कितने प्रकार के होते हैं मोक्ष? जानें किस को पाने के लिए नहीं पड़ता मरना

मोक्ष के बारे में लोग यही जानते हैं कि इसकी प्राप्ति से जीवन चक्र से छुटकारा मिल जाता है और मोक्ष मृतु के बाद ही मिलता है, लेकिन आपको बता दें कि मोक्ष जीवित रहते हुए भी मिल सकता है। 
how many types of salvation are there

मोक्ष को लेकर हिन्दू धर्म में बहुत कुछ विस्तार से बताया गया है। हालांकि मोक्ष के बारे में लोग यही जानते हैं कि इसकी प्राप्ति से जीवन चक्र से छुटकारा मिल जाता है और मोक्ष मृतु के बाद ही मिलता है, लेकिन आपको बता दें कि मोक्ष जीवित रहते हुए भी मिल सकता है। ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि मोक्ष कितने प्रकार के होते हैं और किस मोक्ष का क्या महत्व है एवं कौन से लाभ मिलते हैं।

मोक्ष कितने प्रकार के होते हैं? (Kitne Prakar Ke Hote Hain Moksha?)

भगवद गीता के अनुसार, मोक्ष चार प्रकार के होते हैं- सैलोक्य मोक्ष, सारूप्य मोक्ष, सायुज्य मोक्ष और कैवल्य मोक्ष। इन चारों मोक्षों का अपना एक महत्व और व्यक्ति को इन मोक्षों में से किसी एक भी प्राप्ति हो जाए तो उसका जीवन सफल हो जाता है।

kab milta hai moksh

सैलोक्य मोक्ष: सैलोक्य मोक्ष का अर्थ है, आत्मा का भगवान के साथ एक स्थान एक लोक में निवास करना। इस मोक्ष की अवस्था में आत्मा भगवान के साथ एकाकार होती है और भगवान के साथ उनका एक स्थायी संबंध बन जाता है। आत्मा को भगवान के साथ सदैव रहने का सुख मिलता है।

यह भी पढ़ें:Ladkiyon ke Naam inspired from Bhagwat Geeta: श्रीमद्भागवत गीता के श्लोक पर रखें अपनी लाडली का नाम, सितारे जैसा चमकेगा आपकी बेटी का भाग्य

सारूप्य मोक्ष: सारूप्य मोक्ष का मतलब है कि आत्मा का रूप भगवान के समान हो जाता है। इसमें आत्मा भगवान के रूप को धारण करती है, अर्थात वह भगवान के स्वरूप में विलीन हो जाती है। यह मोक्ष तब प्राप्त होता है जब आत्मा भगवान के रूप और गुणों में समाहित हो जाती है।

kaise milta hai moksh

सायुज्य मोक्ष: सायुज्य मोक्ष का अर्थ है आत्मा का पूरी तरह से भगवान में विलीन होना। इस मोक्ष की स्थिति में आत्मा और भगवान का अंतर मिट जाता है और दोनों एक ही तत्व के रूप में अभिन्न हो जाते हैं। यह मोक्ष आत्मा को पूर्ण रूप से भगवान के साथ एकाकार होने का अवसर प्रदान करता है।

यह भी पढ़ें:घर की तिजोरी में भगवद गीता रखने से क्या होता है?

कैवल्य मोक्ष: कैवल्य मोक्ष का अर्थ है आत्मा का भगवान के निकट रहना, लेकिन भगवान के साथ एक स्थान पर नहीं रहना, बल्कि उनके समीप रहना। इसका मतलब है कि आत्मा भगवान के पास होती है, लेकिन वह उनके साथ एकाकार नहीं होती, बल्कि उनके निकटस्थ रहती है।

kya hai moksh ka mahatva

अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं और अपना फीडबैक भी शेयर कर सकते हैं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।

image credit: herzindagi

HzLogo

HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!

GET APP