू हुआ तो तेज़ी से फैल गया और महंगी और सस्ती सभी तरह की साड़ियों के लिए फॉल लगाई जाने लगी।
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