'ये ट्रेन भी ना भूतों से डर गई है, जहां देखो वहीं रुक जा रही है।' रित्विक ने ठहाका लगाते हुए कहा। ट्रेन की गति जितनी धीमी थी उतनी ही तेज़ थीं सुशांत और रीमा की बातें। दोनों अपने में ही लगे हुए थे। रित्विक और चरण मंद-मंद मुस्काते हुए सुशांत को देख रहे थे। दोनों की आपस में बातें चल ही रही थीं कि चरण ने बोला, 'रीमा लग रहा है हमारे दोस्त को भी भूत चढ़ गया है, हमसे इतनी देर से बात ही नहीं कर रहा।' चरण की मस्खरी में सुशांत थोड़ा झेंप सा गया।
'कुछ भी बोलता है यार', सुशांत ने थोड़ा संभलते हुए कहा। 'लग रहा है अब ट्रेन साढ़े दस के बाद ही धौलपुर पहुंचेगी,' रित्विक ने घड़ी देखते हुए इशारा किया। सुशांत के साथ बातें करने में रीमा भूल ही गई थी कि अभी बहुत बड़ी जंग बाकी है। रीमा को थोड़ा परेशान होते देख तीनों उससे बातें करने लगे, 'तुम ग्रीन पार्क में कैसे रहती हो, इतना महंगा इलाका है। वहां कोठियां हैं, जगह कैसे मिल गई तुमको?' चरण ने पूछा।
'मेरी मौसी और उनका परिवार अमेरिका में सेटल है। मौसा जी की कोठी है जिसमें उनके भाई-भाभी का परिवार रहता है। मुझे उसी के ऊपर वाला कमरा मिला हुआ है। रिश्तेदारी है इसलिए ऐसे इलाके में रहने को मिल गया।' रीमा ने इत्मिनान से कहा। 'भाई हमारे रिश्तेदार तो हमारे घर ही आकर टिक जाते हैं। किस्मत वाली हो जो तुम्हें अपने घर बुला लिया।' रित्विक ने कहा।
'हां, मेरी किस्मत मैं ही जानती हूं।' रीमा ने व्यंग्य किया। 'मेरी एक बात समझ नहीं आई रीमा, तुम बता रही हो कि 1 साल से रात में कोई धौलपुर नहीं उतर रहा है। फिर कैसे पुलिस ने इस बात की तहकीकात नहीं की। कैसे पूरा शहर ही सन्नाटे में है। इतनी ट्रेन्स आती-जाती हैं, ऐसा तो होगा नहीं कि कोई भी रेलवे स्टेशन पर ही ना जाए।' सुशांत ने गंभीरता से पूछा।
'पुलिस की तहकीकात का तो पता नहीं, मैंने सुना तो था कि इन्वेस्टिगेशन चल रही है। न्यूजपेपर में भी उन लोगों के बारे में आया था जो मारे गए। पर पता नहीं क्यों पुलिसवाले भी रात में ग्रुप्स में ही जाते हैं और देर रात होने से पहले लौट आते हैं। मैंने तो यह भी सुना है कि पुलिस वालों के साथ ही कुछ घटनाएं हुई हैं। किसी के होने का आभास होता है उन्हें। जितने लोग उतनी बातें।' रीमा के चेहरे पर मासूमियत भी थी और डर भी।
'मुझे लगता है कि यह सिर्फ डर है और कुछ नहीं। और स्टेशन मास्टर भी स्टेशन से बाहर ही रहता है। ऐसा लगता है कि किसी की फैलाई हुई अफवाह है कि बस लोग उसी को लेकर अड़े हुए हैं। एक काम करेंगे स्टेशन पर उतरते हुए वीडियो बना लेंगे। इससे ये डर भी खत्म होगा लोगों का। देखते हैं कि कैसा भूत मिलता है।' सुशांत ने कहा। रीमा को लग रहा था कि तीनों दोस्तों में से सिर्फ सुशांत ही है जो थोड़ी सेंसिबल बात कर रहा है, लेकिन एक बात देखें, तो यह डरने वाली बात है। जितना सुना है उसके हिसाब से यकीनन कुछ तो है जिससे लोग परेशान हो रहे हैं।
देखते ही देखते शाम के पांच बज चुके थे। चारों को अब जोरों की भूख लगी थी। ट्रेन भी ना जाने कौन सी जगह पर खड़ी हुई थी। कोई स्टेशन होता, तो कुछ खा लेते। इतने में ही एक समोसा बेचने वाला वहां आया। उसके पास का स्टॉक भी खत्म हो रहा था क्योंकि ट्रेन के बाकी पैसेंजर्स भी इन चारों की तरह ही परेशान हो रहे थे। 'अरे भइया रुको... कहां जा रहे हो?' चरण ने जोर से आवाज लगाई। समोसे वाला आया और उसके पास के बचे-कुचे 6 समोसे उन चारों ने ले लिए।
समोसे वाले को पैसे देते हुए रित्विक ने ट्रेन के हालात जानने की कोशिश की। 'आखिर क्यों इतना समय लग रहा है?' । इतने में समोसे वाला बोल पड़ा, 'अरे वो धौलपुर के आगे काम चल रहा है ना, अभी ट्रेन चलने लगेगी, रात में वहां काम नहीं होता इसलिए ट्रेन को रोक-रोककर दिन में ही काम करवाया जाता है।
इससे पहले वाली सभी ट्रेनें आज ऐसे ही रुकी हैं।' पैसे गिनते हुए उसने कहा। 'हम भी धौलपुर उतरने वाले हैं,' समोसे का एक बड़ा सा हिस्सा मुंह में रखे हुए रित्विक ने कहा। समोसे वाला थोड़ा चौंक गया। 'आपको वहां नहीं उतरना चाहिए, ग्वालियर से चले जाना ज्यादा समय नहीं लगेगा,' उसने कहा।
'पर ऐसा क्यों?' इस बार सुशांत ने गंभीरता से पूछा, सुशांत सुबह से ये भूत वाली बातें सुनते-सुनते पक गया था। आखिर ऐसा क्या है वहां, इसे लेकर इतना ज्यादा डर फैला हुआ है।
'पिछले दिनों हमारे साथ पैंट्री में काम करने वाला एक रेलवे कर्मचारी शाम के समय पटरी के पास बेहोश मिला था। उसने बताया कि पटरी के पास उसे किसी महिला की आवाज आ रही थी, वह उसकी मदद करने के लिए भागा। जब उस जगह पर पहुंचा, तो कोई नहीं था, लेकिन अचानक वह बेहोश हो गया। ऐसा कैसे हुए उसे कुछ पता नहीं, बस अंधेरा घिरने वाला था और सामने से आती ट्रेन के ड्राइवर ने उसे देख लिया। ट्रेन रोकी और उसे अंदर ले लिया। सब कहते हैं कि अगर अंधेरा हो जाता, तो उसे कोई बचा नहीं पाता। वहां कुछ है जिससे लोग अंधेरा होने से पहले भागते हैं। मेरा चचेरा भाई वहां चाय का स्टॉल लगाता था, वह भी अब 6 बजे स्टॉल बंद करके चला जाता है। वहां जब भी कोई ट्रेन रुकती है, तब स्टेशन मास्टर और कुछ रेलवे के कर्मचारी बस आकर ट्रेन को झंडी दिखा देते हैं और अब यात्री तो वहां उतरने ही नहीं हैं, कोई एक आध दिख गया, तो उसे जल्दी से स्टेशन के बाहर कर दिया जाता है।'
उस समोसे की बात सुनकर अब सभी डर रहे थे। सभी को लग रहा था कि कुछ गड़बड़ है। पर लड़की के सामने तीनों दोस्त कुछ कह भी नहीं रहे थे। 'हमें वहां नहीं उतरना चाहिए, कुछ गलत हो जाएगा।' रीमा ने डरते हुए कहा। 'अरे डरो मत, इतनी भी कोई बात नहीं है। हम अकेले थोड़ी जा रहे हैं। चार लोग हैं। एक साथ चार लोगों के पीछे भूत थोड़ी भागेगा। और उसने कहा ना, स्टेशन मास्टर और लोग यात्रियों को तुरंत स्टेशन से निकाल लेते हैं। तुम चिंता ना करो, अगर ट्रेन रुक रही है तो यकीनन हमारे साथ कोई ना कोई और इस ट्रेन से धौलपुर उतरेगा।' चरण ने रीमा को समझाते हुए कहा।
सुशांत ने रीमा को समझाते हुए कहा, 'रीमा चरण ठीक कह रहा है। अगर ऐसा कुछ है जो लोगों को डरा रहा है, तो जरूरी नहीं कि हम भी डर जाएं।' सुशांत और चरण की बातें सुनकर रीमा को थोड़ा आराम तो मिल रहा था, लेकिन अभी भी हालात सही नहीं थे। रीमा डरी हुई थी और अब रित्विक को भी डर लग रहा था। ऐसा कुछ है जो लोगों को इतना डरा चुका है, तो जान बूझकर उसका परीक्षण करने की क्या जरूरत है? समझ नहीं आता कि ऐसा क्या हो गया है चरण और सुशांत को। पर दोनों दोस्तों की बातों को सुनकर रित्विक कुछ बोल भी नहीं पा रहा है।
धीरे-धीरे ग्वालियर भी आ ही गया। इतनी देर हो गई थी कि लोग उतरने को थे। ग्वालियर पर ही तीनों दोस्तों को उतरना था और प्लान के हिसाब से रीमा को भी, लेकिन चारों ने किसी तरह से आगे चलने का प्लान जारी रखा। जितनी देर गाड़ी ग्वालियर पर खड़ी थी, चारों को ही बारी-बारी से लगा कि यहीं उतर जाना चाहिए, लेकिन अब इस बात का इतना हव्वा बन गया है कि कोई कुछ कह नहीं पा रहा था। ट्रेन भी अपने नियत समय से कुछ ज्यादा ही ग्वालियर पर रुकी हुई थी। आधी से ज्यादा ट्रेन खाली हो चुकी थी, ग्वालियर से आगे किसी को जाने की इच्छा नहीं थी शायद। कुछ और लोग थे जो धौलपुर का बोलकर ग्वालियर पर ही उतर गए थे। हालांकि, रात के 10 बज गए थे, लेकिन ज्यादा लोग इस ट्रेन में चढ़े नहीं थे।
जैसे ही ट्रेन एकदम से चली, चारों थोड़े सहम से गए। ट्रेन धीरे-धीरे स्टेशन छोड़ रही थी और इतने में रित्विक ने बोला, 'अभी भी वक्त है, हम यहीं उतर जाते हैं। मुझे कुछ सही नहीं लग रहा।' बाकी तीनों ने रित्विक को देखा। अब तक ट्रेन स्पीड पकड़ चुकी थी। 'पहले बोलना था ना।' चरण ने कहा। 'अब जो भी हो, हम आगे जा रहे हैं।' सुशांत ने कहा। रीमा का चेहरा अब सफेद पड़ता जा रहा था। इतने में सुशांत ने एकदम से रीमा के हाथ पर अपना हाथ रख दिया और कहा, 'तुम चिंता मत करो, सब ठीक है।' रीमा और सुशांत की नजरें मिलीं और पता नहीं क्यों रीमा शांत हो गई, उसके चेहरे की सफेदी गालों की लाली में बदल गई। रीमा को सुशांत का यह करना अच्छा लगा था। एक ही मुलाकात में पता नहीं क्यों रीमा को सुशांत भा गया था।
चरण और रित्विक ने भी यह देखा और सुशांत को देखकर मुसकुरा दिए। 'लगता है कुछ होने वाला है,' रित्विक ने चरण से कहा। 'कुछ नहीं भाई बहुत कुछ होने वाला है,' चरण ने जवाब दिया। अब धौलपुर आने को था और चारों ने अपना सामान बांध लिया। डर तो लग रहा था, लेकिन चारों को लग रहा था कि बस कुछ ही देर की तो बात है। अगर वापसी की ट्रेन नहीं भी मिली, तो भी बाहर टैक्सी से चले जाएंगे। धौलपुर में ट्रेन रुकी, चारों ने अपने कोच का दरवाजा खोला और देखा कि बाहर का माहौल बहुत अजीब था...
दरवाजा खुलते ही चारों को क्या दिखा? क्यों चारों के होश उड़ गए? धौलपुर के स्टेशन पर चरण के साथ ऐसा हो जाएगा, ये पता भी नहीं था। ... क्या हुआ धौलपुर में, पढ़ें अगले भाग में।
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