योगिनी एकादशी का व्रत इस साल 21 जून, शनिवार के दिन रखा जाएगा। योगिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा एवं एकादशी व्रत का पालन करने से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने जितना शुभ फल मिलता है। योगिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना से घर में सुख-समृद्धि आती है और सौभाग्य में वृद्धि होती है। इसी कड़ी में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि योगिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा से जहां एक ओर सभी भौतिक सुख मिलते हैं तो वहीं, दूसरी ओर इस एकादशी की व्रत कथा सुनने या पढ़ने से दोषों को नाश होता है। ऐसे में आइये जानते हैं योगिनी एकादशी की व्रत कथा के बारे में विस्तार से।
योगिनी एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में स्वर्ग लोक में 'अलकापुरी' नाम की एक सुंदर नगरी थी। इस नगरी में कुबेर नाम के एक राजा राज्य करते थे जो भगवान शिव के बड़े भक्त थे। राजा कुबेर के पास 'हेम माली' नाम का एक सेवक था जिसका काम हर रोज मानसरोवर से फूल लाकर राजा को पूजा के लिए देना था। हेम माली की 'विशालाक्षी' नाम की एक बहुत सुंदर पत्नी भी थी।
एक दिन की बात है, हेम माली मानसरोवर से फूल तो ले आया, लेकिन अपनी पत्नी विशालाक्षी के साथ हंसी-मजाक और प्रेम में इतना लीन हो गया कि वह राजा कुबेर को समय पर फूल देना भूल गया। राजा कुबेर अपने महल में बैठकर दोपहर तक फूलों का इंतजार करते रहे, लेकिन जब पूजा का समय बीत गया और हेम माली नहीं आया तो उन्हें बहुत गुस्सा आया। उन्होंने अपने सेवकों को हेम माली के पास भेजा ताकि वे उसके न आने का कारण जान सकें।
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सेवकों ने वापस आकर राजा को बताया कि हेम माली अपनी पत्नी के साथ रमण कर रहा था और इसी कारण वह फूल लेकर नहीं आ सका। यह सुनकर राजा कुबेर क्रोधित हो गए। उन्होंने तुरंत हेम माली को अपने सामने बुलाया और उसे श्राप दिया कि 'हे पापी! तूने मेरे भगवान शिव की पूजा में बाधा डाली है। इसलिए, तुझे अपनी प्रिय पत्नी से वियोग सहना पड़ेगा और तू कोढ़ी बनकर पृथ्वी पर गिरेगा। तुझे यह कोढ़ का रोग सहना होगा और तू नरक के कष्ट भोगेगा'।
राजा कुबेर के श्राप के प्रभाव से हेम माली तुरंत स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गिरा। वह कोढ़ी हो गया और उसके शरीर पर सफेद दाग पड़ गए। अपनी पत्नी से बिछड़ने और रोग से पीड़ित होने के कारण वह बहुत दुखी था। वह भूख-प्यास से व्याकुल होकर जंगलों और पहाड़ों में भटकने लगा। कभी उसे भीषण गर्मी सहनी पड़ती तो कभी कड़कड़ाती ठंड। रात-दिन भटकते हुए, अपने पापों के कारण वह बहुत कष्ट झेल रहा था।
कई सालों तक भटकने के बाद, एक दिन हेम माली घूमते-घूमते हिमालय पर्वत पर पहुंचा। वहां उसने एक बहुत ही शांत और पवित्र आश्रम देखा। यह आश्रम महान ऋषि मार्कण्डेय का था जो ब्रह्माजी से भी अधिक वृद्ध और ज्ञानी थे। हेम माली ने ऋषि को देखा तो उनके चरणों में गिर पड़ा। ऋषि मार्कण्डेय ने हेम माली को देखते ही पहचान लिया कि यह कोई पापी जीव है। उन्होंने उससे पूछा, 'तुम कौन हो और किस पाप के कारण तुम्हारी यह दुर्दशा हुई है'।
हेम माली ने ऋषि को अपनी पूरी कहानी सुनाई। उसने बताया कि कैसे वह राजा कुबेर का सेवक था और कैसे अपनी पत्नी के प्रेम में लीन होकर उसने राजा की पूजा में विघ्न डाला जिसके कारण उसे श्राप मिला और वह कोढ़ी हो गया। हेम माली की व्यथा सुनकर ऋषि मार्कण्डेय को उस पर दया आ गई। उन्होंने राजा को इस पीड़ा से मुक्त होने का उपाय बताया और राजा को आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी का विधि-विधान से व्रत रखने के लिए कहा।
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ऋषि ने राजा से कहा कि इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे सभी पाप दूर हो जाएंगे और तुम फिर से अपने पुराने स्वरूप में आ जाओगे। मार्कण्डेय ऋषि के वचन सुनकर हेम माली बहुत प्रसन्न हुआ। उसने तुरंत ऋषि को साष्टांग प्रणाम किया और उनके बताए अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से हेम माली का कोढ़ दूर हो गया और वह फिर से सुंदर और निरोगी हो गया। उसे अपने सभी पापों से मुक्ति मिल गई और वह फिर से स्वर्गलोक में अपनी पत्नी विशालाक्षी के पास लौट आया और सुखपूर्वक रहने लगा।
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