कन्याकुमारी का नाम कैसे पड़ा, बेहद रोचक है कहानी

कन्याकुमारी भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित है। जहां हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर मिलते हैं। अब ऐसे में इसका नाम कन्याकुमारी कैसे पड़ा। इसके बारे में जानते हैं। 

History of the name Kanyakumari

(history of the name kanyakumari) कन्याकुमारी भारत के तमिलनाडु राज्य का एक शहर और जिला है। यह भारत के दक्षिणी सिरे पर स्थित है जहां तीन महासागर बंगाल की खाड़ी, हिंद महासागर और अरब सागर मिलते हैं। कन्याकुमारी अपनी प्राकृतिक सुंदरता, ऐतिहासिक महत्व और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। बता दें कन्याकुमारी तीनों ओर से समुद्र से घिरी है। यह जगह चोल, पांड्य और चेर शासकों के अधीन भी रह चुकी है। अब ऐसे में इस जगह का नाम कन्याकुमारी पड़ने के पीछे कई रोचक बातें सुनने को मिलती है। आइए इस लेख में कन्याकुमारी का नाम कैसे पड़ा। इसकी पौराणिक कथा क्या है। इसके बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।

कन्याकुमारी नाम कैसे पड़ा?

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पौराणिक कथा के अनुसार, बानासुर नाम के एक असुर का वध करने के लिए मां पार्वती ने जन्म लिया था। बानासुरन को ब्रह्मा जी ने ये वरदान दिया था कि उसकी मृत्यु किसी कुवांरी कन्या के द्वारा ही हो सकती है। बानासुरन को अहंकार हो गया था कि कोई भी कुवांरी कन्या तो उसका वध कर ही नहीं सकती है और वहीं किसी को भी आसानी से हरा सकता है। जिसके बाद बानासुर का वध कुंवारी कन्या के द्वारा हुआ। जिसके कारण इस जगह का नाम कन्याकुमारी पड़ा।

कन्याकुमारी के बारे में पढ़ें ये रोचक कहानी

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कन्याकुमारी को मां आदिशक्ति के 51 शक्तिपीठों में एक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि कि ब्रह्म पुत्र राजा दक्ष प्रजापति ने शिव जी को अपमानित करने के उद्देश्य से शत कुंडी यज्ञ का आयोजन किया था। इसमें सती बिना निमंत्रण के पहुंची। उन्होंने जब अपने पति शिव का अपमान होते देखा, तो वह क्रोध में आकर हवनकुंड में अपने प्राणों की आहुति दे दी। सती की मृत्यु के बाद क्रोधित होकर शिव अपनी पत्नी पार्वती का शव लेकर धरती पर घूमने लगे। तब भगवान शिव का क्रोध शांत करने के लिए भगवान विष्णु वहां पहुंचे।

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भगवान विष्णु ने सोचा कि जब तक देवी सती का शरीर शिव के सामने रहेगा। तब तक उनका क्रोध शांत नहीं होगा। इसलिए नारायण ने सुदर्शन चक्र चलाकर माता सती के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। सती का अंग जहां-जहां गिरा, वहां शक्तिपीठ बन गए। ऐसी मान्यता है कि माता सती की रीढ़ और कुंडलिनी कन्याकुमारी में गिरी थी।

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Image Credit- HerZindagi

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