बाजार से खरीदी हुई 1 लीटर प्लास्टिक की बॉटल कर सकती है आपको बीमार, जानें क्यों

प्लास्टिक की बोतल को रीयूज करने के लिए हमेशा मना किया जाता है, लेकिन क्या आपको पता है कि सही मायने में प्लास्टिक की नई बोतल का इस्तेमाल भी कितना खतरनाक साबित हो सकता है?

Plastic bottle and its side effects

पानी की बोतल का इस्तेमाल तो हम सभी करते हैं, लेकिन हमारी लाइफस्टाइल कैसी है और हम कितने हेल्दी हैं यह बात पानी की बोतल को बदल देता है। समझे नहीं... हम समझाते हैं। दरअसल, हेल्दी लाइफस्टाइल के लिए लोग तांबा, कांसा या फिर कांच की बोतल में पानी पीते हैं। कई लोग इन्फ्यूज्ड वाटर बॉटल का इस्तेमाल करते हैं। अधिकतर प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन क्या आपको पता है कि इनके एक बार इस्तेमाल से ही आपकी लाइफ पर कितना असर पड़ सकता है?

पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर को हमेशा प्योर और बेहतर बनाया जाता है। पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर को मिनरल वाटर मानकर हम इस्तेमाल तो करते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि सही मायने में इससे कितना नुकसान हो सकता है। दरअसल, एक नई रिसर्च ने दावा किया है कि पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर हमारे लिए किसी जहर से कम नहीं है।

पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी रिसर्च ने अनुमानित तौर पर यह पता लगाया है कि आखिर हम एक लीटर पानी में कितने नैनो पार्टिकल्स अपने शरीर में ले लेते हैं।

पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर को लेकर क्या कहती है रिसर्च?

यह तो जगजाहिर था कि प्लास्टिक की बोतल से पानी पीना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता। यह भी पता था कि इसमें माइक्रोप्लास्टिक पीस होते हैं, लेकिन सही मायने में कितने पार्टिकल्स होते हैं और कितना ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती।

plastic bottle water bottle

कोलंबिया यूनिवर्सिटी और रटगर्स यूनिवर्सिटी (Columbia University and Rutgers University) के रिसर्चर्स ने यह कैल्कुलेशन किया है। रिसर्च के मुताबिक, 1 लाख 10 हजार से लेकर 4 लाख प्लास्टिक पीस तक एक लीटर पानी की बोतल में मिल सकते हैं। एवरेज इसमें 2 लाख 40 हजार तक पार्टिकल्स होते हैं।

यह नई स्टडी लेजर तकनीक के साथ जांची गई है जिसमें छोटे-छोटे फ्रेगमेंट होने के संकेत दिखे। स्टडी की डिटेल्स नेशनल अकादमी ऑफ साइंसेज के जर्नल में पब्लिश की गई। इस स्टडी के मुताबिक, एक लीटर पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर हमारे लिए कई बीमारियों का संकेत दे सकता है। जिस तकनीक का इस्तेमाल किया गया है उससे छोटे से छोटे पार्टिकल्स को भी अच्छे से देखा जा सकता है।

कहां से आते हैं ये प्लास्टिक के पार्टिकल्स?

रिसर्च मानती है कि इसमें से अधिकतर प्लास्टिक पार्टिकल्स खुद प्लास्टिक की बोतल से ही आते हैं। इसके अनुसार, प्लास्टिक की बोतल को इस तरह से डिजाइन किया जाता है जिससे बाहरी बैक्टीरिया उस तक ना पहुंच सके और इस प्रोसेस को रिवर्स ऑस्मोसिस मेंब्रेन फिल्टर कहा जाता है। इस कारण से बाहर के बैक्टीरिया से तो हम बच जाते हैं, लेकिन अंदरूनी समस्या पैदा कर देते हैं और प्लास्टिक की बोतल के अंदर मौजूद कण बहुतायत में पानी के अंदर ही घुल जाते हैं।

single use plastic bottle

इस रिसर्च में सबसे आम ब्रांड्स के पानी की जांच की गई है जो स्टोर्स पर मिलता है।

किस बोतल में कितने प्लास्टिक के कण होंगे इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अलग-अलग शेप और साइज की बोतलों के अनुसार कणों का डिस्ट्रिब्यूशन भी बदल जाता है। माइक्रोमीटर साइज के कण भी उपलब्ध होते हैं।

इन माइक्रो पार्टिकल से सेहत को कितना नुकसान होता है उसके बारे में तो अभी साइंटिस्ट्स ने कोई जानकारी नहीं दी है, लेकिन अगर बात की जाए प्लास्टिक की बोतलों से होने वाले कॉमन नुकसान की तो वो गिनवाए जा सकते हैं।

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प्लास्टिक की बोतलों से पानी पीना क्यों है नुकसानदेह?

इम्यून सिस्टम को होता है खतरा

प्लास्टिक की बोतलों में पानी लंबे समय तक स्टोरी किया जाता है और इसके कारण केमिकल्स उस पानी के अंदर आसानी से चले जाते हैं। यह हमारे शरीर के अंदर जाते हैं और शरीर के इम्यून सिस्टम पर असर डालते हैं। इसलिए प्लास्टिक की बोतलों से पानी पीना अवॉइड करने को कहा जाता है।

लिवर कैंसर और फर्टिलिटी में समस्या

इस मामले में कई तरह की रिसर्च की गई है और पाया गया है कि प्लास्टिक में मौजूद फथालेट्स (phthalates) असल मायने में लिवर कैंसर और स्पर्म काउंट को कम करने का काम कर सकते हैं। स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क की लेटेस्ट स्टडी में पाया गया है कि बोतल में बंद पानी के माइक्रोप्लास्टिक्स नुकसान पहुंचाने के लिए काफी हैं।

बीपीए जनरेशन

बाई फिनाइल ए (Biphenyl A) जैसे केमिकल्स हमारे शरीर के अंदर जाकर डायबिटीज, मोटापा, फर्टिलिटी इशू और मूड संबंधित समस्या पैदा कर सकते हैं। इसके कारण लड़कियों में जल्दी प्यूबर्टी आने की समस्या हो सकती है। प्लास्टिक की बोतलों में पानी स्टोर करके पीना काफी नुकसानदेह साबित हो सकता है।

डायोक्सिन प्रोडक्शन

सूरज से डायरेक्ट एक्सपोजर के कारण प्लास्टिक की बोतलों में से हार्मफुल केमिकल्स निकलते हैं और डायोक्सिन उसमें से एक है। यह पानी में मिलता है जो शरीर में अलग-अलग तरह के केमिकल्स का कारक बनता है।

यही कारण है कि प्लास्टिक की बोतल में पानी पीना खराब माना जाता है।

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