हमारी संस्कृति में मृत्यु को एक अटल सत्य माना जाता है और इससे जुड़े विभिन्न रीति-रिवाजों का अपना अलग महत्व है। किसी भी व्यक्ति के लिए जन्म जितना महत्वपूर्ण है, मृत्यु भी उतनी ही स्वाभाविक प्रक्रिया है। इसी वजह से हमारे शास्त्रों और परंपराओं में मृत्यु के बाद किए जाने वाले कर्मों का विस्तार से वर्णन मिलता है। अंतिम संस्कार, जिसे अंत्येष्टि भी कहा जाता है, मृतक के पार्थिव शरीर को सम्मान पूर्वक विदाई देने और उसकी आत्मा की शांति के लिए किए जाने वाले महत्वपूर्ण संस्कारों में से एक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि अंतिम संस्कार से पहले कुछ ऐसे काम होते हैं जो मृतक के शरीर के साथ किए जाते हैं और मान्यता है कि इससे उनकी आत्मा की शुद्धि हो सकती है। ऐसे ही एक प्रथा है मृत व्यक्ति के अंतिम संस्कार से पहले उसे नए वस्त्र पहनाने की। आपने अक्सर देखा होगा कि अंतिम संस्कार से पहले मृतक के शरीर को नए वस्त्र पहनाए जाते हैं।
आपमें से कई लोगों के मन में यह ख्याल भी जरूर आया होगा कि आखिर ऐसा क्यों किया जाता है? यह मात्र एक सामाजिक रीति है या इसके पीछे कोई गहरा आध्यात्मिक या दार्शनिक कारण भी छिपा हुआ है? आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें इसके बारे में कि ऐसा क्यों कहा जाता है कि अंतिम संस्कार से पहले नए वस्त्र पहनाने चाहिए।
हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार का महत्व
अगर हम शास्त्रों की बात करें तो अंतिम संस्कार केवल एक शारीरिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह एक भावनात्मक और आध्यात्मिक यात्रा भी है। यह शोक संतप्त परिवार को अपने प्रियजन को अंतिम विदाई देने का एक अवसर होता है और साथ ही मृतक की आत्मा को परलोक की यात्रा के लिए तैयार करता है।
हिंदू धर्म में यह माना जाता है कि मृत्यु के बाद आत्मा एक नए जीवन की ओर प्रस्थान करती है और अंतिम संस्कार इस यात्रा को सुगम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विभिन्न धार्मिक ग्रंथों और स्थानीय परंपराओं में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में भिन्नता पाई जाती है, लेकिन कुछ मूलभूत प्रथाएं लगभग सभी में समान होती हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण रीति है मृतक को अंतिम संस्कार से पहले नए वस्त्र पहनाना।
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मृतक को अंतिम संस्कार से पहले नए वस्त्र पहनाने की प्रथा
अंतिम संस्कार से पहले मृतक को नए और स्वच्छ वस्त्र पहनाने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। यह प्रथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रूपों में प्रचलित है, लेकिन इसका मूल भाव लगभग एक ही है। जहां कुछ स्थानों पर पुरुषों को धोती-कुर्ता या अन्य पारंपरिक परिधान पहनाए जाते हैं, वहीं महिलाओं को नई साड़ी या अन्य पारंपरिक वस्त्र पहनाए जाते हैं। कई बार मृतक की पसंद के वस्त्रों को भी प्राथमिकता दी जाती है। इस प्रथा के पीछे कई मान्यताएं और कारण जुड़े हुए हैं, जिनमें से कुछ सामाजिक, कुछ धार्मिक और कुछ मनोवैज्ञानिक हैं। आइए यहां जानें इन कारणों के बारे में-
मृतक को नए वस्त्र पहनाने के सामाजिक कारण
अंतिम संस्कार से पूर्व मृतक को नए वस्त्र पहनाना उनके प्रति सम्मान और श्रद्धा को व्यक्त करने का एक तरीका माना जाता है। यह इस बात को दिखाता है कि परिवार और समाज उन्हें कितना महत्व देता है और उनकी विदाई को गरिमामय बनाना चाहता है। यह वास्तव में मृत व्यक्ति के लिए श्रद्धा को दिखाता है। इससे यह पता चलता है कि मृतक के पूर्वज उन्हें कितना सम्मान देते हैं और उनकी मृत्यु के बाद वो उनकी कमी को जीवन में महसूस कर रहे हैं।
मृतक को नए वस्त्र पहनाना अंतिम विदाई की तैयारी
मृत व्यक्ति को नए वस्त्र पहनाने की प्रक्रिया एक तरह से मृतक को उनकी अंतिम यात्रा के लिए तैयार करने का प्रतीक माना जाता है। जिस प्रकार हम किसी महत्वपूर्ण अवसर के लिए नए वस्त्र धारण करते हैं, उसी प्रकार मृत्यु के बाद की यात्रा के लिए भी उन्हें नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि मृत्योपरांत मृत व्यक्ति एक नई यात्रा पर जाने के लिए अग्रसर होता है, इसलिए उन्हें नए वस्त्रों में तैयार करके ही अंतिम विदाई दी जाती है।
वहीं कुछ संस्कृतियों में सफेद रंग को शोक और पवित्रता का प्रतीक भी माना जाता है। इसलिए, मृत व्यक्ति को सफेद वस्त्र पहनाए जाते हैं, जो उनकी आत्मा की शांति और पवित्रता की कामना को दर्शाता है।
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मृतक को अंतिम संस्कार से पहले नए वस्त्र पहनाने के धार्मिक कारण
अगर हम धार्मिक कारणों से अंतिम संस्कार से पहले मृतक को नए वस्त्र पहनाने की बात करते हैं तो गरुड़ पुराण में भी इस बात का जिक्र मिलता है। दरअसल हिंदू धर्म में गरुड़ पुराण का विशेष महत्व है। यह ग्रंथ मृत्यु, मृत्यु के बाद की आत्मा की यात्रा और अंतिम संस्कार से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डालता है। गरुड़ पुराण की मानें तो किसी भी व्यक्ति की आत्मा मृत्यु के बाद तुरंत शरीर को त्याग देती है और एक नई यात्रा पर निकल जाती है।
इस यात्रा के दौरान, आत्मा को विभिन्न लोकों से गुजरना पड़ता है। नए वस्त्र पहनाने की प्रथा को इस यात्रा के लिए आत्मा को तैयार करने के रूप में देखा जाता है। नए और स्वच्छ वस्त्र पहनाने से मृतक की आत्मा शुद्ध होती है और उसे परलोक में शांति मिलती है। यह माना जाता है कि मृत्यु के समय शरीर अशुद्ध हो जाता है और नए वस्त्र पहनाने से इस अशुद्धि को दूर किया जा सकता है।
मृतक को दिया जाता है देवताओं के समान सम्मान
ऐसा माना जाता है कि जब कोई व्यक्ति मृत हो जाता है तब वह पृथ्वी लोक से एकदम विपरीत हो जाता है। ऐसे व्यक्ति को देव तुल्य माना जाता है और जब उन्हें नए वस्त्र पहनाए जाते हैं तब यह उन्हें सम्मान देने का एक तरीका माना जाता है। जिस प्रकार हम किसी देवता के पूजन के समय उन्हें स्नान कराते हैं और उन्हें नए वस्त्रों से सुसज्जित करते हैं, वैसे ही दर्शन के लिए स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं, उसी प्रकार परलोक में प्रवेश करने से पहले मृतक को नए वस्त्र पहनाए जाते हैं।
नए वस्त्र मृतक के अच्छे कर्मों का प्रतीक भी माने जाते हैं। यह दर्शाता है कि मृतक ने अपने जीवन में अच्छे कर्म किए हैं और अब वह एक बेहतर लोक की ओर प्रस्थान कर रहा है।
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