एक अच्छी लाइफस्टाइल के लिए जरूरी है कि आपके पास हेल्थ और वेल्थ का साथ हो। मगर आज की इस बिजी लाइफ में हर कोई वेल्थ के पीछे ही भाग रहा है और हेल्थ का ख्याल किसी को भी नहीं है। इन सबसे भी अव्वल बात यह है कि हेल्थ का ख्याल रखने के लिए जो आसान तरीके हैं भी तो लोगों में उन तरीकों को लेकर भ्रम है। कई लोग उन तरीकों अनहैल्दी मानते है और उनका इस्तेमाल नहीं करते। मगर आज हम आपको बताएंगे कि जिन तरीकों या स्थितियों को आप गलत मानते हैं, हो सकता है कि वह सही हों और आपको भ्रम हो कि वह आपके लिए सही नहीं हैं। तो चलिए ऐसे ही कुछ रोचक हेल्थ मिथ्स पर आज हम आपको बताएंगे, जिन्हें जानने के बाद शायद आपकी जिंदगी आसान हो जाएगी और आपकी चिंताएं भी मिट जाएंगी।
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फ्रेश फलों में न्यूट्रिशन ज्यादा होता है, ऐसा लोगों का मानना है। मगर आज की लाइफस्टाइल में फ्रेश फ्रूट्स किसे खाने को मिलते हैं। बल्कि आजकल तो हाब्रिड और पैक्ड फूड का जमाना है। ऐसे में कई लोग इस तरह के फलों को खाने से हिचकते हैं। मगर कुछ स्टडीज के मुताबिक फ्रोजन फ्रूट्स खाने में कोई दिक्कत नहीं है यह उतने ही न्यूट्रीशनिस होते हैं जितने की फ्रेश फ्रूट्स।
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यह एक बहुत बड़ा मिथ है। लोग पेनकिलर लेने से डरते हैं। यह सच हैं कि ज्यादा पेनकिलर का सेवन आपके ऑर्गेंस को खराब कर देता है मगर जब दर्द होता है तो पेनकिलर लेना जरूरी हो जाता है क्योंकि पेनकिलर का असर तब ही होता है जब दर्द कम हो। तेज दर्द में पेनकिलर से भी राहत नहीं मिलती।
मेटाबॉलिज्म को लेकर भी लोगों में काफी भ्रम है। लोगों का मानना है कि मोटे लोगों का मेटाबॉलिज्म पतले लोगों की अपेक्षा काफी कम होता है। इसलिए वह मोटे होते हैं।मगर विशेषज्ञों की माने तो ऐसा कुछ नहीं होता बल्कि पतले लोगों का मेटाबॉलिज्म ज्यादा स्लो होता है।
यह सच है कि एक प्रॉपर लाइट में पढ़ने से आसानी होती है और वहीं लाइट डिम हो तो पढ़ना मुश्किल होता है चीजों पर फोकस नहीं हो पाता मगर यह सच नहीं है कि कम लाइट से आंखों का विजन खराब हो जाता है।
कंप्यूटर पर काम करने वालों की एक ही शिकायात होती है कि काम करते करते उनकी आंखे खराब हो गई हैं। मगर कंप्यूटर पर काम करने से आंखे कभी खराब नहीं होती हैं। यह सच है कि कंप्यूटर से रेडिएशन निकलती हैं मगर यह बात एकदम गलत है कि इन रेडिएशन से आंखें खराब हो जाती हैं। फैक्ट तो यह है कि कंप्यूटर से बहुत ही कम रेडिएशन निकलती हैं, जिनसे आंखे खबराब नहीं हो सकती हैं।
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शैंपू और कंडीशनर के ऐसे कई विज्ञापन आते हैं जो यह बताते हैं कि उसे इस्तेमाल करने से बाल स्लकी और स्मूद हो जाएंगे। मगर यह सच नहीं हैं। कुछ समय के लिए ऐसा हो सकता है कि आपके बाल चमकदार दिखें मगर स्प्लिट एंड्स से निजात पाने का एक ही तरीका है कि बालों को रेग्युलर ट्रिम करवाया जाए।
यह सच है कि विटामिन सी से इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाया जा सकता है मगर इससे कोल्ड और फ्लू ठीक हो जाता है यह सच नहीं है। कोल्ड तब ही ठीक हो सकता है जब उसके वायरस को ठीक करने की दवा खाई जाए।
नहाने के बाद आपने देखा होगा कि आपके हाथों की उंगलियों की स्किन सिकुड़ जाती है। ऐसा सभी के साथ होता है और लोग मानते हैं कि नहाने से स्किन का मॉइश्चर खत्म हो जाता है। मगर ऐसा नहीं होता है। यह सोच गलत है। पानी से जब स्किन का संपर्क होता है तो स्किन के नीचे छिपी रक्तधमनियां सिकुड़ जाती हैं। और यह एक ऑटोमैटिक नरवस सिस्टम रिएक्शन है।
बुखार जुखाम होते ही लोग एंटी बायोटिक्स लेने की सोचने लगते हैं। इसके पीछे उनकी धारणा होती है कि एंटीबायोटिक्स से कोल्ड और फीवर ठीक हो जाता है। मगर क्या आप जानती हैं कि कोल्ड वायरस की वजह से होता है जबकि एंटीबायोटिक्स बैक्टीरियल इंफैक्शन को ठीक करने के लिए होती हैं।
ऐसा फिल्मों में कई बार दिखाया गया है कि, जहर खाने पर डॉक्टर पेशेंट से वॉमिट करने के लिए कहते हैं। मगर ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि वॉमिट करने से जहर का असर खत्म होजाए। बल्कि डॉक्टर की सलाह के बिना ऐसा करने से दूसरे नुकसान हो सकते हैं। दरअसल कुछ जहर ऐसे होते हैं जिनमें गैसट्रिक एसिड होता है। यह एसिड पेट से ज्यादा गले को नुकसान पहुंचाता है। इसलिए ऐसी सिचुएशन में सबसे पहले डॉक्टर की सलाह लें।
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ज्यादातर लोगों का मानना है कि हार्ट अटैक आने पर सीने में सीवियर पेन होता है। मगर ऐसा बिलकुल नहीं है। हार्ट अटैक आने पर या तो सीने में जलन होती है या फिर ऐसा दर्द होता है जैसा दांतों में होता है। कई पार अटैक सायलेंट होता है और दर्द का अहसास भी नहीं होता।
सर्दी के मौसम में अगर किसी को खांसी जुकाम हो जाता है तो लोग यही कहते हैं कि ठंड की वजी से ऐसा हुआ है। मगर कभी भी सर्दी जुकाम होने की वजह मौसम नहीं होता बल्कि व्यक्ति का वीक इम्यून सिस्टम होता है। अगर किसी व्यक्ति का इम्यून सिस्टम ठीक नहीं है तो उसे किसी भी तरह का वायरस हो सकता है और इस वायरस की वजह से कोल्ड और फीवर आ सकता है।
आजकल ऑर्गेनिक फूड का ट्रेंड है। ऑर्गेनिक फूड के नाम पर लोग खुद को इस भ्रम में रखते हैं कि वह शुद्ध और देशी चीज खा रहे हैं मगर उन्हें यह नहीं पता कि ऑर्गेनिक फूड की फार्मिंग के दौरान जिस खाद का प्रयोग किया जाता है वह खाद एंवायरमेंट को नुकसान पहुंचाती हैं। बल्कि सिंथेटिक फूड की फार्मिंग के दौरान जो खाद डाली जाती है वह इतनी नुकसान दायक नहीं होती है। इसलिए अब से जब भी ऑर्गेनिक फूड खाएं तो इस भ्रम को मन से निकाल दें।
इंडिया में खाने की प्लेट तब ही पूरी होती है जब उसमें दाल, रोटी, सब्जी, चावल और दही मौजूद होता है। जी हां ऐसा लोगों को मानना है कि दही से डाइजिस्टिव सिस्टम ठीक होता है। मगर ऐसा कुछ भी नहीं है। यह सच है कि दही में लाइव बैक्टीरिया होते हैं मगर आप दही नहीं भी खाएंगी तब भी आपकी बॉडी बैक्टीरिया फ्रेंडली रहेगी। बल्कि अगर आपको शुगर है तो आपको दही एवॉइड ही करना चाहिए। क्योंकि इसमें शुगर कंटेंट भी होता है।
ऐसा कहा जाता है कि प्रेगनेंसी के वक्त महिलाओं का ब्रेन स्लो वर्क करता है और महिलाएं आलसी हो जाती हैं। मगर ऐसा बिलकुल भी नहीं है। प्रेगनेंसी के समय महिलाएं और भी ज्यादा इफेक्टिवली काम करने लगती हैं।
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