श्री कृष्‍ण लीला और राम गाथा बताती है यह खास साड़ी, जानें इसका रोचक इतिहास

मुगलों और नवाओं के समय से चली आ रही विषशे कला पर आधारित इस साड़ी के बारे में रोचक बातें जानने के लिए पढ़ें यह लेख। 

west bangal saree art pic

आपने टीवी और रेडियो पर महाभारत, श्री कृष्‍ण लीला और राम कथा कई बार सुनी और देखी होगी। कई बार नाटकों के माध्‍यम से इन धार्मिक कथाओं को अपने आगे होते हुए भी आपने जरूर देखा होगा। मगर क्‍या आपने कभी इन कथाओं को पहना ओढ़ा भी है?

आप आश्‍चर्य में पड़ गए होंगे कि हम आप से क्‍या सवाल कर रहे हैं, मगर इसका जवाब और भी ज्‍यादा हैरानी भरा है। दरअसल, इन कथाओं को आप अपने शरीर पर साड़ी के रूप में लपेट सकती हैं। क्‍योंकि भारत में एक ऐसी अद्भुत साड़ी आती हैं, जिसमें इन कथाओं का वर्णन मिलता है।

स्‍पेशन ब्रोकेड वीविंग के माध्‍यम से बनने वाली बालुचरी साडि़यां अपनी इस अनोखी कला या कॉनसेप्‍ट के लिए ही पहचानी जाती है। यह बहुत ही अनोखी कला है, जिसमें साड़ी के पल्‍लू में काथा वाचन होता है। मजे की बात यह है कि साड़ी के पल्‍लू को देख कर आप यह समझ सकते हैं कि उसमें कौन सी कहानी छुपी हुई हैं।

यह साडि़यां अपनी कला के लिहाज से जितनी अद्भुत हैं, उससे भी कहीं जयादा यह दिखने में खूबसूरत हैं। आज हम आपको बताएंगे कि आखिर यह बालुचरी साडि़यां कहां से आई और आज फैशन इंडस्‍ट्री में किस मुकाम तक पहुंच चुकी हैं। इस विषय पर हमारी बात वर्ल्‍ड युनिवर्सिटी ऑफ डिजाइनिंग एवं प्रोग्राम की प्रोफेसर एवं फैशन एक्‍सपर्ट अंबिका मगोत्रा से हुई है।

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Baluchari Saree History Significance

बालुचरी साड़ी का इतिहास

  • व्‍यक्ति हो या स्‍थान, साहित्‍य हो या कला, हर किसी का अपना एक इतिहास होता है। बालुचरी साड़ी भी भारतीय इतिहास के पन्‍नों पर अपनी एक विशेष जगह बना चुकी है। अंबिका जी बताती हैं, 'इस कला को मुगलों द्वारा इंट्रोड्यूस किया गया था। हालांकि, यह मूल रूप से पर्शियन आर्ट का एक नमूना है और ईरान से मुगल इसे भारत में पहले वाराणसी लेकर आए और फिर यह आर्ट वहां से बंगाल के नवाब मुर्शिद कुली खान मुर्शीदाबाद के गांव बालुचर में लेकर आए।'
  • किसी भी आर्ट की पहचान उसके ओरिजन से होती है। बालूचरी की पहचान बालुचर से है, क्‍योंकि पहली बार इसे अनोखे अंदाज में बनने की शुरुआत यहीं से हुई थी। अगर बालुचरी साड़ी के आरंभिक दौर के कुछ डिजाइंस देखे जाएं, तो उसमें नवाब, रानियां, हुक्‍के आदि चित्रों को पाया जाएगा, जो उस दौर की कारिगरी का एक बहुत ही अच्‍छा उदाहरण हैं।
  • वहीं ब्रिटिश काल में बालुचरी साड़ी या कहें कि इस आर्ट को बहुत अधिक प्रोत्‍साहन नहीं मिला, मगर 20 वीं सदि में बंगल के एक फेमस आर्टिस्‍ट सुभो थाकुर ने इस आर्ट को पुनर्जिवीत करने का एक प्रयास किया, जो सफल भी हुआ। दरअसल, यह आर्ट जब वाराणसी से चल कर बंगला पहुंचती थी, तब ही अपने साथ उन कारिगरों को भी यहां ले आई थी, जो इस कला में पारंगत थे।
  • बालुचर में बार-बार आने वाली बाढ़ से परेशान होकर ये कारिगर बिष्‍णुपुर में बस गए। आज के समय में इस नगरी में इन कारिगरों के वंशजों की बसावट को देखा जा सकता है, जो आज भी इस विशेष साड़ी को जैक्‍वार्ड मशीन से बनाते हैं और कला के अस्तित्‍व को बनाएं रखे हुए हैं।
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साड़ी के अनोखे डिजाइंस का महत्‍व

  • हमने आपको शुरुआत में ही यह जानकारी दे दी थी कि मुगलों से नवाबों तक पहुंचने वाली यह कला बिष्‍णुपुर नगरी पहुंच चुकी थी। यह नगरी हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्‍व करती हैं और यहां पर हजारों प्राचीन हिंदू मंदिर आपको दिख जाएंगे। टैराकोट मिट्टी से बनने इन मंदिरों पर हाथों से बनाए गए धार्मिक चित्रों में छुपी पौराणिक कथाएं ही आपको बालुचरी साड़ी के पल्‍लू में नजर आएगी।
  • पहले जहां यह साड़ी में इस्‍लाम धर्म के प्रभाव में नजर आती थी, वहीं अब यह पूरी तरह से हिंदू धर्म की कथाओं पर आधारित हो चली है। इस साड़ी में महाभारत काल की कथाओं को कारीगरी के माध्‍यम से देखा जा सकता है, वहीं श्री कृष्‍ण लीला, राम कथा भी इस साड़ी के पल्‍लू के मुख्‍य विषय रहते हैं।
  • साड़ी के पल्‍लू को मंदिर के आर्किटेक्‍चर के हिसाब से डिजाइन किया जाता है। जिसमें ब्रिक, पिलर और दीवारों पर की गई कार्विंग को बेहद खूबसूरती से साड़ी के पल्‍लू पर दर्शाया गया है।
  • इस साड़ी का धार्मिक महत्‍व इसकी कारिगरी से ही बढ़ जाता है। जाहिर है, इस साड़ी को मां से बेटी को तोहफे में देने और पुरानी सी पुरानी साड़ी को विरासत के तौर पर सहेज कर रखने का रिवाज चला आ रहा है।
  • इसकी एक वजह यह भी कि यह साड़ी आपको बाजार में 5000 रुपए से लेकर 30 हजार रुपए तक या फिर अपनी बनावट के आधार पर और महंगी भी मिल सकती है।
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मॉडर्न ऐज बालुचरी साड़ी

  • इस साड़ी को मॉडर्न टच देने के लिए अब इसमें फ्लोरल मोटिफ्स का प्रयोग किया जा रहा है। हालांकि, आज भी इसमें भग्वत गीता, राम कथा, श्री कृष्‍ण लीला के ही अंश नजर आएंगे।
  • अब केवल मलबरी सिल्‍क में ही नहीं बल्कि कॉटन फैब्रिक में भी इस साड़ी को बनाया जा रहा है। इससे यह साड़ी केवल बड़े अवसरों की जगह वर्क प्‍लेस पर भी पहनी जा सकती है।
  • इसमें एक विशेष तरह का काम भी किया जा रहा है और गोल्‍डन यान से खूबसूरत साडि़यां तैयार की जा रही हैं, जिन्‍हें स्‍वर्ण अक्ष्‍री साड़ी कहा जाता है।

इस तरह से देखा जाए, तो बालुचरी साड़ी का अपना एक लंबा इतिहास रहा है और यह अब भी अस्तित्‍व में है और फैशन की दुनिया में धमाल मचा रही है।

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