दही जमाने की शुरुआत कैसे और कहां हुई थी? जानिए 4000 साल पुराना रोचक इतिहास

दही का इतिहास 4000 साल पुराना है और इसने एक लंबा सफर तय किया है। आइए जानते हैं कि दही की खोज किसने और कहां की थी? 
fascinating story of curd where and how did curdling originate

भारत में दही का इस्तेमाल पराठा, पोहा, रायता और कई अन्य व्यंजनों के साथ किया जाता है। यह हमारे भोजन का अहम हिस्सा है, इसे दुनिया के कई हिस्सों में ‘योगर्ट’ नाम से भी जाना जाता है। यह सबसे पुराना और पॉपुलर डेयरी प्रोडक्ट्स में से एक है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि दही की खोज कहां हुई थी और किसने दही जमाने की शुरुआत की थी? आपको बता दें कि भारत में दही की खोज नहीं हुई थी, बल्कि बुल्गारिया ने इस पौष्टिक डेयरी प्रोडक्ट को दुनिया भर में पहुंचाया था।

आपको जानकार हैरानी होगी कि दही का आविष्कार लगभग 4000 साल पहले बुल्गारिया में हुआ था, इसलिए बुल्गारियाई लोग अपनी ट्रेडिशनल डिशेज में दही का इस्तेमाल जरूर करते हैं।

खानाबदोश जनजातियों ने गलती से दही की खोज की

किंवदंतियों के अनुसार, लगभग 4,000 साल पहले खानाबदोश लोगों ने अनजाने में दही का आविष्कार किया था। ऐसा कहा जाता है कि खानाबदोश लोग जानवरों को पालते थे और यूरोप के बाल्कन क्षेत्र में घूमते थे। उस समय रेफ्रिजरेटर जैसी कोई सुविधा मुहैया नहीं थी, तब लोग दूध को जानवरों की खाल या मिट्टी के बर्तनों में भरकर रखते थे। गर्म मौसम की वजह से दूध वातावरण में मौजूद नैचुरल बैक्टीरिया के संपर्क में आ जाता था। गर्मी की वजह से दूध धीरे-धीरे किण्वित होकर गाढ़ा हो जाता था, जो दही में बदल जाता था।

शुरुआत में, जब खानाबदोश लोगों ने दूध को दही में बदलते देखा, तो वे हैरान रह गए। उन्होंने जब दही का टेस्ट किया, तो उसमें कोई स्वाद नहीं था, लेकिन इसे लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता था। यह सोचकर उन्होंने धीरे-धीरे दही को भोजन का अहम हिस्सा बना लिया।

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दही का प्राचीन इतिहास

where did curd originate

दूध के फर्मेंटेशन का सबसे पुराना प्रमाण लगभग 5000 ईसा पूर्व मेसोपोटामिया और प्राचीन मिस्त्र में मिलता है। पुरातत्वविदों को इन सभ्यताओं में पनीर और दही बनाने के सबूत मिले हैं। मिस्त्र के प्राचीन मकबरों में ऐसी तस्वीरें पाई गई हैं, जिनमें लोग दूध से अलग-अलग प्रोडक्ट बनाते हुए दिखाए गए हैं। इससे पता चलता है कि फर्मेंटेशन प्रोसेस को ये लोग अच्छी तरह से समझते थे।

भारत में दही का इतिहास

भारत में दही को प्राचीन समय से पूजनीय माना जाता रहा है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, दही को धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल किया जाता रहा है। आयुर्वेद के मुताबिक, दही भारत की पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली है और इसे सेहत के लिए फायेदमंद माना जाता है। दही का इस्तेमाल भारत में शुभ कामों की शुरुआत के दौरान जरूर किया जाता है।

ग्रीक और रोमन सभ्यता का इतिहास

प्राचीन ग्रीक और रोमन सभ्यता में भी दही काफी लोकप्रिय रहा था। महान यूनानी चिकित्सक हिप्पोक्रेट्स ने किण्वित दूध प्रोडक्ट्स को सेहत के लिए लाभकारी बताया था। वहीं, रोम के लोग शाही दावतों में जाकर दही को शहद और फलों के साथ मिलाकर खाते थे। इस तरह दही न केवल पौष्टिक भोजन, बल्कि हजारों सालों से अलग-अलग संस्कृतियों का अहम हिस्सा भी रहा है।

दही में बैक्टीरिया की खोज

history of curd making

दही में पाए जाने वाले स्पेशल बैक्टीरिया की खोज डॉक्टर स्टैमेन ग्रिगोरोव ने की थी। बुल्गारिया देश के वैज्ञानिक डॉक्टर ग्रिगोरोव ने इस बात से पर्दा उठाया था कि दूध दही में कैसे बदलता है। जब डॉक्टर की शादी हुई, तो उनकी पत्नी ने घर का बना दही मिट्टी के बर्तन में भरकर दिया। वह इसे लेकर जिनेवा की मेडिकल यूनिवर्सिटी पहुंचे और यहां उन्होंने शोध शुरू किया। साल 1905 में डॉक्टर ग्रिगोरोव ने दूध को दही में बदलने वाले विशेष बैक्टीरिया की खोज कर ली और उसका नाम लैक्टोबैसिलस बुल्गारिकस रखा गया।

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दही बनाने की पारंपरिक विधियां

पुराने जमाने में, जब मॉर्डन टेक्नीक मौजूद नहीं थीं, तब लोग दही जमाने के लिए प्राकृतिक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं।

  • मिट्टी के बर्तन- भारत में, गर्म दूध को मिट्टी के बर्तन में थोड़ी मात्रा में दही मिलाकर जमाया जाता है और जिससे रातभर यह फर्मेंटेड होता है।
  • चमड़े के थैले- खानाबदोश लोग अपने साथ दूध को ले जाने के लिए जानवरों की खाल से बने थैलों का इस्तेमाल करते थे। इन थैलों में मौजूद नैचुरल बैक्टीरिया दूध को धीरे-धीरे दही में बदल देते थे।
  • लकड़ी और पत्थर के बर्तनों को इस्तेमाल- ठंडी जगहों पर दूध को लकड़ी या पत्थर के बर्तनों में भरकर हल्के गर्म स्थानों के पास रख दिया जाता था ताकि दूध दही में बदल जाए।

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Image Credit - freepik, social media


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