हिंदू धर्म में भगवान जगन्नाथ का एक विशिष्ट और पूजनीय स्थान है। उन्हें भगवान विष्णु का एक रूप माना जाता है, और उनकी पूजा मुख्य रूप से भारत के ओडिशा राज्य के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में की जाती है। यह मंदिर चार धामों में से एक है, जो हिंदू धर्म के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में गिने जाते हैं। आपको बता दें, हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल द्वितीया को यह यात्रा निकाली जाती है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को तीन विशाल और भव्य रथों पर विराजमान कर पुरी की सड़कों पर खींचा जाता है। अब ऐसे में क्या आप जानते हैं कि भगवान जगन्नाथ के साथ-साथ मां विमला की पूजा-अर्चना करने का भी विधान है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
भगवान जगन्नाथ के साथ मां विमला देवी का पूजा का विधान
भगवान जगन्नाथ, भगवान विष्णु के ही एक रूप हैं और उन्हें ब्रह्मांड का स्वामी माना जाता है. उनकी अनोखी प्रतिमा, जिसमें उनके बड़े-बड़े गोल नेत्र और बिना हाथ-पैरों वाला शरीर है, भक्तों को आकर्षित करती है। आपको बता दें, पुरी के जगन्नाथ मंदिर में ही मां विमला देवी का मंदिर स्थित है। वे 51 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। मां विमला देवी को शक्ति का परम स्रोत माना जाता है। उनकी पूजा से भक्तों को आंतरिक शक्ति, साहस और आत्मविश्वास प्राप्त होता है। इतना ही नहीं, मां विमला देवी का मंदिर तांत्रिक पूजा का एक महत्वपूर्ण के लिए सबसे मुख्य माना गया है। तांत्रिक साधना करने वाले साधक यहां विशेष पूजा-अर्चना करते हैं ताकि अलौकिक शक्तियों को प्राप्त कर सकें। ऐसी मान्यता है कि मां विमला देवी भगवान जगन्नाथ की शक्ति स्वरूपा हैं। उनकी पूजा के बिना भगवान जगन्नाथ की पूजा अधूरी मानी जाती है। भगवान जगन्नाथ को भोग लगाने के बाद, वही भोग पहले मां विमला देवी को अर्पित किया जाता है, उसके बाद ही उसे महाप्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित किया जाता है।
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मां विमला की पूजा के बिना क्यों अधूरी है भगवान जगन्नाथ की पूजा
मां विमला देवी को पुरी धाम की संरक्षिका भी माना जाता है। यह माना जाता है कि वह पूरे पुरी क्षेत्र और यहां आने वाले भक्तों की रक्षा करती हैं। उनकी उपस्थिति के बिना जगन्नाथ पुरी धाम की कल्पना भी अधूरी है। यही कारण है कि रथ यात्रा से पहले और बाद में भी मां विमला की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
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