सनातन धर्म की वो 5 घटनाएं जिन्होंने दिखाई भक्ति की शक्ति

हिन्दू धर्म ग्रंथों में वर्णित कुछ ऐसे किससे हैं जो असल में भक्ति की शक्ति को दर्शाते हैं। यह घटनाएं जहां एक ओर रामायण एवं महाभारत काल से संबंधित हैं तो वहीं, दूसरी ओर इनका नाता कलयुग में हुए चमत्कारों से भी है।  
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आपने कहीं न कहीं कभी किसी किताब में या किसी के मुंह से ये वाक्य अवश्य सुना होगा 'भक्ति की शक्ति'। आज हम आपको ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स द्वारा दी गई जानाकरी के आधार पर हिन्दू धर्म ग्रंथों में वर्णित कुछ ऐसे किस्सों के बारे में बताएंगे जो असल में भक्ति की शक्ति को दर्शाते हैं। यह घटनाएं जहां एक ओर रामायण एवं महाभारत काल से संबंधित हैं तो वहीं, दूसरी ओर इनका नाता कलयुग में हुए चमत्कारों से भी है। आइये जानते हैं इस विषय में विस्तार से।

'भक्ति की शक्ति' का सतयुग अध्याय

सतयुग में एक राजा हुआ करते थे जिनका नाम बलि था। राजा बलि राक्षस राज थे। यूं तो असुरों में भगवान शिव की पूजा की जाती है लेकिन राजा बलि इकलौते ऐसे असुर थे जिन्होंने हमेशा से ही भगवान विष्णु की पूजा की। जब राजा बलि ने देवताओं को हराने के लिए अखंड हवन आरंभ किया तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर तीन पग भूमि में सारा ब्रह्मांड नाम कर देवताओं की रक्षा की।

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लेकिन वह जानते थे कि बलि ने कभी भी उनकी पूजा में कोई कमी नहीं छोड़ी इसलिए वामन अवतार में उन्होंने राजा बलि को न सिर्फ पाताल लोक का राजा बनाया बल्कि धन-संपदा से बलि के राज्य को परिपूर्ण कर उनके राज्य की रक्षा के लिए राज्य सीमा पर आज भी सुरक्षा पहरी के रूप में विरामान हैं। भक्ति की शक्ति ही कहेंगे की असुर होने के बाद भी भगवान विष्णु का सानिध्य प्राप्त हुआ।

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'भक्ति की शक्ति' का त्रेतायुग अध्याय

ये हम सभी जानते हैं की त्रेता युग में श्री राम के अवतरण के बाद उनके परम सेवक अगर कोई माने जाते हैं तो वह हनुमान जी हैं, लेकिन हनुमान जी के अलावा भी एक और ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने असुर कुल का होते हुए श्री राम को न सिर्फ पूजा बल्कि रामायण युद्ध में उनके सहायक बनकर धर्म की विजय में शामिल हुए। हम बात कर रहे हैं विभीषण जी की। उनकी भक्ति का एक किस्सा बताते हैं।

तुलसीदास कृत रामचरित मानस में इस घटना का वर्णन मिलता है कि जब माता सीता को रावण लंका लेकर आया था तभी विभीषण जी को इस बात का आभास हो गया था कि भगवान विष्णु के अवतार श्री राम जल्दी ही उन्हें दर्शन देंगे। रामचरितमानस में लिखा है कि रावण द्वारा निकाले जाने से पहले विभीषण जी ने सम्पूर्ण लंका महल की दीवारों पर पूर्ण भक्ति भाव से राम नाम लिख दिया था।

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'भक्ति की शक्ति' का द्वापरयुग अध्याय

सुदामा जी श्री कृष्ण के परम भक्त थे लेकिन उससे पहले बाल्य काल में उनके परम मित्र भी थे। श्री कृष्ण से सुदामा जी ने झूठ बोला था जिसके परिणाम स्वरूप सुदामा जी को भयंकर दरिद्रता जीवन में झेलनी पड़ी थी। कई-कई दिन बीत जाने के बाद भी वह और उनका परिवार भूखा ही रह जाता था। इसे कहेंगे भक्ति की शक्ति कि इतनी गरीबी झेलने के बाद भी सुदामा कृष्ण नाम जाप करते रहते थे।

सुदामा जी की भक्ति ऐसी थी कि अगर उनके घर में एक तिनका भी अन्न या चावल का होता था तो वह उसे भी पहले भगवान श्री कृष्ण को भोग लगाते थे और फिर उस तिनके के तीन हिस्से कर अपनी पत्नी एवं बच्चों को खिलाते थे। सुदामा जी ने अपनी परिस्थिति के लिए कभी श्री कृष्ण को नहीं कोसा। सुदामा जी की यही भक्ति देख श्री कृष्ण ने उन्हें अपनी शरण में बुलाया और धन-धान्य से उनका घर एवं जीवन भर दिया।

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'भक्ति की शक्ति' का कलयुग अध्याय

कलयुग में यूं तो कई अध्याय हैं लेकिन आज हम बात करेंगे बांके बिहारी मंदिर से जुड़े चमत्कार की। कहते हैं कि एक बार बांके बिहारी मंदिर के पुजारी लाला को रात्री भोग लगाना भूल गए। मंदिर के पास मिठाई की दुकान थी और वह भी बस बंद होने ही वाली थी कि एक नन्हा बालक उस दुकान वाले के पास पहुंचा और उसने कुछ खाने को मांगा लेकिन उसके पास पैसे नहीं थे तो उसने अपना कड़ा दे दिया।

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अगले दिन सुबह मंदिर में पुलिस आई तो पता चला कि बांके बिहारी जी का कड़ा कहीं खो गया है या चोरी हो गया है। मिठाई वाले दुकानदार को याद आया कि उसके पास भी एक कड़ा है और उस कड़े को उसने पुजारी को दिखाकर पूरा वाक्य बताया। इसके बाद पुजारी को याद आया कि वे रात का भोग लगाना भूल गए थे। कहते हैं कि उसी मिठाई वाले के पास बांके बिहारी इसलिए पहुंचे क्योंकि वह रोज बांके बिहारी को दुकान में बुलाया करता था।

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image credit: herzindagi

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