बॉलीवुड के गाने हो या शायरों की महफिल सभी ने काजल की सुंदरता का बेहद खूबसूरत वर्णन किया है। किसी ने आंखों में लगे काजल को चांद की उपमा दी है तो किसी ने महिलाओं के श्रृंगार का सबसे अहम हिस्सा बताया है। काजल पर लिखी ये सभी बातें सालों बाद भी उसकी सुंदरता का बखान वैसे ही करती हैं। आंखों में सजने वाला काजल जो कभी छोटे बच्चे की आंखों को और मनमोहक बनाता है, तो कभी उसका एक टीका मात्र लोगों को बुरी नजर से बचाने का काम करता है।
इस सौंदर्य के सामान का बेहद दिलचस्प इतिहास भी रहा है, तो आइए जानते हैं आखों में सजने वाले काजल के इतिहास से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें, जिनके बारे में जानकर आपको सालों पुराने काजल की यात्रा का पता चलेगा।
काजल का इस्तेमाल भारत की महिलाओं में बड़े चाव से किया जाता है। बता दें कि यहां इसे अलग-अलग नामों से बुलाया जाता है, जैसे पंजाबी और उर्दू भाषी लोग इसे सुरमा बूलाया करते हैं, कन्नड़ में इस काडिगे, तमिल में कान माई, तेलुगू में कातुक और मलयालम भाषा में इसे कन्माशी के नाम से पुकारा जाता है। इतने नाम ही बताते हैं कि भारत में महिलाओं के बीच काजल कितना प्रसिद्ध माना जाता है। इतना ही नहीं काजल महिलाओं के सोलह श्रृंगार का हिस्सा है, काजल के बिना महिला के श्रृंगार को अधूरा कहा जाता है।
आपने अक्सर दिवाली की रात में घर पर काजल बनाकर लगाया होगा। पुराने समय में दीपक के ऊपर एक डिब्बा रख कर काजल बनाया जाता है, जिसे आंखों को सजाने का रिवाज था। इतिहास में काजल मिलने का सबसे पहला प्रमाण मिश्र में मिलता है। इतिहासकारों का मानना है कि मिश्र में करीब 3100 ईसा पूर्व से काजल का उपयोग शुरू हुआ। क्योंकि मिश्र देश के लोग साजो-सज्जा के काफी ज्यादा शौकीन थे काजल का इस्तेमाल होने के प्रमाण यहीं पर देखने को मिलते हैं।
शुरुआत में काजल का इस्तेमाल आंखों में आई विभिन्न प्रकार की समस्याओं को ठीक करने के लिए किया जाता था। पहले के समय के लोगों का यह मानना था काजल लगाने से आंखों को सूरज की रौशनी से कोई नुकसान नहीं पहुंचता, जिसका अर्थ यह है कि काजल का मुख्य इस्तेमाल आंखों को सजाने के लिए नहीं बल्कि दवा के रूप में किया जाता था।
मिश्र के साथ-साथ काजल का इस्तेमाल हमें अफ्रीकी देशों की आदिवासी कबीलों में देखने को मिलता है। अफ्रीका में रहने वाले आदिवासी काजल का इस्तेमाल मात्र आंखों के लिए नहीं बल्कि शरीर के कुछ अन्य हिस्सों, जैसे माथे और नाक के लिए भी किया जाता है। इन दोनों स्थानों के अलावा दक्षिण एशिया में भी काजल के इस्तेमाल के प्रमाण हमें देखने को मिलते हैं।
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भारत में काजल मात्र श्रृंगार के लिए ही नहीं बल्कि आस्था के लिए बहुत मायने रखता है। बचपन से लेकर बड़े होने तक काजल का प्रयोग हर स्थान के लिए बहुत शुभ माना जाता है। जन्म के बाद छठी के दिन बच्चों की आखों में उनकी बुआ काजल लागाती हैं, वहीं शादी के समय भी कई जगहों पर काजल लगाने का रिवाज हैं। भारत के सभी पारंपरिक और सांस्कृतिक कलाकारों द्वारा भी काजाल का इस्तेमाल किया जाता है।
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कपूर और बादाम के जरिए आप घर पर भी काजल बना सकती हैं, वहीं दीपक की लौ का इस्तेमाल करके भी काजल तैयार किया जा सकता है, इस काजल को हिंदू मान्यता के अनुसार दीवाली की रात में घर के सभी सदस्यों द्वारा लगया जाता है।
आज बाजार में कई तरह से काजल उपलब्ध हैं। उनमें से कुछ रंग-बिरंगे हैं और कुछ जो खास तौर पर आंखों को हाइलाइट करने के काम आते हैं। आज बड़ी बड़ी कंपनियां अपने ब्रांड का काजल बेचती हैं, उनमें कई काजल ऐसे हैं जो 12 घंटों तक जैसे के तैसे ही बने रहते हैं। हालांकि इनमें से कई काजल केमिकलाइज होते हैं, जिस वजह से आंखों में समस्याएं होने का डर होता है। ऐसे में आपको अपने लिए एक परफेक्ट और बिना केमिकल वाला काजल चुनना चाहिए।
तो ये था हमारा आज का आर्टिकल जिसमें हमने आपको काजल के इतिहास से जुड़े कई तथ्यों के बारे में बताया। आपको हमारा यह आर्टिकल अगर पसंद आया हो तो इसे लाइक और शेयर करें साथ ही ऐसी जानकारियों के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी के साथ।
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