हमारे समाज में औरतों को हमेशा पुरुषों से कम ही आंका जाता है लेकिन कई सफल महिलाओं ने इस बात को पूरी तरह गलत साबित किया है। आज हम जिन महिलाओं की बात कर रहे हैं उन्होंने घर से शुरु हुए पापड़ के छोटे से कारोबार को अपनी काबिलियत से सफलता के शिखर पर पहुंचा दिया। गांव की पृष्ठभूमि से आई और कम पढ़ी-लिखी होने बावजूद अपनी मेहनत से इन्होंने वह कर दिखाया जिसे करना आसान नहीं था। माने या ना माने लेकिन भारतीय महिलाओं के लिये ये काफी सम्मान की बात है और ये हौसला भी देती है कि अगर आप अपने हुनर को तलाश लें तो कामयाबी पा सकती हैं। जी हां, आज हम आपको बताने वाले हैं पापड़ का पर्याय बने श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ के बारे में। जिस दिन लिज्जत का पहला पापड़ बेला गया था, उस दिन शायद किसी ने ये सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन यह एक बड़ा उद्योग बनेगा और हजारों महिलाओं के रोजी-रोटी का सहारा भी बनेगा।
कहां से शुरू हुई यह संघर्ष की कहानी:
मुंबई की रहने वाली जसवंती जमनादास पोपट ने अपना परिवार चलाने के लिए 1959 में पापड़ बेलने का काम शुरू किया था। जसवंती बेन गरीब परिवार से ताल्लुक रखती थी और कम पढ़ी-लिखी भी थी लेकिन उनमें कारोबार की अच्छी समझ थी। उन्होंने इस काम में अपने साथ और छह गरीब बेरोजगार महिलाओं को जोड़ा और 80 रुपये का कर्ज लिया और पापड़ बेलने का काम शुरु किया। उनके साथ शामिल हुईं महिलाओं के नाम थे उजमबेन नरानदास कुण्डलिया, पार्वतीबेन रामदास ठोदानी, लागुबेन अमृतलाल गोकानी, बानुबेन तन्ना, जयाबेन विठलानी और उनके साथ एक और महिला थी, जिसे पापड़ों को बेचने की जिम्मेदारी ली थी। यह सभी महिलाएं गुजराती परिवार से थीं, तो जाहिर सी बात है कि उन्हें पापड़-खाखरा बनाने में महारत हासिल थीं। इन महिलाओं द्वारा 15 मार्च 1959 को लिज्जत का पहला पापड़ बेला गया था। पापड़ बेलने की शुरूआत किसी बड़े उद्योग या फिर पैसे कमाने के उद्देश्य से नहीं हुई थी।
सातों ने तय किया था कि वे इस व्यवसाय के लिए किसी से चंदा नही मांगेगी, चाहे उनका व्यवसाय घाटे में ही क्यों ना चला जाये। लेकिन कुछ माह की मेहनत में ही उन्होंने 80 रुपए का उधार चुका दिया और फिर चार पैकेट से 40 और फिर 400 तक पहुंचने में वक्त नहीं लगा। 80 रुपये से शुरू हुआ यह कारोबार आज सालाना 800 करोड़ रुपये का कारोबार करती है। इस कारोबार से तकरीबन 45 हजार महिलाएं जुड़ी हुई हैं और इसके 62 ब्रांच हैं। ये सभी महिलाएं आर्थिक रूप से कमजोर हैं और अपनी खराब आर्थिक स्थिति के कारण ज्यादा शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाई हुई हैं। लेकिन वो इसे अपनी कमी नहीं मानती हैं और यही इस कारोबार की सफलता का राज है। 1962 में ग्रुप ने अपने पापड़ का नामकरण किया और यह नाम था 'लिज्जत पापड़'। लिज्जत गुजराती शब्द है, जिसका अर्थ स्वादिष्ट होता है। साथ ही, इस ऑर्गेनाइजेशन का नाम रखा गया 'श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़'।अगर घर बैठे पापड़ खरीदना चाहती है तो हम आपको बता दें कि आप लिज्जत पापड़ के दो पैकेट यहां से 120 रुपये में खरीद सकती हैं।
लिज्जत पापड़ देश-विदेश में फेमस हैं और इसके फेमस होने के पीछे का कारण है इसकी गुणवत्ता। इसकी गुणवत्ता का श्रेय इस कारोबार से जुड़ी सभी महिलाएं को जाता हैं जो यहां बनाने वाले पापड़ों की गुणवत्ता का खास ख्याल रखती हैं। यहां अभी भी पापड़ों को मशीन से नहीं बल्कि हाथों से बनाया जाता है और आटा गूंथना, लोई बनाना, पापड़ बनाना, सुखाना और पैंकिग इस पापड़ के मुख्य चरण हैं। लिज्जत ग्रुप की दो सबसे अच्छी बातें यह है कि लिज्जत पापड़ सरकार से किसी भी तरह की आर्थिक सहायता नहीं लेती और यहां काम करने वाली हर महिला को 'बहन' शब्द से संबोधित किया जाता है, जिस कारण सब एक समान दिखते हैं।अगर घर पर बेसन खत्म हो गया है तो आप ऑनलाइन भी मंगवा सकती हैं। बेसन का 1 किलो के पैकेट का मार्किट प्राइस 120 रुपये है, लेकिन इसे आप यहां से 108 रुपये में खरीद सकती हैं।
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कैसा है लिज्जत पापड़ का उद्योग:
ये कंपनी बाकी कंपनियों से थोड़ी अलग है, इस व्यापार में सभी महिला सदस्य हैं। यहां अध्यक्षता कार्यकारी समिति से सदस्य बारी-बारी से संभालते हैं और वो भी सबकी सहमति से चुने जाते हैं। यानी सबको मौका दिया जाता है जो इस उद्योग की सफलता में एक अहम किरदार निभाते हैं। हर शाखा का नेतृत्व एक संचालिका करती है। इन शाखाओं के संचालन के लिए 21 सदस्यों वाली एक केंद्रीय प्रबंधन समिति भी बनी है। जिसमें एक अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष, दो सचिव और दो कोषाध्यक्ष सहित छह निर्वाचित अधिकारी हैं। इनका चुनाव सर्वसम्मति से किया जाता है और जो हर साल बदलती रहती हैं। आज की तारीख में श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ अब पापड़ के अलावा डिटर्जेंट और ब्रेड बनाने का काम भी कर रही है।
Photo courtesy- (DoerLife, Yahoo Finance, Marketing Mind, Thoughts on Life & Leadership & Insta Saver)
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