7th क्लास में पढ़ने वाली नेहा पढ़़ाई में बहुत अच्छी है। मगर इस बार कुछ सबजेक्ट्स में उसके कम मार्क्सरआए हैं और फर्स्ट आने की जगह क्लास में उसकी सेकेंड पोजीशन आई है। यह बात उसने अपनी मॉम को नहीं बताई। उसे डर है कि मॉम को यह जानकर गुस्सा आ जाएगा और उसे डांट पड़ेगी। दरअसल नेहा की मॉम हमेश उसे फर्स्ट पोजीशन पर देखना चाहती है। जाहिर है ऑफिस से आने के बाद वह नेहा की पढ़ाई पर पूरा ध्यान जो देती है। मगर ऐसा तो लगभग हर मां चाहती है कि उसका बच्चा क्लास में सबसे आगे हो, लेकिन हर बार ऐसा होना मुमकिन नहीं है। ऐसा भी हो सकता है कि आपके बच्चे से ज्यादा इंटेलिजेंट बच्चा क्लास में मौजूद हो। वैसे यह बात बुरी नहीं बल्कि हेल्दी वे में लिया जाए तो इससे आपके ही बच्चे को एक कॉम्पेनटीटर मिलता है और आपके बच्चे को शार्प होने में मदद मिलती है। मगर मदर्स को यह बिलकुल भी डाइजेस्टी नहीं होता है।
वैसे कुछ मॉम्स को केवल पढ़ाई नहीं बल्कि हर चीज में अपने बच्चे को परफेक्ट देखने की सनक होती है। इस सनक के बारे में क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर समीर पारिख कहते हैं, ‘ कुछ मदर्स को टॉक्सि मॉम स्ट्रेस और सुपर मॉम सिंड्रोम की शिकायत होती है। इस सिचुएशन में मदर्स अपने बच्चों को अपने हिसाब से चलाने की कोशिश करती हैं। हालाकि वह बच्चे की भलाई ही चाहती हैं मगर सुपर मॉम बनने के चक्कर में कई बार उनसे ऐसी गलतियां हो जाती हैं जो बच्चे को उनकी ग्रोथ में नुकसान पहुंचाती है।‘
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डॉक्टर समीर मदर्स की कुछ ऐसी ही गलतियों को प्वाइंट आउट करते हुए उनका सल्यूशन बताते हैं:
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हर मां चाहती है कि उसका बच्चा उसकी बात सुने और माने, मगर कई बार बच्चे आपकी बात नहीं समझ पाते। ऐसे में उन पर उस काम को करने का प्रेशर न बनाएं। प्रेशर बनाने से बच्चों में डिप्रेशन की शिकायत हो सकती है। ऐसा भी हो सकता है कि बच्चा आपसे इतना डरने लगे कि डर कर कोई गलत कदम उठा ले। ऐसा कई बार होता कि बच्चे खुद पर दबाव महसूस करते हैं और नर्वस हो जाते हैं। ऐसे में वे जिस काम में परफेक्टे होते हैं उसमें भी वीक हो जाते हैं।
माना कि आप अपने बच्चे को अच्छेे से अच्छी बात समझाती हैं, मगर ऐसा भी तो हो सकता की आपसे भी ज्यादा अच्छी शिक्षा कोई और मां अपने बच्चे को दे रही हो या उसका तरीका इतना इफेक्टिव हो कि उसका बच्चा हर काम में ज्यादा अच्छा परफॉर्म करता हो। इस सिचुएशन में अपने बच्चे की दूसरे बच्चों से तुलना न करें। ऐसा करने पर उनका कॉन्फीडेंस लूज होता है और वे खुद को अकेला समझने लगते हैं। कई केसेज में यह भी देख गया है कि बच्चे। में इतनी हीनभावना आ जाती है कि वो उस बच्चें से नफरत करने लगता है और अपना दुश्मन समझने लगता है। कई बच्चे इस सिचुएशन में क्राइम तक कर देते हैं। इसलिए बच्चे की तुलना कभी मत करें। यदि आपको किसी दूसरे बच्चे के द्वारा किया गया कोई काम बहुत पसंद आए तो उस काम को अपने बच्चे को भी सिखाएं।
बच्चेे के साथ सबसे ज्यादा वक्त यदि कोई गुजारता है तो वह उसकी मां ही होती है। जाहिर है कि बच्चे की गलती और लापरवाही से आपको उस पर गुस्सा आ जाए। मगर गुस्सा दिखाने के लिए उसे डांटने की जरूरत नहीं है। डांटने से बच्चे जिद्दी हो जाते हैं और जिद में वह कभी भी आपकी सिखाई बात नहीं सुनेंगे। डांटने से बच्चों में चिड़चिड़ापन आ जाता है। यह और भी खराब स्थिती होती है क्योंकि इससे बच्चा आपको ही अपना दुश्मन समझने लगता है। इसलिए डांटने की जगह बच्चे को प्यार से अपनी बात समझाएं।
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जिस तरह आपको एक अपनी स्पेस की जरूरत होती है वैसे ही बच्चों को भी अपनी स्पेस चाहिए होती है। प्राइवेसी मिलने से बच्चों में डिसिप्लेन आता है। यदि ऐसा न हो तो बच्चे भूल वश ऐसी हरकतें कर जाते हैं कि आपको दूसरों के सामने शर्मिंदा होना पड़ सकता है।
कोई भी बच्चा ऑल राउंडर नहीं हो सकता है। सभी बच्चों में अलग अलग खूबियां होती हैं। आपके बच्चे में भी अलग हुनर होगा। मगर आप अपने बच्चे के हुनर को नहीं पहचानेंगी या फिर उसे नजरअंदाज कर अपनी मर्जी उस पर थोपेंगी तो वह जिस काम को अच्छे से कर सकता है वह भी नहीं कर पाएगा। इसलिए अपने बच्चे की केपेबिल्टी को समझे और उसी के अकॉर्डिंग बच्चे से अपनी एक्सपेक्टेएशन जाहिर करें।
आप जब किचन में अच्छा खाना बनाती हैं और आपके हसबैंड उसकी तारीफ करते हैं, तो आपको खुशी भी होती है और दूसरी बार उससे भी अच्छा खाना बनाने की ख्वाहिश भी होती है। बच्चों के साथ भी ऐसा ही होता है। बच्चा जब भी अच्छा काम करे तो जरूर एप्रीशिएट करें। इससे उसका कॉन्फिडेंस लेवल तो बढ़ता ही है, साथ ही उसमें अगली बार और भी अच्छा काम करने की भावना भी जगती है।
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