भारत में दूर्वा घास को एक पवित्र पौधा माना जाता है। यह हिंदुओं के लिए धार्मिक है क्योंकि वे दूर्वा घास के साथ भगवान गणेश की पूजा करते हैं। जबकि इस पौधे को सायनोडोन डैक्टाइलॉन के नाम से भी जाना जाता है। यह घास हरे रंग की छोटी और आमतौर पर खुरदुरे किनारों के साथ 2-15 सेंटीमीटर लंबी होती हैं। तने थोड़े चपटे होते हैं और अक्सर बैंगनी रंग के होते हैं।
क्या आप जानती हैं कि इसका प्रयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में एक पारंपरिक जड़ी बूटी के रूप में किया जाता है, जिसका आयुर्वेद में औषधीय और नैदानिक गुणों के कारण बहुत महत्व है।
दूर्वा घास के स्वास्थ्य लाभों के लिए कई औषधीय उपयोग हैं, यह एसिडिटी का इलाज, इम्यूनिटी को बढ़ावा, ब्लड शुगर को कंट्रोल, पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम को ठीक और पीरियड्स की समस्याओं और कब्ज को ठीक, मोटापे का इलाज, मसूड़ों से ब्लीडिंग को ठीक और आंखों के संक्रमण को रोकता है।
दूर्वा घास में कई पोषक तत्व जैसे एसिटिक एसिड, एल्कलॉइड, कार्बोहाइड्रेट, फैट, क्यूमरिक एसिड, फाइबर, फ्लेवोन, ग्लूकोसाइड, हाइड्रोकार्बन, लिग्निन, मैग्नीशियम, पामिटिक एसिड, पोटेशियम, प्रोटीन, सेलेनियम, सोडियम, ट्राइटरपेनोइड्स, वैनिलिक एसिड, विटामिन ए और विटामिन सी होते हैं।
आयुर्वेदिक एक्सपर्ट डॉ दीक्सा भावसार ने अपने हाल के इंस्टाग्राम पोस्ट में इसके फायदों के बारे में बताया है। इसके कैप्शन में लिखा है, 'आयुर्वेदिक ग्रंथों में दूर्वा घास को 'सहस्र वीर्य' कहा गया है, जो इसके कई गुना लाभ और उपयोग को दर्शाता है। यहां बताया गया है कि हमने इसका अस्तित्व कैसे पाया-
'युद्ध के मैदान में, अनलासुर ने भगवान गणेश पर आग के गोले से हमला किया। भगवान गणेश ने अपना विश्वरूपम ग्रहण किया और उसे निगल लिया।'
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'अनलासुर खाने के बाद, भगवान गणेश का शरीर गर्म होने लगा (पूरे शरीर में जलन)। इसे शांत करने के लिए, चंद्रमा उन पर खड़ा था, भगवान विष्णु ने उन्हें अपना कमल दिया और भगवान शिव ने अतिरिक्त गर्मी को छोड़ने के लिए उसकी कमर के चारों ओर अपना सांप बांध दिया लेकिन कुछ भी काम नहीं किया। जब ये सभी विफल हो गए, तब ऋषियों के एक समूह ने दूर्वा घास के 21 पत्ते चढ़ाए।'
'दूर्वा घास वह करने में सक्षम थी जो चंद्रमा, विष्णु के पवित्र कमल और शिव के पवित्र कोबरा एक साथ हासिल करने में सक्षम नहीं थे। इसने भगवान गणेश के शरीर से राक्षस अनलासुर द्वारा उत्पन्न अतिरिक्त गर्मी को नीचे लाया।'
आगे उन्होंने लिखा, यह प्रकृति में शीतल, स्वाद में मीठी और कसैली और पचने में हल्की(लघु) होती है जो इसे अद्भुत कफ-पित्त शमक जड़ी बूटी बनाता है।'
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मुट्ठी भर दूर्वा घास को धोकर साफ कर लें और उसमें पानी की कुछ बूंदे मिलाकर बारीक पेस्ट बना लें। रोजाना एक गिलास गर्म पानी में एक चम्मच पेस्ट एनर्जाइजर के रूप में कार्य करेगा और शरीर की संपूर्ण इम्यूनिटी को बढ़ावा देगा। दूर्वा जूस का सेवन करने के बाद कम से कम 3 घंटे तक कुछ भी खाना-पीना नहीं चाहिए।
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घास को सुखाकर पाउडर बनाया जा सकता है। सूखे पाउडर को शहद के साथ मिलाकर लिया जा सकता है या बस पानी के साथ लिया जा सकता है।
मुट्ठी भर घास को एक कप पानी में रात-भर भिगो दें, अगली सुबह इसे 3-5 मिनट के लिए उबाल लें, छान लें और पानी का घूंट लें।
इसे कूलिंग इफेक्ट के लिए आजमाएं। आप भी अपनी इन समस्याओं को दूर करने के लिए इस तरह से दूर्वा घास का इस्तेमाल कर सकती हैं। इस आर्टिकल को शेयर और लाइक जरूर करें, साथ ही कमेंट भी करें। डाइट से जुड़े ऐसे ही और आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
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