व्रत-उपवास को आमतौर पर धर्म-कर्म से जोड़ कर देखा जाता है, जबकि सेहत के लिहाज से देखा जाए तो व्रत का अभ्यास शरीर को फिट और मन को ऊर्जावान बनाए रखने में काफी मददगार होता है। बता दें कि मेडिकल रिसर्च में साबित हो चुका है कि इंटरमिटेंट जैसी फास्टिंग ब्रेन एजिंग के प्रभाव को कम करने में भी सहायक है।
इस आर्टिकल में हम आपको इसी बारे में बताने जा रहे हैं कि इंटरमिटेंट फास्टिंग किस तरह से बुढ़ापे के असर को कम करने में मददगार होती है। दरअसल, इस बारे में हमने ग्रेटर नोएडा की डाइटिशियन आकांक्षा गोयल से बातचीत की और उनसे मिली जानकारी के आधार पर इंटरमिटेंट फास्टिंग के फायदों के बारे में आपको बता रहे हैं।
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वेट लॉस के लिए इंटरमिटेंट फास्टिंग का क्रेज आजकल लोगों में काफी बढ़ चुका है। असल में इसमें एक नियमित अंतराल पर फास्टिंग की जाती है, जिस दौरान या तो बिलकुल भी खाना नहीं होता है या लो कैलोरी डाइट ली जाती है। नियमित अंतराल पर की जाने वाली यह फास्टिंग शरीर को फिट रखने में काफी मददगार साबित होती है। इसलिए वजन को नियंत्रित करने के लिए ज्यादातर लोग आजकल इंटरमिटेंट का प्रयोग कर रहे हैं।
फिजिकल फिटनेस के साथ ही इंटरमिटेंट फास्टिंग दिमाग को जवां और तेज बनाने में भी सहायक होता है। यह तंत्रिका-तंत्र के सुचारू रूप से संचालन में सहायक होता है, जिससे तंत्रिका संबंधी समस्याओं के निजात में मदद मिलती है। साथ ही यह अल्जाइमर जैसी समस्याओं और ब्रेन एजिंग के दूसरे गंभीर प्रभावों को भी कम करने में सहायक होता है।
बता दें कि कैलिफोर्निया के बक इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों की टीम ने इस दिशा में किए गए रिसर्च के आधार पर बताया कि ओएक्सआर1 (OXR1) नाम का जीन ब्रेन एजिंग को नियंत्रित करते हैं। वहीं संतुलित भोजन और कैलोरी पर नियंत्रण इस जीन की सक्रियता पर प्रभाव डालते हैं। खासतौर पर इंटरमिटेंट फास्टिंग इस जीन्स को सक्रिय कर न्यूरोडीजेनेरेटिव डिजीज को कम करने में मददगार साबित होता है।
असल में ओएक्सआर1 नामक जीन, शरीर में रेट्रोमर नाम के एक कॉम्प्लेक्स को प्रभावित करता है, जबकि रेट्रोमर सेलुलर प्रोटीन और फैट्स की रीसाइक्लिंग के लिए आवश्यक होता है। जबकि बढ़ती उम्र में रेट्रोमर डिस्फंक्शन की स्थिति बनती होती है, जिससे न्यूरोडीजेनेरेटिव डिजीज उत्पन्न होते हैं। लेकिन वहीं सीमित आहार के जरिए रेट्रोमर डिस्फंक्शन को नियंत्रित किया जा सकता है।
इस तरह से इंटरमिटेंट फास्टिंग के दौरान सीमित और संयमित आहार की मदद से न्यूरोडीजेनेरेटिव डिजीज का खतरा काफी हद तक कम किया जा सकता है। बात करें न्यूरोडीजेनेरेटिव डिजीज की तो अल्जाइमर और पार्किंसन जैसी मानसिक समस्याएं बुढ़ापे में लोगों को काफी परेशान करती हैं। शोध बताते हैं कि जो लोग इंटरमिटेंट फास्टिंग का नियमित रूप से अभ्यास करते हैं, उन्हें इस तरह की ब्रेन एजिंग समस्याएं कम पेश आती हैं।
जाहिर है कि इंटरमिटेंट फास्टिंग सेहत के लिए बेहद फायदेमंद है, पर वहीं ध्यान रखने वाली बात यह है कि हर किसी के इसका अभ्यास लाभकारी नहीं होता है। जैसे कि इंटरमिटेंट का अभ्यास एसिडिटी से जूझ रहे लोगों की परेशानी को और भी बढ़ा सकता है। इसमें लंबे समय तक पेट खाली रहता है, जिससे गैस की समस्या बढ़ सकती है।
इसके अलावा जिन लोगों को लो बीपी की समस्या रहती हो, उनके लिए भी इंटरमिटेंट हानिकारक हो सकता है। इंटरमिटेंट के दौरान लंबे अंतराल तक भोजन का सेवन न करने पर ब्लड प्रेशर कम होने के चलते आने और सांस फूलने की समस्या हो सकती है। इसलिए बेहतर होगा कि इंटरमिटेंट फास्टिंग से पहले डॉक्टर या डाइटीशियन की सलाह जरूर लें, ताकि आप इसके संभावित नुकसान से बच सकें।
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