फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को फुलेरा दूज मनाई जताई है। इस दिन श्री राधा कृष्ण को फूलों से सजाया जाता है और उन्हें फूलों के ढेर में बैठाकर उनकी पूजा की जाती है। इस साल फुलेरा दूज 1 मार्च, इन शनिवार को पड़ रही है। ऐसे में फुलेरा दूज के दिन जहां एक ओर श्री राधा कृष्ण की आराधना करना उत्तम माना जाता है तो वहीं, इस दिन व्रत कथा सुनने या पढ़ने से श्री राधा कृष्ण की असीम कृपा प्राप्त होती है। तो चलिए जानते हैं ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से फुलेरा दूज की व्रत कथा।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी लंबे समय तक नहीं मिले थे। इससे राधा जी बहुत उदास हो गईं। उनका उदास होना देखकर वृंदावन के सारे फूल मुरझा गए, पेड़ सूखने लगे और डालियां भी टूटने लगीं।
पक्षियों ने चहचहाना बंद कर दिया और नदी की धारा भी रुक सी गई। पूरे वृंदावन में उदासी छा गई थी। ऐसा सब इसलिए हो रहा था क्योंकि राधा रानी को भगवान श्री कृष्ण से मिलन नहीं हो रहा था। इस स्थिति को देखकर सभी गोपियां भी बहुत उदास हो गईं।
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राधा जी बस भगवान श्री कृष्ण के मिलने की उम्मीद लगाए बैठी रहती थीं। वह न कुछ खाती थीं, न कुछ पीती थीं। जब भगवान श्री कृष्ण ने वृंदावन की यह उदासी देखी, तो उन्हें समझ में आया कि यह सब राधा रानी के कारण हो रहा है।
राधा जी भगवान श्री कृष्ण को पुकार रही हैं और उदास हैं, इसलिए वृंदावन में सब कुछ मुरझा गया है। यह स्थिति देख भगवान श्री कृष्ण तुरंत वृंदावन आएं, ताकि राधा से मिल सकें। जैसे ही राधा जी को कान्हा के आने की खबर मिली, उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई।
उसी समय, सभी पेड़-पौधे और फूल फिर से खिलने लगे, पक्षी चहचहाने लगे, और पेड़ हरे-भरे हो गए। सभी गोपियां भी खुशी से झूमने लगीं। जब भगवान श्री कृष्ण राधा रानी से मिले, तो राधा जी बहुत खुश हुईं।
कान्हा ने फूल तोड़े और उन्हें राधा जी पर फेंक दिया। यह देखकर राधा जी भी कान्हा पर फूल फेंकने लगीं। फिर सभी ग्वाल और गोपियां भी एक-दूसरे पर फूल फेंकने लगे और इस तरह वृंदावन में फूलों की होली खेली गई।
यह दिन फुलेरा दूज का था। तभी से फुलेरा दूज के दिन फूलों की होली खेलने की परंपरा शुरू हुई। हर साल मथुरा और वृंदावन में इस दिन फूलों की होली खेली जाती है। इस दिन मंदिरों को सजाया जाता है और राधा कृष्ण के साथ फूलों की होली खेली जाती है।
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