भारत में ऐसे कई फल और सब्जी है, जिससे आज भी बहुत से लोग अनजान है। फल के नाम पर लोगों को केला, सेब, संतरा, आम और अंगूर जैसे फलों के बारे में अच्छे से पता होता है। लेकिन पहाड़ों पर ऐसे बहुत से फल और सब्जी हैं, जो सामान्य बाजार में नहीं मिलते हैं और इसके बारे में लोगों को पता नहीं होता है। इन फलों के बारे में वहां के रहने वाले और पहाड़ी क्षेत्र में घूमने जाने वाले लोगों को ही पता होता है। ऐसे में उत्तराखंड के क्षेत्रों में एक ऐसा ही फल है काफल, जिसके बारे में लोगों को नहीं पता है। बता दें कि यह फल देश के पीएम नरेंद्र मोदी का प्रिय फल है।
काफल फल के बारे में

काफल एक जंगली फल है जो केवल उत्तराखंड में ही मिलता है। खट्टे मीठे स्वाद का यह फल अपने स्वाद और खूबसूरती से हजारों पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। यह फल गर्मियों के मौसम में आता है और कई सारे लोगों का रोजगार का जरिया बनता है। काफल का फल दिखने में लाल और सिंदूरी लाल रंग का और स्वाद में खट्टा मीठा होता है। जुलाई में जब इस फल में पानी पड़ता है तो इसकी मिठास बढ़ जाती है। पहाड़ों में मिलने वाला यह फल घूमने आने वाले पर्यटकों की पहली पसंद है।
काफल का दाम क्या है?
उत्तराखंड के बाजार में यह फल 300-350 रुपये किलो तक मिल सकता है। अच्छी दाम होने के कारण पहाड़ी लोगों के आय का बढ़िया साधन है। पहाड़ों में रहने वाले लोग इसे सुबह-सुबह तोड़कर बाजार ले जाते हैं और ठेले में पहाड़ी नमक और सरसों के तेल के साथ बेचते हैं। बारिश अच्छी पड़ने के कारण इस फल की मिठास बढ़ गई है। यदि आपको जून-जुलाई में उत्तराखंडजाने का मौका मिले तो इस फल का स्वाद जरूर चखें।
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कहा पाया जाता है काफल
काफल का फल दुर्लभ फल की श्रेणी में आता है, जिसे आसानी से कही भी नहीं खरीद सकते हैं। दो महीने मिलने वाले इस पहाड़ी फल को हर कहीं नहीं लगाया जा सकता है। यह कपकोट, गूनाकोट, घिंघारतोला, गिरेछीना और नरगोल के जंगलों में पाया जाता है। एंटीऑक्सीडेंट (एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर फूड) से भरपूर यह फल सेहत के लिए बेहद फायदेमंद है। इस फल के पेड़ को कहीं लगाया नहीं जाता है ये अपने आप ही उगते हैं और पहाड़ियों को काफल के रूप में मीठा तोहफा देते हैं। काफल को लेकर कुमाऊंनी भाषा में लोकगीत प्रचलित है जिसमें काफल अपना दर्द बयां करते हैं। काफल फल को अपने ऊपर बेहद गर्व है और स्वयं को देवताओं के खाने योग्य समझते हैं इसलिए उनके दर्द को बयां करने के लिए कुमाऊंनी भाषा में ये लोक गीत प्रचलित है, 'खाणा लायक इंद्र का, हम छियां भूलोक आई पणां, जिसका अर्थ है कि हम (काफल) स्वर्ग में इंद्र देव के खाने योग्य थे और अब भू लोक में आ गए हैं।'
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