सनातन धर्म में नवरात्रि का पर्व प्रमुख त्योहार में से एक है। इस दौरान मां दुर्गा की पूजा विशेष रूप से करने का विधान है। मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा अलग-अलग तिथि के अनुसार की जाती है। हर देवी की कथा और उनकी पूजा विधि भी भिन्न है। ऐसी मान्यता है कि अगर किसी जातक के जीवन में किसी तरह की कोई परेशानी आ रही है, तो उसे नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की पूजा विशेष रूप से करनी चाहिए। अब ऐसे में मां दुर्गा की आंखें सप्तमी के दिन ही क्यों खोली जाती है। इसके बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
सप्तमी के दिन क्यों खुलती है मां दुर्गा की आंखें?
सप्तमी के दिन मां दुर्गा की आंखें खुलना उनके जागरण का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन से ही देवी दुर्गा पूरी तरह जागृत हो जाती हैं और अपने भक्तों की रक्षा के लिए तैयार हो जाती हैं। मां दुर्गा की आंखें खुलना उनकी असीम शक्ति का प्रदर्शन भी माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन से ही देवी दुर्गा बुराई का नाश करने के लिए पूरी तरह तैयार हो जाती हैं।
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बंगाल में है विशेष मान्यता
बंगाल में विशेष रूप से मां दुर्गा की आंखें सप्तमी के दिन मान्यता है। कहते हैं कि बंगाल में सप्तमी के दिन से मां दुर्गा की पूजा और विधिवत अनुष्ठान आरंभ होती है और उनकी प्राण-प्रतिष्ठा भी सप्तमी के दिन से ही आरंभ होती है। इसलिए माता रानी की आंखें सप्तमी के दिन खोली जाती है और सिंदूर खेला होने का बाद माता रानी की विदाई की जाती है।
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नवरात्रि सप्तमी तिथि की क्या है मान्यता?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि मां दुर्गा ने सप्तमी तिथि के दिन ही महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। इसीलिए इस दिन उनकी आंखें खोली जाती हैं और पूरे विधि-विधान के साथ माता रानी की प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है। साथ ही पूरे विधिवत रूप से माता रानी की पूजा की जाती है। सप्तमी के दिन मां दुर्गा की आंखें खुलने से भक्तों पर विशेष आशीर्वाद बरसता है। जो भी भक्त इस दिन मां दुर्गा की पूजा करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। सप्तमी के दिन कुमारी पूजा का भी विशेष महत्व होता है। कुमारी को देवी दुर्गा का अवतार माना जाता है और उनकी पूजा करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं।
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Image Credit- HerZindagi
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