गुजिया, ठंडाई और कचरी-पापड़, होली पर इन चीजों को आखिर क्यों बनाया जाता है?

ऐसा क्यों होता है कि होली पर गुजिया बनाई जाती है। ठंडाई और कचरी-पापड़ भी खास होली पर बनते हैं? आइए इस आर्टिकल में जानें इन्हें होली पर खासतौर से क्यों बनाया जाता है। 

The story behind the tradition of eating Gujiya on Holi

होल पूरे देशभर में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह ऐसा समय है, जब देश भर के लोग रंग में डूबे रहते हैं। साथ ही, बढ़िया खानपान का मजा लेते हैं। होली पर गुजिया, ठंडाई और स्नैक्स के रूप में कचरी पापड़ बनने का चलन है। होली के आने से महीनों पहले ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं।

हमारी मम्मियां कचरी और पापड़ धूप में सुखाना शुरू कर देती हैं। गुजिया का सामान घर आ जाता है। पकवान क्या बनाए जाएंगे, सब तय पहले ही हो जाता है। मगर क्या आपने कभी सोचा है कि सिर्फ ये तीन चीजें ही खासतौर पर क्यों बनाई जाती हैं।

दरअसल, इनका अलग महत्व है। होली जैसे उत्सव से इन डेलिकेसिस का बड़ा गहरा संबंध है। हर क्षेत्र में होली मनाने का तरीका अलग होता है, लेकिन ये पांरपरिक डेलिकेसी कभी नहीं बदलती। आइए आपको इस आर्टिकल में बताएं कि होली पर ये चीजें क्यों बनाई जाती हैं।

होली पर क्यों बनाई जाती है गुजिया?

why do we eat gujiya on holi

हर घर में महीने भर पहले से ही गुजिया बननी शुरू हो जाती हैं। गुजिया मिठास और उत्सव का प्रतीक मानी जाती हैं। इनका होली से बड़ा गहरा ताल्लुक है। गुजिया, खोया और ड्राई फ्रूट्स के मिश्रण से बनाई जाती है। पहले गांव की औरतें एक-एक घर में जुटकर गुजिया और तमाम पकवान बनाया करती थीं। इसलिए इसे एकजुटता का प्रतीक माना जाता है। इसकी मिठास रिश्ते को और भी मजबूत करती है।

तुर्की के लोकप्रिय बकलावा से भी इसका कनेक्शन माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि बकलावा को देखकर ही गुजिया बनाने की प्रेरणा भारतीयों को मिली थी। बकलावा में शहद, चीनी और ड्राई फ्रूट्स का स्वादिष्ट मिश्रण होता है, जिसकी ऊपर की लेयर सॉफ्ट और चशनी में डूबी होती है। इसके अलावा, यह भी थ्योरी है कि भारत में गुजिया को सबसे पहले 17वीं सदी में उत्तर प्रदेश बनाया गया था। यहीं से यह पूरे देश में मशहूर हुई थी।

ऐसा भी माना जाता है कि श्री कृष्ण को गुजिया बहुत पसंद थी और होली के दौरान वृंदावन और मथुरा के लोग गुजिया को बनाकर भगवान कृष्ण को भोग लगाते थे। बस तभी से यह पारंपरिक मिठाई बन गई और हर घर का एक अटूट रिश्ता गुजिया से जुड़ गया।

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होली पर क्यों बनाया जाता है कचरी पापड़

गुजिया की मिठास को कचरी पापड़ बैलेंस करने में मदद करते हैं। साथ ही यह एक नयापन लाते हैं। यह राजस्थान और गुजरात जैसे क्षेत्रों में एक लोकप्रिय स्नैक है, जिसे होली पर खासतौर से बनाया जाता है। कचरी पापड़ का महत्व वसंत के आगमन और उसके साथ आने वाली ताजी उपज से जुड़ा हुआ है।

कचरी पापड़ बनाने की प्रक्रिया में कचरी के टुकड़ों को कुरकुरा और सुनहरा-भूरा होने तक धूप में सुखाया जाता है। यह प्रक्रिया ग्रामीण जीवन की सादगी को दर्शाती है। यही कारण है कि होली पर गुजिया के साथ इसे भी बनाया जाता है। वहीं, मीठा खाने के बाद नमकीन खाने की आवश्यकता होती है। होली में भागदौड़ के बीच भूख भी लगती है। ऐसे में ये कचरी और पापड़ भूख को कंट्रोल करने में मदद करते हैं।

होली पर क्यों बनाई जाती है ठंडाई?

thandai on holi

होली के बाद से गर्मी बढ़ जाती है। होली के दिन ज्यादातर लोग धूप में खेलते और दौड़ते हैं। यह उन्हें थकाता है और उन्हें गर्मी भी लगती है। ठंडाई आपके शरीर को ठंडक प्रदान करती है। यही कारण है कि ठंडाई को होली पर खास रूप से परोसा जाता है। इसमें मिले ड्राई फ्रूट्स और मसाले ताजगी के साथ शक्ति भी देते हैं। दिनभर खेलने के बाद भूख लगती है और यह पौष्टिक पेय आपकी भूख का इलाज करता है। अपने ठंडे गुणों के लिए मशहूर, ठंडाई होली के उल्लास के बीच जरूरी ताजगी प्रदान करती है।

इतना ही नहीं, होली के दौरान ठंडाई पीने की परंपरा हिंदू पौराणिक कथाओं में भी बताई गई है, जहां इसे भगवान शिव से जुड़ा माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जहर के प्रभाव को कम करने के लिए, भगवान शिव ने भांग सहित जड़ी-बूटियों और मसालों के एक शक्तिशाली मिश्रण का सेवन किया था। होली से पहले आने वाली महाशिवरात्रि के दौरान अक्सर भांग से बनी ठंडाई भगवान शिव को भोग चढ़ाई जाती है।

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होली पर गुजिया, ठंडाई और कचरी बनना सिर्फ भूख को सैटिसफाई करने का तरीका नहीं है, बल्कि यह हमारे समृद्ध कल्चर को दर्शाता है। आपके यहां गुजिया को किस नाम से जाना जाता है, हमें जरूर बताएं। अगर आपको यह लेख पसंद आया, तो इसे लाइक और शेयर करें। ऐसे ही लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी के साथ।

Image Credit: Freepik

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