भगवान शिव के भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए कई तरह से पूजन और प्रार्थना करते हैं। आज से ही नहीं युगों-युगों से भगवान शिव के भक्त उनकी उपासना और पूजन के लिए कई तरह के स्तोत्र और स्तुति की रचना किए हैं। भगवान शिव को समर्पित ग्रंथों में कई तरह के स्तोत्र की रचनाओं का उल्लेख वर्णित है। इन सभी रचनाओं में भगवान शिव को शिव तांडव स्तोत्र की रचना सबसे अधीक प्रिय है। यह स्तोत्र भगवान शिव के प्रिय रावण के द्वारा रचित है। इस स्तोत्र की जो कोई भी सच्चे मन से पाठ करता है, भगवान उसकी सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं। यह तो हम सभी जानते हैं कि रावण ने शिव तांडव स्तोत्र की रचना की है, लेकिन क्या आपको पता है कि इस स्तोत्र की रचना कब और कैसे हुई थी? यदि नहीं तो चलिए जानते हैं इस लेख में।
कैसे हुई शिव तांडव स्तोत्र की रचना?
ऋषि विश्रवा के की दो पत्नियां थी जिससे उनके दो संताने थीं। एक संतान कुबेर थे और दूसरे दसानन। ऋषि विश्रवा ने लंका का सारा राजपाट कुबेर को दे दिया था, लेकिन कुबेर लंका छोड़कर हिमाचल में तप करने चले गए। कुबेर के बाद लंका का राजपाट रावण को मिल गया और राजपाट मिलने के बाद दशानन में अहंकार पैदा हो गया। अहंकार के कारण वह साधु संतों पर अत्याचार करने लगा। इसकी खबर कुबेर को मिली, जिसके बाद कुबेर अपने भाई को समझाने की कोशिश की। दशानन कुबेर से नाराज होकर उसकी नगरी अलकापुरी में आक्रमण कर दी (रावण से जुड़े फैक्ट)।
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युद्ध में कुबेर को हरा कर रावण पुष्पक विमान को छीनकर लंका की ओर ले जाने लगा। बीच रास्ते में कैलाश पर्वत आ जाता है, जहां पुष्पक विमान रूक जाता है और आगे नहीं बढ़ पाता। विमान को आगे बढ़ाने के लिए रावण कैलाश पर्वत को अपने पथ से हटाने का प्रयास करते हैं, जिससे पर्वत हिलने लगता है। सभी शिवगण रावण के पास आते हैं और उन्हें ऐसा करने से रोकते है, लेकिन अहंकारवश रावण नंदी का अपमान कर फिर से कैलाश पर्वत को अपने रास्ते से हटाने लगते हैं। भगवान शिव रावण की सारी हरकतों को देख रहे होते हैं और उसके घमंड को तोड़ने के लिए अपने अंगूठे से पर्वत पर हल्का स्पर्श करते हैं। भगवान के स्पर्श के बाद पर्वत चिपक जाता है और रावण का हाथ बुरी तरह से घायल हो जाता है। अत्यधिक दर्द के कारण दशानन चीत्कारने लगता है, उसकी चीत्कार इतनी तेज थी, जिसे सुन ऐसा लग रहा था कि प्रलय आ जाएगी।
इसी दर्द और चीत्कार के साथ दशानन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनकी स्तुति करनी शुरू कर दी। दशानन सामवेद में उल्लेखित भगवान शिव के सभी स्तोत्रों का गान करना शुरू कर देते हैं। दशानन के स्तुती से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और पर्वत के नीचे दबे हुए हाथ को मुक्त करते हैं। भयंकर दर्द में गाया हुआ यह स्तोत्र सामवेद का स्तोत्र है, जिसे रावण स्तोत्र या शिव तांडव स्तोत्र के नाम से जाना जाता है।
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