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    Woh Ek Raat Part 5: सुशांत और रीमा को अपनी जान बचानी थी, लेकिन उनके सामने धौलपुर के भूत का जो सच आया था उसके बाद उनका बचना बहुत मुश्किल था...

    Shruti Dixit

    'हमें छोड़ दीजिए, हम किसी से कुछ नहीं कहेंगे...' रीमा ने रोते हुए कहा। वह बहुत डर गई थी और उसे पता नहीं था कि वह क्या कह रही है। 'तुम लोग यहां से जिंदा चले गए, तो लोगों का डर खत्म हो जाएगा। यह जगह रात में आने के लिए नहीं है। सालों लग गए यहां का डर बनाने के लिए। अब तुम लोगों को छोड़ दिया, तो डर खत्म और हमारा काम भी खत्म।' सुशांत और रित्विक ने कुछ नहीं कहा। उन्हें लगने लगा था कि अब वो बच नहीं पाएंगे। 'माफ कर दो रीमा, हमारी वजह से तुम इस मुसीबत में फंस गईं। अपने एडवेंचर के चक्कर में अब ये सब हो गया। चरण भी उधर अब मारा गया होगा।' सुशांत ने रीमा से कहा।

    'सारी गलती मेरी है। मैं वीडियो बनाने के चक्कर में ना पड़ा होता, तो शायद हम यहां उतरने के बाद भी स्टेशन से बाहर चले गए होते। चरण और सुशांत मुझे ढूंढने ना आए होते। चरण भी जिंदा होता।' रित्विक ने लगभग सुबकते हुए कहा। रीमा उस वक्त कुछ नहीं कह रही थी, बस रोती ही जा रही थी। उसे पता था कि अब कुछ नहीं होने वाला। 'इन्हें डबल डोज दिया, तो पोस्ट मॉर्टम में आ सकता है। बस थोड़ा सा ड्रग्स चटा देते हैं। जब तक बेहोश रहेंगे, तब तक ट्रेन अपना काम कर देगी।' उस एक इंसान ने कहा जो नकाब बांधे हुए था। उसने अपना नकाब हटाया और यह वही समोसे वाला था जिसने इन चारों को धौलपुर के बारे में बताया था। ट्रेन की दूसरी तरफ से वह खुद भी उतर गया था। 'तुम लोगों को मना किया था यहां आने के लिए, पर नहीं माने तुम लोग, अब भुगतो। इतनी चुल्ल मची हुई थी कि तुम लोग आगे भी देखने चले गए। गलत पटरी पर डाल दिया तुम्हारे दोस्त को। सही पटरी पर डाला होता, तो दिक्कत नहीं होती।'

    वह समोसे वाला हमेशा से इनसे मिला हुआ था। इतनी देर में दूसरे नकाबपोश ने रित्विक को ड्रग्स चटा दिया। 'पूरी रात यही काम नहीं करना है। वो दूसरी गाड़ी आने में है। उसमें सामान लोड करना है और तब तक इनका काम तमाम। बतौले क्यों मार रहे हो। काम खत्म करो जल्दी।' बगीचे के बॉस ने कहा। चारों ओर शांति थी, रित्विक को नशा चढ़ने लगा था। बाकी दोनों के लिए भी ड्रग्स तैयार था। 'अरे डरते क्यों हो, मरते-मरते भी इतना अच्छा स्वाद चख कर जाओगे।' इतना कहते ही उस इंसान ने रीमा को भी यह चटा दिया। अब तीसरे डोज की बारी थी। वह अपने हाथ में पुड़िया, लेकर आ ही रहा था, कि अचानक जोर की आवाज आई। धांय-धांय... सुशांत ने मुड़कर देखा, तो पुलिस के 8-10 सिपाही एक साथ आए हुए थे।

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    उस जगह पर अफरा-तफरी मच गई। लोग भागने लगे, सुशांत ने नीचे झुककर खुद को बचाने की कोशिश की, लेकिन उसने देखा कि रीमा और रित्विक दोनों ही नशे में हैं। दोनों को बचाना भी जरूरी था। रीमा को फिर भी थोड़ा होश था, लेकिन रित्विक तो पूरी तरह से मदहोश हो चुका था। सुशांत ने किसी तरह से दोनों को अपने साथ जमीन पर लेटाया। रित्विक फिर भी नहीं मान रहा था, तो सुशांत उसके ऊपर कूद गया।

    सुशांत ने अपने एक हाथ से रीमा को नीचे किया। सिर्फ 15 मिनट में वहां का माहौल बदल गया था। सुशांत के पैर में तेज दर्द उठा मानो, उसका पैर टूट गया हो, वह मुड़ा, तो उसे समझ आया कि उसे गोली लग गई है। उसने दोस्तों को तो बचा लिया, लेकिन उम्मीद की जा सकती है कि वह ना बचे।

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    जैसे-तैसे मामला शांत हुआ। पुलिस वालों ने आकर सुशांत की मदद की, उसे लगभग बेहोशी आने लगी थी। उसके कंधे पर पहले से ही चोट लगी थी, उसके पैर में गोली लगी थी। रीमा और रित्विक बेहोश थे। उसे याद है एम्बुलेंस और पुलिस दोनों के सायरन की आवाज पास से ही आ रही थी। सुशांत को उसके आगे की बातें धुंधली सी याद हैं। उसे कोई उठा कर ले जा रहा था। प्लेटफॉर्म से आगे जाते ही चरण कहीं नहीं दिख रहा था। सुशांत अजीब महसूस कर रहा था। उसके बाद उसकी आंख हॉस्पिटल में खुली। उसके पास ही दो पुलिस वाले बैठे थे। पैर में अभी भी जोरदार दर्द था।

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    'किस्मत वाले हो जो बच गए। रुको तुम्हारा स्टेटमेंट लेने के लिए साहब आएंगे।' एक हवलदार ने उससे कहा। 'मेरे दोस्त, सब कहां हैं। क्या हुआ... चरण वो ठीक है या नहीं। रीमा और रित्विक को भी चोट लगी थी।' सुशांत ने एक सांस में बोल दिया। उसे लगा कि गला सूख जाएगा। उसकी सांस फूल गई। 'अरे रुको-रुको पानी पी लो' हवलदार ने पानी देते हुए कहा। इतनी देर में एक इंस्पेक्टर वहां आ गया। 'जाग गए साहब जी। जवानी का ज्यादा जोश था, धौलपुर में उतर गए बिना बैकअप के।' उसने व्यंग्य कसते हुए कहा।

    'मेरे दोस्तों का क्या हुआ...' सुशांत ने पानी का घूंठ भरते हुए पूछा। 'दो तो ठीक हैं, तीसरा कोमा में है। डॉक्टर कह रहे हैं कि जाग भी सकता है और नहीं भी।' सुशांत समझ गया कि यहां चरण की बात हो रही है। उसके सिर पर बहुत चोट लगी थी। 'क्या था वो, और आप लोग कैसे आ गए?' सुशांत ने तर्क देते हुए पूछा। 'अरे वकील हो क्या? कोई और होता तो बोलता शुक्र है आप आ गए। हम लंबे समय से धौलपुर स्टेशन पर छापा मारने का सोच रहे थे, लेकिन जब भी किसी के आगे बात करते, कुछ ना कुछ हो जाता। हमारे सीनियर्स इस ऑपरेशन के लिए मना कर देते। उस दिन जब तुम स्टेशन पर उतरे, तो स्टेशन मास्टर ने देख लिया। दूसरी गाड़ी आने के बाद जब तुम अपने दोस्त को गाड़ी में ले जा रहे थे, तब भी उसने देख लिया और वह समझ गया कि तुमको मदद की जरूरत है।'

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    'उसने पुलिस को फोन किया और उस वक्त थाने में जितने भी लोग मौजूद थे सब आ गए। कुल 14 पुलिसवाले आ गए। हम स्टेशन पर पहुंचे तो प्लेटफॉर्म के बाहर तुम्हारा दोस्त गाड़ी में पड़ा दिखा। फिर हम आगे गए, तो बगीचे के पास से जलती हुई लाइट दिखी। रास्ते में मालगाड़ी का खुला डिब्बा दिखा और सब समझ आ गया। हमने पहले ही अपने हथियार निकाल लिए। इसके आगे क्या हुआ तुम जानते ही हो। तुम ऑपरेशन सहित पूरे 18 घंटे से बेहोश थे। पैर से गोली निकाल ली, लेकिन हड्डी क्रैक हो गई, तो प्लेट डाली है तुम्हारे पैर में। तुम्हारे दो दोस्त जिन्हें ड्रग्स दिया गया था, मामूली चोट थी उन्हें। उनका नशा उतर गया, हां एक जो गाड़ी में मिला था। खतरे से तो बाहर है, लेकिन होश कब आएगा पता नहीं।'

    इंस्पेक्टर सुशांत का स्टेटमेंट लेकर चला गया। रीमा और रित्विक भी सुशांत के पास आ गए। रीमा के परिवार वाले आ गए थे और रित्विक ने बाकी तीनों के घर पर भी फोन कर दिया था। चरण की मां रोए जा रही थीं। चरण को अभी तक होश नहीं आया था। सब अपने-अपने घर चले गए। दो दिन बाद के अखबार में पूरी खबर आई उस इंस्पेक्टर के साथ सभी की फोटो भी छपी। न्यूज चैनलों ने अलग-अलग एक्सक्लूसिव चलाना शुरू कर दिया। दरअसल, पुलिस वाले अभी तक इसलिए छापा नहीं मार पा रहे थे क्योंकि उनके सीनियर भी उस गिरोह में शामिल थे। जिस बॉस को उन्होंने बगीचे में देखा था, वह पुलिस वालों से जुड़ा हुआ था।

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    उस महिला और उसके लड़के को भी इसी गिरोह ने मरवाया था। इतने समय से डर बनाने के लिए ही धीरे-धीरे लोगों को मारकर वो पटरी में डाल दिया जाता था। जिस जगह पर सभी के फोन बंद हुए थे, उस जगह पर जैमर लगे हुए थे। यही कारण था कि किसी का फोन काम नहीं कर रहा था और किसी की मदद नहीं हो पा रही थी। यह ऐसे ही चलता रहता अगर स्टेशन मास्टर उस दिन पुलिस को कॉल ना करता और वो इंस्पेक्टर सीनियर को बताए बिना स्टेशन पर आता नहीं।

    सुशांत का फोन बज उठा, रीमा थी। सुशांत को खुशखबरी देनी थी, चरण ने अपनी आंखें खोल ली हैं, लेकिन वह बहुत कमजोर हो चुका था। सुशांत की आंखों में चमक आ गई।

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    रीमा, रित्विक और सुशांत एक बार फिर गए हॉस्पिटल, इस बार चरण से मिलने। चरण ने तीनों को देखते ही कहा, 'आखिर बचा ही लिया मुझे... सुशांत लंगड़ाना अच्छा लग रहा है तुम्हारे ऊपर।' चारों हंस दिए। अब तीनों दोस्तों के साथ उनके ग्रुप में रीमा भी जुड़ चुकी थी। चरण के ठीक होते ही वह दिल्ली चला गया। वहां एक बार फिर चारों मिले और चरण ने कहा, 'रीमा अब अगला एडवेंचर प्लान करना है। अब गाड़ी किस स्टेशन पर जाएगी।'
    स्टेशन पर वो एक रात इन चारों की जिंदगी बदल गई।

    समाप्त....

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