क्या बिना स्नान के पूजा करना ठीक है? जानें क्या कहता है शास्त्र

पूजा-पाठ के विशेष नियमों में से एक यह भी है कि आपको पूजा हमेशा शुद्ध तन और मन से करनी चाहिए, लेकिन क्या स्नान किए बिना भी पूजा की जा सकती है? आइए यहां इसके बारे में जानें।
puja without taking bath

हिंदू धर्म में पूजा-पाठ और धार्मिक कर्मकांडों का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि कोई भी पूजा-पाठ करते समय तन और मन की शुद्धता का पालन जरूरी होप्ता है। धार्मिक शास्त्रों और पुराणों में पूजा के कई नियमों का उल्लेख मिलता है, उन्हीं में से एक यह भी है कि आपको पूजा हमेशा स्नान करने के बाद ही करनी चाहिए।

ऐसा माना जाता है कि ईश्वर से जुड़ा कोई भी अनुष्ठान सफल तभी होता है जब आप इसे शुद्ध मन और तन से करते हैं। इसी वजह से हम प्रातः उठकर स्नान आदि से मुक्त होकर ही पूजा या मंदिर में प्रवेश करते हैं। पूजा से पहले स्नान करने का अत्यधिक महत्व बताया गया है, क्योंकि स्नान को पवित्रता का प्रतीक माना गया है।

हालांकि कई बार स्थितियां ऐसी भी हो जाती हैं जब लोगों को स्नान के बिना ही पूजा से जुड़ा कोई अनुष्ठान करना पड़ता है। ऐसे में एक सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या पूजा से पहले स्न्नान करना अनिवार्य है? आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें इसके बारे में और यह भी जानें कि इस बात के लिए हमारे शास्त्र क्या कहते हैं।

शास्त्रों के अनुसार पूजा के लिए स्नान का महत्व

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शास्त्रों के अनुसार स्नान को शारीरिक और मानसिक शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। स्नान के माध्यम से व्यक्ति अपने शरीर को बाहरी और आंतरिक दोनों प्रकार की अशुद्धियों से मुक्त करता है।

शास्त्रों में पूजा से पहले स्नान करने को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि इसे शारीरिक और मानसिक शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। पूजा के पहले स्नान करने से व्यक्ति अपने शरीर और मन को बाहरी और आंतरिक अशुद्धियों से मुक्त करता है, जिससे पूजा के समय पूर्ण पवित्रता प्राप्त होती है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बिना स्नान के पूजा करने से व्यक्ति को उसका संपूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है और अशुद्ध शरीर से की गई पूजा को पूर्ण रूप से स्वीकार नहीं किया जाता है। इसलिए, पूजा से पहले स्नान करना न केवल अनिवार्य होता है, बल्कि इसे शुद्ध और सफल पूजा का आधार माना गया है। स्नान की प्रक्रिया व्यक्ति को ध्यान और भक्ति में सहजता से ले जाती है, जिससे मन में शांति और पवित्रता का संचार होता है। शास्त्रों के अनुसार, यह पवित्रता पूजा में श्रद्धा और समर्पण को बढ़ाती है, जिससे ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है।

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क्या बिना स्नान के पूजा की जा सकती है

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अगर हम शास्त्रों की मानें तो ईश्वर की पूजा या मंदिर में प्रवेश करने से पहले स्नान को एक जरूरी प्रक्रिया माना जाता है, लेकिन कुछ विशेष पर्तिस्थितियों में यदि आप स्नान नहीं कर पा रहे हैं तब भी पूजा की जा सकती है।
यदि व्यक्ति बीमार है या किसी अन्य परिस्थिति के कारण स्नान करने में असमर्थ है जैसे यात्रा के दौरान तो शास्त्रों के अनुसार उसे मन की शुद्धता से पूजा करने की अनुमति है। ऐसी स्थिति में आप स्नान न कर पाने के बावजूद मानसिक शुद्धता के साथ पूजा कर सकते हैं।
शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि पूजा का महत्व व्यक्ति के संकल्प और भाव में निहित होता है। यदि किसी कारणवश व्यक्ति स्नान नहीं कर सकता है तो भी उसके मन में पूजा के प्रति श्रद्धा और शुद्धि होनी चाहिए। आप यदि मानसिक पूजा करते हैं या फिर मंत्रों का जाप करते हैं तो इसके लिए स्नान करने की बाध्यता नहीं है।
किसी भी स्थान पर आप मानसिक पूजा स्नान के बिना भी कर सकते हैं और ईश्वर का ध्यान भी कर सकते हैं। हालांकि मंदिर में या घर में मूर्तियों का स्पर्श करने के लिए आपके शरीर का शुद्ध होना जरूरी है, इसका मतलब यह है कि आपको स्नान करने के बाद ही मूर्तियों का स्पर्श करना चाहिए।

पूजा के लिए मानसिक स्नान का महत्व

शास्त्रों में मानसिक शुद्धता और ध्यान को भी बहुत महत्व दिया गया है। यदि व्यक्ति किसी कारणवश जल से स्नान नहीं कर सकता, तो उसे मानसिक स्नान करने का सुझाव दिया गया है।

मानसिक स्नान का तात्पर्य है कि व्यक्ति अपनी पूजा से पहले ध्यान और प्रार्थना के माध्यम से अपने मन को शुद्ध करे। इसके बाद वह पूजा कर सकता है। यह भी माना जाता है कि अगर व्यक्ति अपने विचारों को पवित्र रखता है और ध्यान में पूर्ण शुद्धता रखता है, तो वह ईश्वर का सच्चा भक्त है और उसकी पूजा स्वीकार्य मानी जाती है।

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मंत्रों के जाप से आप स्नान के बिना भी शरीर का शुद्धिकरण कर सकते हैं

शास्त्रों के कुछ नियमों के अनुसार स्नान न कर पाने की स्थिति में आपके लिए मंत्रों का जाप करना भी फलदायी माना जाता है। इन मंत्रों के माध्यम से आप अपने मन और आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं। इन मंत्रों में 'अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः।।' प्रमुख है।
इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति की आंतरिक और बाहरी शुद्धि हो जाती है और यदि आप किसी वजह से स्नान न भी कर पाएं तो शरीर के शुद्धिकरण के लिए यह मंत्र जरूर पढ़ें।

किन परिस्थितियों में स्नान के बिना पूजा की जा सकती है

when to perform puja without bath

स्नान के बाद पूजा करने के लिए यह भी जरूरी है कि आप किस समय पूजा कर रहे हैं। अगर पूजा सुबह की जगह रात्रि के समय की जा रही है तो स्नान करना संभव नहीं होता है ऐसे में व्यक्ति हाथ-पैर धोकर और मानसिक शुद्धता से पूजा कर सकता है।
यदि किसी वजह से अचानक पूजा करने का संयोग बनता है और स्नान का समय नहीं है, तब भी व्यक्ति शुद्ध भाव से पूजा कर सकता है। शास्त्रों में ऐसी स्थिति को अपवाद के रूप में स्वीकार किया गया है।

यदि हम पूजा के लिए शास्त्रों की मानें तो इस अनुष्ठान में शुद्ध तन और मन के साथ पूजा में संकल्प और भक्ति का अत्यधिक महत्व होता है। ऐसा कहा गया है कि भगवान श्रद्धा और भक्ति से प्रसन्न होते हैं, न कि केवल बाहरी शुद्धता से। यदि व्यक्ति का मन सच्चे भाव से शुद्ध है और वह भगवान की पूजा में अपने संपूर्ण समर्पण के साथ है, तो भगवान उस पर प्रसन्न होते हैं और पूजा का पूर्ण फल भी मिल सकता है।

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Images: Freepik.com

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