पितरों को खुश करने के लिए आषाढ़ अमावस्या पर करें इस चालीसा का पाठ, आर्थिक संकटों से मिल सकता है छुटकारा

आषाढ़ अमावस्या का यह खास दिन पितरों को शांत करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का एक विशेष दिन होता है। इस दिन पितरों के निमित्त पूजा-पाठ और दान करने से वे प्रसन्न होते हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है, जिससे आर्थिक संकट भी दूर हो सकते हैं। साथ ही, इस दिन पितृ चालीसा का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। कहते हैं इस पाठ से पितरों का आशीर्वाद मिलता है और जीवन से जीवन की बाधाएं दूर होती हैं, खासकर जब बात धन संबंधी परेशानियों की हो।
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हिंदू धर्म में अमावस्या का विशेष धार्मिक महत्व है, क्योंकि यह पितरों को समर्पित खास दिन होता है। हर माह में आने वाली अमावस्या पर पितरों की शांति व उनके आशीर्वाद के लिए श्राद्ध, तर्पण और दान-पुण्य के कार्य किए जाते हैं। आषाढ़ माह की अमावस्या को आषाढ़ी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन खेती-किसानी से भी जुड़ा है, क्योंकि इसके बाद वर्षा ऋतु अपने चरम पर होती है और बुवाई का कार्य शुरू होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन पितरों को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने से जीवन के कई कष्ट दूर हो सकते हैं। अगर आप काफी समय से आर्थिक संकटों से जूझ रही हैं, तो इससे मुक्ति पाने के लिए आप पितरों की पूजा कर सकती हैं। अगर आपके घर में पैसा नहीं टिकता है, बार-बार धन हानि हो रही है या कर्ज बढ़ रहा है, तो धार्मिक ग्रंथों के हिसाब से इसका कारण- पितरों की नाराजगी हो सकती है। ऐसे में, आषाढ़ अमावस्या पर पितरों को खुश करने के लिए कुछ विशेष उपाय किए जा सकते हैं, जिनमें चालीसा का पाठ अत्यंत प्रभावशाली माना गया है। आइए ज्योतिषाचार्य अरविंद त्रिपाठी से इस दिन चालीसा पाठ और इससे होने वाले विशेष लाभों के बारे में जानते हैं।

आषाढ़ अमावस्या पर पढ़ें गंगा चालीसा (Ganga Chalisa Path in Ashadha Amavasya)

॥दोहा॥

जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग।
जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग॥

॥चौपाई॥

जय जय जननी हरण अघ खानी।
आनंद करनि गंग महारानी॥
जय भगीरथी सुरसरि माता।
कलिमल मूल दलनि विख्याता॥

Ashadha Amavasya chalisa benefits

जय जय जहानु सुता अघ हनानी।
भीष्म की माता जगा जननी॥
धवल कमल दल मम तनु साजे।
लखि शत शरद चंद्र छवि लाजे॥

वाहन मकर विमल शुचि सोहै।
अमिय कलश कर लखि मन मोहै॥
जड़ित रत्न कंचन आभूषण।
हिय मणि हर, हरणितम दूषण॥

जग पावनि त्रय ताप नसावनि।
तरल तरंग तंग मन भावनि॥
जो गणपति अति पूज्य प्रधाना।
तिहूं ते प्रथम गंगा स्नाना॥

ब्रह्म कमंडल वासिनी देवी।
श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवि॥
साठि सहस्त्र सागर सुत तारयो।
गंगा सागर तीरथ धरयो॥

अगम तरंग उठ्यो मन भावन।
लखि तीरथ हरिद्वार सुहावन॥
तीरथ राज प्रयाग अक्षैवट।
धरयौ मातु पुनि काशी करवट॥

धनि धनि सुरसरि स्वर्ग की सीढी।
तारणि अमित पितु पद पिढी॥
भागीरथ तप कियो अपारा।
दियो ब्रह्म तव सुरसरि धारा॥

जब जग जननी चल्यो हहराई।
शम्भु जाटा महं रह्यो समाई॥
वर्ष पर्यंत गंग महारानी।
रहीं शम्भू के जटा भुलानी॥

पुनि भागीरथी शंभुहिं ध्यायो।
तब इक बूंद जटा से पायो॥
ताते मातु भइ त्रय धारा।
मृत्यु लोक, नाभ, अरु पातारा॥

गईं पाताल प्रभावति नामा।
मन्दाकिनी गई गगन ललामा॥
मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनि।
कलिमल हरणि अगम जग पावनि॥

धनि मइया तब महिमा भारी।
धर्मं धुरी कलि कलुष कुठारी॥
मातु प्रभवति धनि मंदाकिनी।
धनि सुरसरित सकल भयनासिनी॥

पान करत निर्मल गंगा जल।
पावत मन इच्छित अनंत फल॥
पूर्व जन्म पुण्य जब जागत।
तबहीं ध्यान गंगा महं लागत॥

जई पगु सुरसरी हेतु उठावही।
तई जगि अश्वमेघ फल पावहि॥
महा पतित जिन काहू न तारे।
तिन तारे इक नाम तिहारे॥

शत योजनहू से जो ध्यावहिं।
निशचाई विष्णु लोक पद पावहिं॥
नाम भजत अगणित अघ नाशै।
विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशै॥

जिमी धन मूल धर्मं अरु दाना।
धर्मं मूल गंगाजल पाना॥
तब गुण गुणन करत दुख भाजत।
गृह गृह सम्पति सुमति विराजत॥

गंगाहि नेम सहित नित ध्यावत।
दुर्जनहुँ सज्जन पद पावत॥
बुद्दिहिन विद्या बल पावै।
रोगी रोग मुक्त ह्वै जावै॥

गंगा गंगा जो नर कहहीं।
भूखे नंगे कबहु न रहहि॥
निकसत ही मुख गंगा माई।
श्रवण दाबी यम चलहिं पराई॥

महाँ अधिन अधमन कहँ तारें।
भए नर्क के बंद किवारें॥
जो नर जपै गंग शत नामा।
सकल सिद्धि पूरण ह्वै कामा॥

सब सुख भोग परम पद पावहिं।
आवागमन रहित ह्वै जावहीं॥
धनि मइया सुरसरि सुख दैनी।
धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी॥

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कंकरा ग्राम ऋषि दुर्वासा।
सुन्दरदास गंगा कर दासा॥
जो यह पढ़े गंगा चालीसा।
मिली भक्ति अविरल वागीसा॥

॥ दोहा ॥

नित नव सुख सम्पति लहैं। धरें गंगा का ध्यान। अंत समय सुरपुर बसै। सादर बैठी विमान॥
संवत भुज नभ दिशि । राम जन्म दिन चैत्र। पूरण चालीसा कियो। हरी भक्तन हित नैत्र॥

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आषाढ़ अमावस्या पर चालीसा का महत्व

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आषाढ़ अमावस्या वर्षा ऋतु के आगमन का भी संकेत देती है। इस दिन पितरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध और दान आदि करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। पितृ दोष को धन हानि, संतान संबंधी समस्या, गृह क्लेश और तरक्की में बाधा का एक बड़ा कारण माना जाता है। ऐसे में, इस चालीसा पाठ करके आप पितृ दोषों से छुटकारा पा सकते हैं।यह चालीसा पितृ दोष के प्रभावों को कम करने में सहायक है। पितरों के आशीर्वाद से धन संबंधी परेशानियां दूर होती हैं और आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। इस चालीसा के पुण्य प्रभाव से घर में सुख-शांति और सकारात्मक माहौल बना रहता है।

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Image credit- Freepik


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