मुझे याद है बचपन के वो दिन...जब स्कूल से लौटक आओ, तो मम्मी नींबू पानी बनाकर सर्व करती है। यही आदत मुझे में भी है। गर्मी आते ही मेरी पैंट्री में नींबू का ढेर लग जाता है। नमक, नींबू और पानी का यह जादुई मेल न सिर्फ प्यास बुझाता है, बल्कि थकान मिटाकर फिर से ऊर्जा से भर देता है।
मगर क्या कभी नींबू पानी पीते हुए आपने सोचा है कि यह ड्रिंक किसने बनाई होगी? यह ड्रिंक कब बनाई गई होगी? क्या आपने कभी सोचा है कि यह देसी ड्रिंक, जिसे हम कभी शिकंजी या लेमोनेड कहते हैं, वाकई भारतीय है? या फिर इसका सफर कहीं और से शुरू हुआ था?
चलिए आज आपको नींबू पानी की उस दिलचस्प कहानी से रूबरू करवाते हैं, जो शायद आपने पहले कभी नहीं सुनी।
मिस्र की धरती से निकला पहला 'नींबू पानी'?
इतिहासकारों और फूड रिसर्चर्स की मानें, तो नींबू पानी का सबसे पहला जिक्र 11वीं सदी के मिस्र में किया गया था। उस दौर में मिस्र के लोग एक ड्रिंक बनाते थे जिसे कतरमिजात कहा जाता था। यह एक मीठा और नींबू वाला पेय था, जिसे शहद के साथ मिलाकर तैयार किया जाता था। गर्मी में लोगों की प्यास बुझाने के लिए इस लेमन ड्रिंक को खूब चाव से पिया जाता है।
कहा जाता है कि नींबू के पेड़ भारत या चीन से मिस्र पहुंचे थे और वहां के लोगों ने जल्दी ही इस खट्टे फल का उपयोग अपने तरीके से शुरू कर दिया। धीरे-धीरे यह नींबू वाला ड्रिंक मध्य पूर्व, यूरोप और फिर एशिया में लोकप्रिय हो गया।
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आखिर भारत में नींबू पानी की एंट्री कैसे हुई?
भारत ने जब नींबू पानी को अपनाया, तो इसमें सिर्फ नींबू और पानी नहीं था बल्कि स्वाद और सेहत का अनोखा देसी मेल भी देखने को मिला।
भारत में यह लेमन वॉटर नहीं था, बल्कि इसमें अलग मसाले डाले गए और इसे देसी ट्विस्ट के साथ सर्व किया गया। नींबू पानी में काला नमक, भुना जीरा, पुदीना, आदि चीजें भी पड़ने लगीं, ताकि इसका स्वाद एन्हांस हो।
यही देसी ट्विस्ट लोगों को लुभाने के काम आया। यह सिर्फ एक ड्रिंक नहीं रहा, बल्कि शरीर को ठंडा रखने, पाचन को सुधारने और इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस को बनाए रखने वाला घरेलू नुस्खा बन गया।
आज जब लोग फिटनेस और डिटॉक्स ड्रिंक की बात करते हैं, तो नींबू पानी सबसे ऊपर आता है। और क्यों न हो? यह विटामिन C से भरपूर होता है, जो इम्यूनिटी बढ़ाता है। पुरानी पीढ़ियों के नुस्खे अब मॉडर्न हेल्थ ट्रेंड बन चुके हैं।
नींबू का मिस्र से भारत तक का सफर
आपको बता दें कि सदियों से मिस्र और भारत के बीच व्यापारिक संबंध रहे हैं। मसाले, चाय, ड्राई फ्रूट्स और कपड़े तो आते-जाते थे, साथ में रेसिपीज और खानपान की आदतें भी एक-दूसरे में घुलने-मिलने लगीं।
ऐसा संभव है कि नींबू पानी का पहला विचार मिस्र से आया हो, लेकिन भारत ने इसे अपनाकर अपना बना लिया। इसमें अपने मसाले, अपने स्वाद और अपनी खासियत घोल दी।
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नींबू पानी ग्लोबल स्तर पर पहुंच गया
आज नींबू पानी सिर्फ भारत या मिस्र तक सीमित नहीं है। यह दुनिया के हर कोने में पहुंच चुका है। कभी लेमोनेड, कभी सिट्रस रिफ्रेशर, तो कभी डिटॉक्स वॉटर के नाम से।
अमेरिका में लोग इसे अपनी पिकनिक का हिस्सा बना चुके हैं। कोई भी पिकनिक इसके बिना पूरी नहीं होती। जापान में इसे विटामिन-सी शॉट्स की तरह पिया जाता है और भारत में तो यह अब भी वही सस्ती, स्वादिष्ट और सेहतमंद ड्रिंक है, जिसका एक गिलास ताजगी से भर देता है।
अब भी सवाल है कि क्या नींबू पानी वाकई मिस्र से आया है? तो जवाब है, शायद हां। हो सकता है कि इसके बीज मिस्र की धरती में पड़े हों, लेकिन इसकी असली जड़ें भारत के हर घर, हर गली और हर दुकान तक फैली हुई हैं। नींबू पानी सिर्फ एक पेय नहीं, बल्कि हमारी यादों और परंपराओं का हिस्सा बन चुका है।
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Image Credit: Freepik
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