सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है। इस दिन पुरूष और महिलाएं सोमवार का व्रत रखते हैं और व्रत कथा सुनते और पढ़ते हैं। ऐसा करने से भगवान शिव की असीम कृपा के साथ भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। यह व्रत खासकर उन लोगों के लिए बहुत शुभ माना जाता है जो सुख-समृद्धि, अच्छी सेहत और मनचाहा जीवनसाथी चाहते हैं।
इस व्रत को रखने से जीवन में आने वाली बाधाएं और घर में सकारात्मक ऊर्जा के साथ खुशहाली आती है। सोमवार व्रत कथा में भगवान शिव की महिमा और उनके भक्तों पर होने वाली कृपा का वर्णन होता है। यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची श्रद्धा और भक्ति से ही भगवान को प्रसन्न किया जा सकता है। सोमवार व्रत कथा सिर्फ एक कहानी नहीं है, बल्कि यह आस्था और विश्वास का प्रतीक है, जो हमें भगवान शिव से जोड़ता है। सोमवार के व्रत में भक्त सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं।
इसके बाद शिव मंदिर जाकर या घर पर ही शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा, भांग, चंदन और फूल चढ़ाकर भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं। ऐसे में अगर आप सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा और व्रत करते हैं, तो कथा का पाठ कर अपना उपवास पूरा करें। चलिए ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से जानते हैं सोमवार व्रत कथा के बारे में।
सोमवार व्रत कथा (Somvar Vrat Katha)
पुराने समय की बात एक गांव में एक नामी साहूकार रहता था। साहूकार के पास खूब धन-दौलत थी लेकिन, उसकी कोई संतान नहीं थी। संतान नहीं होने की वजह से वह हमेशा वंश आगे नहीं बढ़ पाने के दुख में चिंतित रहता था। लेकिन, साहूकार भगवान शिव का भक्त था और उनकी पूजा के साथ सोमवार के दिन व्रत भी करता था।
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भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करता और शिवलिंग पर जाकर दीपक भी जलाता था। साहूकार की इस भक्ति से माता पार्वती प्रसन्न हुईं और उन्होंने भोलेनाथ से कहा, हे प्रभु यह साहूकार आपका भक्त है और हर सोमवार विधि विधान से पूजा करता है। मुझे ऐसा लगता है कि आपको इसकी प्रार्थना और मनोकामना सुन लेनी चाहिए। माता पार्वती की बात सुनकर भगवान शिव ने कहा कि हे गौरी, यह संसार एक कर्मों का क्षेत्र है। जैसे एक किसान खेत में बीज बोता है और कुछ वक्त बाद उसे पेड़ मिलता है। उसी तरह इंसान भी अपने कर्मों का फल पाता है।
माता पार्वती ने एक बार फिर भगवान शिव से आग्रह किया और साहूकार की प्रार्थना पूरी करने के लिए कहा। माता पार्वती की बात सुनकर भगवान शिव ने साहूकार को पुत्र का वरदान तो दिया। साथ ही बताया कि वह वरदान तो देते हैं, लेकिन साहूकार का पुत्र 12 साल ही जीवित रह पाएगा और इसमें वह कुछ नहीं कर सकते हैं।
वरदान के बाद भगवान शिव ने एक दिन साहूकार को सपने में दर्शन दिए और कहा कि जल्दी ही उसे पुत्र की प्राप्ति होगी। लेकिन, पुत्र 12 साल से ज्यादा जीवित नहीं रह पाएगा। इस सपने के बाद साहूकार खुश तो हुआ लेकिन उसे दुख भी बहुत ज्यादा हुआ।
देखते-देखते साहूकार की पत्नी के पुत्र हुआ। सब बहुत खुश थे लेकिन, साहूकार दुखी था कि पुत्र सिर्फ 12 साल ही जी पाएगा। समय बीता और साहूकार का पुत्र 11 साल का हो गया। पत्नी ने साहूकार से पुत्र के विवाह की बात छेड़ी लेकिन, साहूकार ने मना कर दिया। साथ ही बालक को शिक्षा के लिए मामा के साथ काशी भेज दिया। साहूकार ने बालक और उसके मामा से कहा कि काशी जाने के रास्ते में यज्ञ और ब्राह्मणों को भोजन कराने के लिए कहा।
मामा-भांजा काशी के रास्ते निकल पड़े। रास्ते में एक नगर आया, जहां एक कन्या का विवाह हो रहा था। लेकिन, जिस राजकुमार से कन्या का विवाह हो रहा था, उसकी एक आंख कानी थी। राजकुमार का पिता यह बात कन्या और उसके परिवार से छिपाना चाहता था, इसलिए उसने एक चाल सोची।
राजकुमार के पिता ने साहूकार के बालक को देखकर सोचा कि तोरण की रस्म के समय इसे बैठा दूंगा और किसी को पता भी नहीं चलेगा। साहूकार का पुत्र इस बात के लिए मान गया और उसने दूल्हे के कपड़े पहन रस्म को पूरा कर लिया। तोरण की रस्म के बाद फेरों का समय आया तो दूल्हे के पिता ने साहूकार के बेटे से दुल्हन संग फेरे लेने के लिए भी कहा, जिससे विवाह में किसी तरह की परेशानी न आए। राजकुमार के पिता की बात पर मामा-भांजा एक बार फिर मान गए। विवाह हो गया, इसके बाद मामा-भांजा काशी के लिए निकल गए।
लेकिन, साहूकार के पुत्र ने जाने से पहले दुल्हन के कपड़ों पर लिख दिया कि मुझसे तुम्हारी शादी हुई है और जिसके साथ जाओगी वह एक आंख वाला आदमी है और मैं काशी शिक्षा लेने जा रहा हूं।
राजकुमारी को जब यह बात पता चली तो उसने राजकुमार के साथ जाने के लिए मना कर दिया और अपने पिता से कहा यह मेरा पति नहीं है, मेरे पति शिक्षा लेने के लिए काशी गए हैं। जैसे ही यह बात चारों तरफ फैली तो दुल्हे के पिता ने सारी बात बता दी। इसके बाद दुल्हन के पिता ने बेटी को विदा करने से मना कर दिया।
वहीं मामा-भांजा काशी पहुंच गए। बालक ने शिक्षा लेनी शुरू कर दी और मामा ने यज्ञ आदि करना शुरू कर दिया। समय बीत गया और बालक 12 साल का हो गया। एक दिन उसने अपने मामा से कहा कि उसकी तबीयत ठीक नहीं है और वह सोने जा रहा है। इसके बाद साहूकार के बेटे की मृत्यु हो गई।
मामा को जब यह बात पता लगी तो वह जोर-जोर से रोने लगे। तब उस समय माता पार्वती और भोलेनाथ वहां से गुजर रहे थे, उन्होंने रोने की आवाज सुनी तो रुक गए। माता पार्वती और भगवान शिव, रोते हुए मामा के पास पहुंचे और रोने की वजह पूछी। मामा ने सारा हाल कह सुनाया, माता पार्वती और भगवान शिव मृत बालक देख हैरान हो गए। माता पार्वती ने भगवान से कहा यह तो वही साहूकार का पुत्र है, जिसे 12 साल ही जीवित रहने का वरदान था।
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माता पार्वती को एक बार फिर बालक पर दया आई और उन्होंने भगवान शिव से जीवन दान देने के लिए कहा। माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने बात मानी और बालक को एक बार फिर जीवनदान दे दिया।
साहूकार का पुत्र जीवित हो गया, इसके बाद मामा-भांजा एक बार फिर घर लौट गए। रास्ते में मामा-भांजा उसी शहर से गुजरे जहां विवाह हुआ था। दुल्हन के पिता ने बालक को पहचान लिया और अपने साथ महल आने के लिए कहा। इसके बाद उन्होंने समारोह का आयोजन किया। फिर अपनी बेटी को साहूकार के पुत्र के साथ विदा कर दिया।
वहीं साहूकार और उसकी पत्नी इस इंतजार में थे, कि अगर उनका पुत्र नहीं लौटा तो वह अपनी जान दे देंगे। लेकिन, पुत्र और पुत्रवधु को देख उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। इसके बाद पूरा परिवार खुशी-खुशी रहने लगा।
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