सावन की विनायक चतुर्थी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह तिथि विघ्नहर्ता भगवान गणेश को समर्पित है। इस दिन व्रत रखने और भगवान गणेश की पूजा करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है, सभी कष्ट दूर होते हैं, बल और बुद्धि मिलती है और कोई भी काम बिना बाधा के पूरा होता है। यह नए कार्यों की शुरुआत के लिए भी बहुत शुभ दिन माना जाता है। साल 2025 में सावन की विनायक चतुर्थी 28 जुलाई, सोमवार को पड़ेगी। ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि जहां एक ओर सावन की विनायक चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश की पूजा से उनकी असीम कृपा पाई जा सकती है तो वहीं, दूसरी ओर इस पर्व से जुड़ी व्रत कथा सुनने से जीवन के कष्टों का अंत होता है। ऐसे में आइये जानते हैं सावन विनायक चतुर्थी की व्रत कथा के बारे में विस्तार से।
सावन विनायक चतुर्थी की व्रत कथा
एक समय की बात है, भगवान शिव और माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे चौपड़ खेल रहे थे। खेल में यह तय करना था कि कौन हारा और कौन जीता। इस पर भगवान शिव ने पास ही पड़े तिनकों से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाल दिए। उन्होंने उस बालक से कहा कि तुम हमारे चौपड़ के खेल में हार-जीत का फैसला करना।
चौपड़ का खेल तीन बार खेला गया और तीनों बार माता पार्वती जीत गईं। लेकिन जब बालक से हार-जीत का फैसला करने को कहा गया, तो उसने माता पार्वती की बजाय भगवान शिव को विजयी बताया। यह सुनकर माता पार्वती बहुत क्रोधित हुईं और उन्होंने बालक को श्राप दे दिया कि वह लंगड़ा हो जाएगा और कीचड़ में पड़ा रहेगा।
बालक ने माता पार्वती से क्षमा याचना की और कहा कि यह उससे गलती से हो गया। तब माता पार्वती ने कहा कि दिया हुआ श्राप तो वापस नहीं हो सकता, लेकिन उन्होंने बालक को मुक्ति का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि एक वर्ष बाद इस स्थान पर नाग कन्याएं आएंगी। उनके कहने पर तुम गणेश चतुर्थी का व्रत करना। ऐसा करने से तुम्हें श्राप से मुक्ति मिलेगी।
एक वर्ष बाद जब नागकन्याएं उस स्थान पर आईं तो बालक ने उनसे गणेश चतुर्थी के व्रत की विधि पूछी। बालक ने पूरी श्रद्धा और नियम से 21 दिन तक भगवान गणेश का व्रत किया। भगवान गणेश बालक की भक्ति से प्रसन्न हुए और प्रकट होकर उससे वरदान मांगने को कहा। बालक ने प्रार्थना की कि हे विनायक, मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं अपने पैरों पर चलकर कैलाश पर्वत तक जा सकूं और इस श्राप से मुक्त हो जाऊं। भगवान गणेश ने बालक को आशीर्वाद दिया और अंतर्ध्यान हो गए।
इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंचा और उसने अपनी कथा भगवान शिव को सुनाई। चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती भगवान शिव से रूठी हुई थीं। बालक के बताए अनुसार, भगवान शिव ने भी 21 दिनों तक भगवान गणेश का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती की नाराजगी दूर हो गई और वे स्वयं भगवान शिव से मिलने कैलाश पर आ गईं।
भगवान शिव ने माता पार्वती को बालक और अपने व्रत की पूरी कथा सुनाई। यह सुनकर माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई। तब माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्री गणेश का व्रत किया और दूर्वा, फूल तथा लड्डूओं से गणेश जी का पूजन किया। व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वती से मिलने आ गए।
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इस प्रकार, यह व्रत तीनों लोकों में प्रसिद्ध हो गया और माना जाता है कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से यह व्रत करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और विघ्न दूर होते हैं।
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