महाभारत को अक्सर धर्म और अधर्म के बीच हुए युद्ध के रूप में देखा जाता है। हालांकि, इस महायुद्ध के पीछे कई कारण थे। अगर मूल कारण की बात करें तो वह हमेशा से ही दुर्योधन का पांडवों को राज्य में हिस्सा न देना रहा। दुर्योधन अपनी महत्वाकांक्षा के कारण पांडवों को उनका हक नहीं देना चाहता था, जिसने इस विशाल युद्ध का बीज बोया। यह माना जाता है कि महाभारत के युद्ध में लगभग एक लाख से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी। कई दिनों तक चली इस भीषण लड़ाई में हजारों लोगों की मौत हुई और लाखों लोगों का जीवन तबाह हो गया। जब शांति की कोई उम्मीद नहीं रही तो पांडवों की ओर से श्री कृष्ण को शांतिदूत बनाकर हस्तिनापुर भेजा गया। हस्तिनापुर में श्री कृष्ण ने कौरवों से पांडवों को केवल पांच गांव देने का प्रस्ताव रखा। यह प्रस्ताव बहुत ही नम्र था और पांडवों की सबसे कम मांग थी। इस प्रस्ताव के माध्यम से श्री कृष्ण युद्ध को रोकने की पूरी कोशिश कर रहे थे, लेकिन दुर्योधन अपनी अहंकार के कारण इस प्रस्ताव को मानने को तैयार नहीं था। आइए इस लेख में जानते हैं कि वह 5 गांव कौन से थे। जो भगवान श्रीकृषण ने दुर्योधन से मांगे थे।
पांच गांव मांगने को लेकर दुर्योधन ने भगवान श्रीकृष्ण से क्या कहा?
जब श्रीकृष्ण शांतिदूत बनकर हस्तिनापुर पहुंचे, तब उन्होंने कौरवों से पांडवों को केवल पांच गांव देने का विनम्र निवेदन किया था। तब धृतराष्ट्र ने श्रीकृष्ण की इस बात को गंभीरता से लिया और दुर्योधन को युद्ध टालने के लिए समझाया। उन्होंने कहा कि पांच गांव देकर हम इस युद्ध को टाल सकते हैं। परंतु दुर्योधन का अहंकार इतना बढ़ चुका था कि उसने श्रीकृष्ण की बात को नज़रअंदाज कर दिया। वह गुस्से से चिल्लाया, "मैं पांडवों को पांच गांव तो क्या, सुई की नोक जितनी जमीन भी नहीं दूंगा! अब सिर्फ युद्ध ही इस विवाद का हल निकालेगा।
महाभारत में वर्णित कौन थे वे पांच गांव
इंद्रप्रस्थ - श्री कृष्ण ने जब दुर्योधन से पांच गांव मांगे थे, तो पहला गांव था इंद्रप्रस्थ। यह वही जगह है जिसे आज हम दिल्ली के नाम से जानते हैं। इंद्रप्रस्थ को श्रीपत भी कहा जाता था। पांडवों ने इस जगह को अपनी राजधानी बनाया था। खांडवप्रस्थ जैसी बंजर भूमि पर पांडवों ने इंद्रप्रस्थ नाम का एक खूबसूरत शहर बसाया था। मयासुर नामक दानव ने श्री कृष्ण के कहने पर यहां महल और किले का निर्माण करवाया था। आज भी इस जगह पर एक पुराना किला है, जिसके बारे में माना जाता है कि यहीं पांडवों का इंद्रप्रस्थ था।
बागपत - बागपत को महाभारत काल में व्याघ्रप्रस्थ कहते थे। व्याघ्रप्रस्थ का मतलब बाघों के रहने की जगह। यहां सैकड़ों साल पहले कई बाघ पाए जाते थे। आपको बता दें, बागपत में ही कौरवों ने लाक्षागृह बनाकर उसमें पांडवों को जलाने की रचना रची थी।
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पानीपत- पानीपत, जिसे पांडुप्रस्थ के नाम से भी जाना जाता है। यह शहर बुनकरों के लिए प्रसिद्ध है और इसे 'सिटी ऑफ वीवर्स' भी कहा जाता है। भारतीय इतिहास में इसकी अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि यहां तीन बड़ी लड़ाइयां लड़ी गईं। दिलचस्प बात यह है कि पानीपत से लगभग कुछ किलोमीटर दूर कुरुक्षेत्र है, जहां महाभारत का प्रसिद्ध युद्ध हुआ था।
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तिलपत - तिलपत को पहले तिलप्रस्थ भी कहा जाता था। यह हरियाणा के फरीदाबाद में पड़ता है।
सोनीपत - सोनीपत को पहले स्वर्णप्रस्थ के नाम से जाना जाता था, जो कि 'सोने का शहर' के समान है। भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों के लिए यह गांव मांगा था।
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Image Credit- HerZindagi
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