असुर होते हुए भी इन राक्षसों ने क्यों की थी भगवान विष्णु की पूजा?

असुरों को भगवान शिव शंभू प्रिय थे और भगवान विष्णु से असुरों को भयंकर घृणा थी, लेकिन कुछ ऐसे असुर भी थे जिन्होंने राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी भगवान विष्णु की या उनके अवतारों की भक्ति को चुना था।
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हम सभी ने अक्सर पौराणिक कथाओं में ये सुना है कि असुरों का संहार करने का काम भगवान विष्णु ने अपने अलग-अलग अवतारों द्वारा किया है और असुरों को वरदान देने का काम करते थे भगवान शिव। इसी कारण से असुरों को भगवान शिव शंभू प्रिय थे और भगवान विष्णु से असुरों को भयंकर घृणा थी, लेकिन ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि कुछ ऐसे असुर भी थे जिन्होंने राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी भगवान विष्णु की या उनके अवतारों की भक्ति को चुना था। तो चलिए जानते हैं कि कौन थे वो असुर जिन्होंने की थी भगवान विष्णु की पूजा और क्या था इसके पीछे का कारण।

राक्षस घोरा ने की थी भगवान विष्णु की पूजा

प्राचीन काल में एक गौरा नाम का राक्षस हुआ करता था। वह असुर कुल में जन्मा था लेकिन इसके बाद भी उसकी निष्ठा भगवान विष्णु के प्रति थी। एक पौराणिक कथा के अनुसार घोरा नाम का रक्षा पृथ्वी पर राज्य करना चाहता था, लेकिन जब उसने यह देखा कि पृथ्वी तो शेषनाग के शीश के ऊपर सज्ज है और शेषनाग के राजा भगवान विष्णु हैं तो उसने सोचा कि क्यों ना पृथ्वी को प्राप्त करने के लिए भगवान विष्णु की पूजा की जाए।

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राक्षस घोरा ने कई हजार सालों तक भगवान विष्णु की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया जब भगवान विष्णु ने घोरा को दर्शन दिए तो उसने भगवान विष्णु से पृथ्वी के राजा बनने की इच्छा जताई जिस पर भगवान विष्णु ने उसे वरदान दिया कि अब से वह पृथ्वी का राजा कहलाएगा। हालांकि पृथ्वी का राजा बनते ही रक्षा गोरा ने मनुष्यों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया और अपनी आसुरी शक्तियों का दुरुपयोग करने लगा जिसके बाद खुद मां विंध्यवासिनी जो कि मां पार्वती का ही एक स्वरूप हैं उन्होंने राक्षस घोरा से युद्ध किया उसे परास्त किया और उसका वध कर पृथ्वी को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया।

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असुर राज बलि ने की थी भगवान विष्णु की पूजा

असुर राज बलि भी एक राक्षस कुल से संबंध रखते थे।वे दैत्यों के राजा और अपार बल के स्वामी थे। असुर होने के बाद भी राजा बलि भगवान विष्णु की भक्ति करते थे। जब भी राजा बलि कोई हवन-अनुष्ठान किया करते थे तो सबसे पहले भगवान विष्णु को ही हवन सामग्री अर्पित करते थे। एक बार राजा बलि ने देवताओं को युद्ध में पराजित कर स्वर्ग को अपने कब्जे में ले लिया था, जिससे सभी देवता अत्यंत दुखी हो गए थे। अपने दुखों का समाधान ढूंढते हुए, देवता अपनी माता अदिति के पास पहुंचे और उन्हें अपनी समस्या बताई। तब अदिति ने अपने पति कश्यप ऋषि के कहने पर एक व्रत किया, जिसके शुभ फलस्वरूप भगवान विष्णु ने वामन देव के रूप में अवतार लिया।

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भगवान विष्णु जानते थे कि राजा बलि वामन अवतार में उनसे कुछ भी मांगेंगे तो वह मना नहीं करेंगे और हुआ भी ऐसा ही है। राजा बलि से जब वामन देव ने तीन पग भूमि मांगी तो उन्होंने दे दी जिसके बाद वामन देव ने तीन पग भूमि में तीनों लोक नाप लिए। चूंकि यह देवताओं की सुरक्षा के लिए किया गया भगवान विष्णु द्वारा छल था। इसलिए भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल का राजा बनाते हुए उनके राज्य की हमेशा रक्षा करने का वचन दिया।

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राक्षस शंखचूर्ण ने की थी भगवान विष्णु की पूजा

शंखचूड़ दैत्य, दैत्यराज दंभ का पुत्र था। दंभ की कोई संतान नहीं थी, इसलिये उसने संतान प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु की कठिन तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और दंभ से वर मांगने के लिए कहा। दंभ ने तीनों लोकों में अजेय और महापराक्रमी पुत्र की इच्छा जताई। भगवान विष्णु ने तथास्तु कहकर उसे वरदान दिया और फिर अंतर्धान हो गए। इसके बाद, दंभ के घर एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम शंखचूड़ रखा गया।

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शंखचूड़ भी भगवान विष्णु का परम भक्त सीध हुआ। विशेष रूप से शंखचूड़ की संपूर्ण भक्ति भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण के प्रति समर्पित थी। शंखचूड़ ने भगवान श्री कृष्ण की तपस्या कर उनसे कृष्ण कवच भी प्राप्त किया था, लेकिन जब शंखचूड़ ने अपनी शक्तियों का प्रयोग देवताओं के विरुद्ध करना शुरू किया तब भगवान शिव ने शंखचूड़ का वध कर दिया। इसी कारण से भगवान शिव की पूजा में शंख बजाना वर्जित है।

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image credit: herzindagi, meta ai

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