साउथ इंडिया में नहीं हुआ था इडली का जन्म...जानिए किस देश से आई थी ये मशहूर डिश

इडली और सांभर साउथ इंडिया की ट्रेडिशनल डिश है, लेकिन आज यह पूरे भारत में पसंद की जाती है। यह एक हेल्दी और टेस्टी ब्रेकफास्ट है, लेकिन ये डिश कहां से आई थी और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई आइए जानते हैं। 
fascinating history of idli and where did this popular dish originally come from

इडली और सांभर साउथ इंडियन डिशेज का एक अहम हिस्सा है, जो अपने स्वाद और पोषण के कारण पूरे भारत में बेहद लोकप्रिय हैं। यह सिर्फ एक पारंपरिक व्यंजन नहीं, बल्कि सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद माना जाता है। इडली को भाप में पकाया जाता है, जिससे यह काफी हल्की और कैलोरी फ्री होती है। इसे चावल और दाल से बनाया जाता है और इसके बैटर को Fermented किया जाता है, जिससे इसमें अच्छे से बैक्टीरिया पनपते हैं और यह एक प्रोबायोटिक फूड बन जाता है। इडली खाने से डायजेशन सिस्टम सही रहता है और शरीर में अमीनो एसिड बना रहता है। इडली को आप ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर किसीभी रूप में खा सकते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इडली की उत्पत्ति कहां हुई थी और यह कैसे भारत में आई और मुख्य दक्षिण भारतीय व्यंजन बन गई।

इडली की उत्पत्ति की रोचक कहानी

इडली का इतिहास सदियों पुराना है और इसकी उत्पत्ति को लेकर कई तरह की कहानियां प्रचलित है। कुछ इतिहासकार इसे इंडोनेशिया से जोड़ते हैं, जबकि कुछ इसे अरब व्यापारियों से।

इंडोनेशिया का प्रभाव

How has the idli recipe evolved over time

कर्नाटक के प्रसिद्ध खाद्य इतिहासकार केटी आचार्य के अनुसार, इडली की जड़ें 7वीं से 12वीं शताब्दी के बीच के समय में इंडोनेशिया में मिलती हैं। वहां इडली को ‘कुढ़ी’ के नाम से जाना जाता था। 9वीं से 13वीं शताब्दी के बीच दक्षिण भारत पर चोल राजाओं का शासन था और उनके संबंध इंडोनेशिया के साथ काफी गहरे थे। उस दौरान, राजाओं के साथ उनके रसोइये भी इंडोनेशिया की यात्रा किया करते थे। माना जाता है कि चोल राजा जब इंडोनेशिया गए तो, उनके साथ उनके रसोइए भी गए थे और उन्होंने फर्मेंटेड चावल के घोल से बनाई जाने वाली कुढ़ी डिश को देखा था और वे इस तकनीक को लेकर भारत लौटे थे। उन्होंने भारत में भी इस तकनीक को अपनाया और समय के साथ यह डिश इडली के रूप में विकसित हो गई।

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प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इडली का उल्लेख

वैसे तो इडली की उत्पत्ति इंडोनेशिया में ही मानी जाती है, लेकिन प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इडली जैसे व्यंजनों का उल्लेख मिलता है।

9वीं शताब्दी: वड्डाराधने ग्रंथ

इडली के समान व्यंजन का सबसे पुराना लिखित उल्लेख कर्नाटक के शिवकोटियाचार्य द्वारा रचित 'वड्डाराधने' नामक कन्नड़ ग्रंथ में मिलता है। इसमें 'इडलीगे' नामक व्यंजन का जिक्र किया गया है, जिसे काले चने और छाछ के मिश्रण से बनाया जाता था। हालांकि, यह व्यंजन न तो फर्मेंटेड होता था और न ही इसे भाप में पकाया जाता था।

12वीं शताब्दी: मानसोलासा ग्रंथ

राजा सोमेश्वर तृतीय द्वारा रचित 'मानसोलासा' में इड्डरिका नामक एक व्यंजन वर्णित है। इसमें इडली जैसी प्रक्रिया अपनाई जाती थी, लेकिन सामग्री थोड़ी अलग होती थी।

17वीं शताब्दी: तमिल साहित्य

तमिल साहित्य में भी 17वीं शताब्दी के दौरान इडली का जिक्र मिलता है। हालांकि, इस समय तक इडली को भाप में पकाए जाने वाले व्यंजन के रूप में पहचान मिल चुकी थी।

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अरब व्यापारियों का प्रभाव

History of idli

इडली के इतिहास को लेकर कहा जाता है कि अरब व्यापारियों द्वारा इसे भारत लाया गया था। ऐतिहासिक ग्रंथ ‘एनसाइक्लोपीडिया ऑफ फूड हिस्ट्री’ और ‘सीड टू सिविलाइजेशन - द स्टोरी ऑफ फूड’ के अनुसार, अरब व्यापारी हलाल भोजन का पालन करते थे और आसानी से पचने वाले, फर्मेंटेड फूड को प्रथामिकता देते थे। उस समय ‘डोसाई’ नामक डिश दक्षिण भारत में लोकप्रिय थी और अरब व्यापारियों ने डोसे के घोल को एक नया रूप देने और उसे नरम और भाप में पकाए जाने वाली डिश में बदलने के प्रोसेस को प्रोत्साहित किया और इस तरह इडली का जन्म हुआ।

समय के साथ इडली का विकास

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आज हम जो इडली खाते हैं, वह समय के साथ कई बदलावों से गुजरी है। आमतौर पर इडली को उड़द दाल और चावल के साथ तैयार किया जाता है। इसके बैटर को भाप में पकाया जाता है और इसे सांभर और चटनी के साथ परोसा जाता है।

आज भी भारत के कई हिस्सों में खासकर तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल में नाश्ते के तौर पर इस व्यंजन को खाया जाता है। वहीं, द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान चावल की कमी के चलते इडली को सूजी यानी रवा से तैयार किया जाने लगा था। इसके अलावा, मॉर्डन जमाने में इडली को फ्राय करके खाया जाता है और इसने मिनी आकार भी ले लिया है।

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Image Credit - freepik, wikipedia

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